और भारत के खदान मंत्रालय ने इस बात की पुष्टि कर दी है कि भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) ने देश में लीथियम और सोने के भंडार खोज निकाले हैं और ऐसे लगभग 51 खनिज ब्लॉक राज्य सरकारों को भी सौंप दिए गए हैं। लीथियम की महत्ता के कारण यह सूचना भारतीय ही नहीं विदेशी समाचारपत्रों में भी छपा। यह खनिज लीथियम-ऑयन बैटरियों का सबसे महत्वपूर्ण घटक है, और स्मार्टफोन से लेकर इलेक्ट्रिक वाहन तक अनेकानेक बैटरियों में प्रयुक्त होता है।
दुनिया जीवाश्म ईंधन से हटकर सतत एवं स्वच्छ ऊर्जा की ओर पहल कर रही है और इस परिवर्तन में एक बड़ी भूमिका लीथियम बैटरियों की है, जो बारम्बार चार्ज होने और लंबे समय तक ऊर्जा का भंडारण करने में सक्षम हैं। इसीलिए लीथियम को अक्सर ‘श्वेत सोना’ या ‘नवीन-तेल’ भी कहा जाता है। देश के भंडारों में जिस भारी मात्रा में लीथियम (5.9 मिलियन टन) होने का संकेत मिला है, उसने विश्वभर को हैरान कर डाला है, क्योंकि अगर यह सच है तो विश्व के लीथियम-नक्शे में भारत ‘कुछ भी नहीं’ वाले पायदान से उठकर रातों-रात चोटी के 10 देशों में एक हो जाएगा। इस बात पर खुशियां मनाने से पहले जरा गहराई में झांक लें।
देश के खदान मंत्रालय द्वारा जारी विज्ञप्ति में प्रयुक्त शब्द दुविधा और विरोधाभास का आभास देते हैं। इसमें कहा गया ‘जीएसआई ने पहली बार सत्यापित किया है कि जम्मू-कश्मीर के रियासी जिले के सलाल-हैमाना इलाके में 5.9 मिलियन टन ‘लीथियम-इन्फर्ड’ स्रोत (जी-3) हैं।’ भूविज्ञान शब्दकोश में ‘इन्फर्ड’ (अनुमानित) विशेषण का प्रयोग उस खनिज स्रोत के लिए किया जाता है जिसकी भूगर्भीय उपस्थिति का तो पता हो, लेकिन उसे अभी एक ‘प्रामाणिक’ स्रोत नहीं कहा जा सकता और न ही इसके लगातार मिलते रहने का पक्का सुबूत होता है। अब इस ‘इन्फर्ड’ स्रोत की वास्तविक मात्रा (टनों में) कितनी होगी, गुणवत्ता श्रेणी और खनिज तत्व कितने होंगे, अनुमान के स्तर पर यह बहुत ज्यादा भरोसेमंद नहीं होता।
संयुक्त राष्ट्र वर्गीकरण तंत्र और संबंधित खनिज तत्व नियमावली के तहत किसी खनिज की खोज के चार चरण होते हैं। इसमें जी-4 चरण का मतलब है : टोही-सर्वेक्षण के साथ खनिज होने का अपरोक्ष सुबूत। जी-3 चरण में अनुमान की व्याख्या का आधार भू-गर्भीय, भू-भौतिकीय, भू-रासायनिक आंकड़े होते हैं। जी-2 चरण उस खनिज स्रोत की निरंतरता के बारे में है और जी-1 चरण का अर्थ है विस्तृत खोज एवं खनन। कुल मिलाकर, भू-विज्ञान शब्दकोश मंच ‘इन्फर्ड’ से मतलब ‘सूचक’ या ‘नपा-तुला’ नहीं है। यदि जीएसआई स्वयं अपनी खोज को जी-3 चरण वाली बता रहा है, तब लीथियम की मात्रा इतनी सटीकता से कैसे बता सकता है? सही सिद्ध होने पर यह भंडार चिली के बाद दुनियाभर में लीथियम का दूसरा सबसे बड़ा स्रोत होगा।
कहने को भारतीय भूगर्भीय सर्वेक्षण विभाग यह भी कह रहा है कि उसने खोज सत्र 2022-23 में अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, जम्मू-कश्मीर, झारखंड, नागालैंड और राजस्थान में 18 लीथियम खोजी अभियान चलाए हैं।अब लीथियम की महत्ता के मद्देनजर सरकार को यह स्पष्ट करने की जरूरत है कि लीथियम की स्वदेशी उपलब्धता कितनी है। किसी दुर्लभ खनिज की खोज, खोद निकालने, प्रसंस्करण और उत्पादन के लिए ढांचागत क्षमता बनाने में कई दशक लग सकते हैं।
स्मरण रहे 1948 में होमी जे. भाभा की अध्यक्षता में परमाणु ऊर्जा आयोग का गठन हुआ। फिर केरल से मोनाजाइट नामक खनिज का निर्यात रोक दिया गया ताकि इससे स्वदेशी थोरियम निकाला जा सके। इसके लिए भारतीय दुर्लभ खनिज लिमिटेड नामक एक नई सार्वजनिक उपक्रम इकाई 1950 में बनाई गई। इसी समय होमी भाभा ने परमाणु खनिज निदेशालय स्थापित किया ताकि परमाणु कार्यक्रम के लिए जरूरी खनिजों की खोज हो सके। हवाई सर्वेक्षण टोही कार्यक्रम की शुरुआत भी हुई। आणविक ईंधन की पुनरुत्पत्ति हेतु हैदराबाद में परमाणु ईंधन परिसर स्थापित किया गया। होमी भाभा को अहसास हो गया था कि आपस में जुड़ी इन तमाम विधाओं में तकनीकी क्षमता पाए बगैर भारत अपनी परमाणु ऊर्जा रिएक्टर योजना में आगे नहीं बढ़ सकता। याद कीजिए वो परमाणु खनिज निदेशालय ही था, जिसने कुछ साल पहले कर्नाटक में लीथियम की उपस्थिति खोज निकाली थी।
चिली-बोलिविया-अर्जेन्टाइना लीथियम-त्रिकोण से मिलने वाली मात्रा कुल वैश्विक उपलब्धि की 60 प्रतिशत है– और यह खारे पानी वाले इलाके से निकलता है। ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और चीन में लीथियम सख्त चट्टानी क्षेत्र में होने की पहचान हुई है। इधर कश्मीर में भी, यह बॉक्साइट चट्टानों के साथ पाया गया है। खनन तकनीक विविध किस्म की होती है और अत्यंत जटिल भी। अगला चरण होगा लीथियम निकालने और परिष्कृत करने की तकनीक विकसित करना, इसके बाद आता है प्रसंस्करण और शुद्धीकरण से उच्च-शुद्धता-लीथियम तैयार करना।
यूँ तो लीथियम के सबसे बड़े भंडार चिली में हैं लेकिन लीथियम-परिष्करण क्षमता में चीन सबसे अव्वल है। कश्मीर की खदानी पत्थरों से निकलकर स्मार्टफोन या कार के बोनेट में लगी बैटरी में प्रयुक्त होने वाला लीथियम बनने के सफर में बहुत लंबी राह है। इसके लिए अनुसंधान एवं विकास और औद्योगिक प्रक्रिया विशाल निवेश से ही सच हो पाएगी।