किसी भी देश का भविष्य उसकी शिक्षा-व्यवस्था पर निर्भर करता है। शिक्षा के माध्यम से ही कोई भी समाज एवं देश तरक्क़ी की नई-नई इबारतें लिखता है। दुर्भाग्य से अपने देश की अधिकांश सरकारों द्वारा शिक्षा को प्राथमिकता-सूची में अंतिम पायदान पर रखने का चलन-सा बन गया है। यही कारण है कि तमाम सरकारी दावों और घोषणाओं के बावजूद हमारी शिक्षा-व्यवस्था वैश्विक कसौटियों पर पिछड़ी एवं कमज़ोर नज़र आती हैं। विकसित देशों और वर्तमान विश्व के साथ कदम-से-क़दम मिलाकर चलने के लिए हमें अपनी शिक्षा-व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त करना होगा। नीतियों से लेकर क्रियान्वयन तक की खामियों को दूर करना होगा, व्यवस्था में व्याप्त छिद्रों को भरना होगा, शुचिता एवं पारदर्शिता लानी होगी। हमारे शिक्षा-तंत्र की हालत यह है कि शायद ही कोई ऐसा राज्य हो, जहाँ किसी-न-किसी प्रतियोगी या नियमित परीक्षा के प्रश्नपत्र लीक होने का मामला सुर्खियों में न रहता हो। बीते 29 जनवरी को गुजरात में जूनियर लिपिक भर्ती परीक्षा और 1 फरवरी को बिहार बोर्ड इंटरमीडिएट वार्षिक परीक्षा के गणित का प्रश्नपत्र लीक होने का मामला अभी ठंडा भी नहीं पड़ा था कि उत्तराखंड लोक सेवा आयोग की पटवारी भर्ती लिखित परीक्षा के साथ ही अवर अभियंता (जेई) और सहायक अभियंता (एई) की भर्ती परीक्षा के प्रश्नपत्र लीक होने का प्रकरण जोर पकड़ने लगा है। प्रश्नपत्र लीक होने के ये केवल इक्के-दुक्के मामले नहीं हैं, बल्कि इनकी एक लंबी फ़ेहरिस्त है। पिछले वर्षों में राजस्थान, हिमाचल, हरियाणा, उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, बिहार आदि राज्यों से प्रश्नपत्र लीक होने के अनेकानेक मामले संज्ञान में आते रहे हैं और पर्याप्त सुर्खियाँ भी बटोरते रहे हैं।
ग़ौरतलब है कि गत वर्ष भी बिहार लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित बीपीएससी की परीक्षा, राजस्थान लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित वरिष्ठ अध्यापक भर्ती परीक्षा, राजस्थान पुलिस कॉन्स्टेबल भर्ती परीक्षा, राजस्थान कर्मचारी चयन बोर्ड द्वारा आयोजित वन रक्षक भर्ती परीक्षा, पश्चिम बंगाल में डीएलएड पाठ्यक्रम की वार्षिक परीक्षा, हिमाचल प्रदेश कर्मचारी चयन आयोग की जेओए आईटी भर्ती परीक्षा, मध्यप्रदेश प्राथमिक शिक्षक पात्रता परीक्षा, उत्तरप्रदेश में राजस्व लेखपाल की मुख्य परीक्षा, उत्तराखंड अधीनस्थ चयन आयोग की स्नातक स्तर के पदों की परीक्षा तथा अरुणाचल प्रदेश लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित सहायक अभियंता परीक्षा जैसे तमाम प्रतियोगी परीक्षाओं के प्रश्नपत्र लीक होने के मामले ख़ूब चर्चा में रहे थे। प्रश्नपत्र लीक होने के लगभग हर प्रकरण के पश्चात संबंधित राज्यों की सरकार कड़ी कार्रवाई करने की घोषणा करती है, एसआईटी गठित करती है, उस परीक्षा को रद्द करती है, भविष्य में कदाचार-मुक्त परीक्षाओं के आयोजन का आश्वासन देती है, परंतु मूल समस्या ज्यों-की-त्यों बनी रहती है। सरकार की कार्रवाई एवं घोषणाओं का शिक्षा-तंत्र में गहरी पैठ रखने वाले नक़ल माफियाओं पर कोई असर नहीं पड़ता। प्रश्न यह है कि इन नकल-माफियाओं को सहयोग और प्रोत्साहन कहाँ से मिलता है? क्या उन्हें शिक्षा एवं सरकारी तंत्र में शीर्ष पदों पर बैठे वरिष्ठ अधिकारियों का संरक्षण प्राप्त है या ऐसे अपराधों के प्रति कठोर क़ानून एवं दंड-विधान का अभाव उन्हें इसके लिए उत्प्रेरित करता है? नकल के ये माफ़िया क़ानूनी दाँव-पेंच के माहिर खिलाड़ी होते हैं, इसलिए कदाचार में संलिप्तता के ठोस एवं पर्याप्त सबूत और संकेत होने के बावजूद बहुधा बचकर निकल जाते हैं। छोटी मछलियाँ तो फिर भी गिरफ्त में आ जाती हैं, पर बड़ी-बड़ी मछलियाँ अपने प्रभाव व पहुँच का उपयोग कर मुक्त एवं निरंकुश घूमती रहती हैं। एक अनुमान के मुताबिक़ प्रश्नपत्र लीक होने के मामले में राजस्थान में पिछले 11 वर्षों से लगभग प्रति वर्ष औसतन 150 केस दर्ज हुए हैं, पर सजा किसी एक को भी नहीं हुई है। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि बीते 11 वर्षों में अकेले राजस्थान में ही 38 से ज़्यादा बड़ी परीक्षाओं के पर्चे लीक हो चुके हैं। प्रश्नपत्र लीक करवाने के मामले में कई बार बड़े-बड़े कोचिंग केंद्रों एवं संचालकों की भी संलिप्तता पाई जाती है। सच यह है कि नक़ल आज एक देशव्यापी कारोबार बनता जा रहा है, जिसके कई लाभार्थी और अंशधारक हैं। राजनेता से लेकर अधिकारी तक, प्रश्नपत्र निर्माता से लेकर समन्वयक तक, परीक्षा आयोजित कराने वाली संस्थाओं व आयोगों से लेकर परीक्षा-केंद्रों तक की संदिग्ध भूमिका या मिलीभगत से इनकार नहीं किया जा सकता। इसलिए परीक्षा आयोजित कराने वाले राज्यों की सरकारों को हर स्तर पर कड़ी निगरानी रखनी होगी, विभिन्न राज्यों के आयोगों और प्रशासन के बीच बेहतर तालमेल बनाना होगा।
स्मरण रहे कि भारत एक युवा देश है। यहाँ की लगभग 65 प्रतिशत आबादी युवा है। उनके सपने बड़े हैं। वे परिश्रमी, पुरुषार्थी एवं प्रतिभाशाली हैं। आज भारत के गाँव-घर से लेकर छोटे-बड़े कस्बों-शहरों से आने वाले युवा ऊँचे लक्ष्यों को हासिल करना चाहते हैं। वे तमाम कठिनाइयों एवं अभावों से लड़ते-जूझते कई-कई वर्षों तक इन प्रतियोगी परीक्षाओं की जीतोड़ तैयारी करते हैं। बहुत-से राज्यों में तो विभिन्न आयोगों द्वारा आयोजित की जाने वाली परीक्षाएँ भी नियमित अंतराल पर नहीं होतीं। परिणामस्वरूप इन परीक्षाओं के लिए अभ्यर्थियों को कई-कई वर्षों तक लंबी प्रतीक्षा करनी पड़ती है। गाँवों-कस्बों से आने वाले नौजवान तो पेट काटकर भी इन प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में स्वयं को अहर्निश झोंके रहते हैं। ये प्रतियोगी परीक्षाएँ उनके लिए न केवल उज्ज्वल भविष्य का, अपितु कई बार अस्तित्व का भी प्रश्न बन जाती हैं। और जब किसी परीक्षा में नक़ल, कदाचार या प्रश्नपत्र लीक होने का मामला उज़ागर होता है तो केवल उन नौजवान परीक्षार्थियों के ही नहीं, अपितु उनसे जुड़े उनके तमाम परिचितों-परिजनों के सपने भी चकनाचूर होते हैं। बल्कि यह कहना अनुचित नहीं होगा कि ऐसी घटनाओं से एक उन्नत, समृद्ध, सुशिक्षित एवं सशक्त राष्ट्र एवं समाज बनने-बनाने का हमारा सामूहिक स्वप्न और मनोबल टूटता है। इससे युवाओं के भीतर व्यवस्था के प्रति क्षोभ, असंतोष एवं निराशा की स्थाई भावना घर कर जाती है, शासन का इक़बाल कम होता है, व्यवस्था से आमजन का मोहभंग होता है तथा सरकार की साख व विश्वसनीयता संकट में पड़ जाती है। कोई भी सजग, संवेदनशील एवं जिम्मेदार सरकार युवाओं के भविष्य के साथ कभी खिलवाड़ नहीं करती, न ही करना चाहिए। अतः केंद्र समेत विभिन्न राज्यों की सरकारों का यह प्रथम एवं सर्वोच्च दायित्व होना चाहिए कि वे प्रश्नपत्र लीक होने के प्रकरणों की पुनरावृत्ति न होने दें और प्रभाव एवं पहुँच की परबाह किए बिना दोषियों के विरुद्ध सख़्त-से सख़्त कार्रवाई करें।
-प्रणय कुमार
शिक्षाविद एवं वरिष्ठ स्तंभकार
9588225950
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