एनसीआरबी से आए आंकड़ों के बाद देश के राज्यों में सभी प्रकार के अपराधों कुल सज़ा दर बहस हुई।एक चिंतन शिविर भी गृह मंत्रालय द्वारा सूरजकुण्ड, फरीदाबाद में आयोजित हुआ। देश के सभी राज्यों व केन्द्रशासित प्रदेशों के गृह मंत्रियों ने इस चिन्तन शिविर में आपराधिक मामलों में सज़ा दर को बढ़ाने पर व्यापक विचार-विमर्श किया । राज्य एकमत थे कि आपराधिक न्याय प्रणाली की विश्वसनीयता के लिए आवश्यक है कि अधिकतम मामलों में अपराधियों को अदालतों से सज़ा मिले। किसी भी देश में आपराधिक मामलों में दोष सिद्धि दर वहां की आपराधिक न्याय प्रणाली की कार्यक्षमता एवं सामर्थ्य को दर्शाती है।
भारत में दोष सिद्धि दर लगभग 68 प्रतिशत है, वहीं पाकिस्तान में ये 10 प्रतिशत से थोड़ा अधिक है। विकसित देशों जैसे इंग्लैंड व अमेरिका में दोष सिद्धि दर 80 प्रतिशत से भी अधिक है। यहां यह बताना जरूरी है कि हत्या, बलात्कार व हत्या के प्रयास जैसे जघन्य अपराधों में भारत में सज़ा दर 40 प्रतिशत से कम है। दोष सिद्धि दर का कम होना न केवल एक अपराधी को अपराध दोहराने की हिम्मत देना है, बल्कि आपराधिक न्याय प्रणाली पर से पीड़ित, उसके परिवार और समाज के विश्वास को भी उठाता है।सही मायनों में दोष सिद्धि दर आपराधिक न्याय प्रणाली की प्रभावशीलता का सबसे सटीक सूचकांक है। भारत में गम्भीर अपराधों में दोष सिद्धि दर का कम होना एक चिंतनीय और विचारणीय विषय है।
नि:संदेह दोष सिद्धि को सुनिश्चित करने में पुलिस एवं अभियोजन विभाग की अहम भूमिका होती है।सज़ा दर को बढ़ाने के लिए सबसे पहला कदम सज़ा दर को आपराधिक न्याय प्रणाली के केन्द्र बिन्दु में लाना होगा। पुलिस व अभियोजन विभागों के मूल्यांकन में सज़ा दर को सबसे महत्वपूर्ण स्थान देना होगा। इसके लिए समयबद्ध और वैज्ञानिक जांच पर जोर डालना व गम्भीर दंडनीय अपराधों के सभी माामलों में फोरेंसिक जांच को अनिवार्य करना आवश्यक है।
सुस्थापित तथ्य है कि दोष सिद्धि में गवाहों की अहम भूमिका होती है। आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधार हेतु गठित मलिमथ समिति ने गवाहों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का सुझाव दिया। वहीं गंभीर अपराधों के मामलों में यह भी सुनिश्चित किया जाना आवश्यक है कि प्रक्रियात्मक कारणों के चलते ट्रायल में अनावश्यक विलम्ब न हो। आज के सूचना और प्रौद्योगिकी के युग में न्यायिक कार्यवाही अभियुक्त व गवाह की शारीरिक उपस्थिति की जगह तकनीकी माध्यम से उपस्थिति दर्ज कराकर की जानी चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र राज्य बनाम डॉ. प्रफुल्ल बी देसाई 2003 (4) एससीसी 601 में महत्वपूर्ण फैसला देते हुए कहा कि धारा 273 के तहत गवाहों की गवाही वीडियो कान्फ्रेंसिंग के माध्यम से करवाई जा सकती है।
दोष सिद्धि दर कम होने का एक महत्वपूर्ण कारण गवाहों का अपने बयानों से पलटना भी है। यह सुनिश्चित किया जाना बेहद आवश्यक है कि यदि ट्रायल के दौरान, विशेषकर गम्भीर मामलो में, गवाह पलटते हैं व झूठे बयान देते हैं तो उनके विरुद्ध दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 340 के तहत कार्रवाई की जा सकती है ।
गंभीर और संवेदनशील अपराधों विशेषकर महिलाओं और बच्चों के खिलाफ हिंसा के मामलों में दोष सिद्धि दर बढ़ाने हेतु सर्वप्रथम चिन्हित अपराध स्कीम को मध्यप्रदेश में लागू किया गया। इसके अंतर्गत गम्भीर व सनसनीखेज मुकदमों की तफ्तीश व पैरवी की निगरानी वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा की जाती है। इस स्कीम के अंतर्गत अपराधों की दोष सिद्धि दर में मिले अच्छे परिणामों उपरांत इसे अन्य राज्यों द्वारा भी लागू किया गया।
अभी अपराधी की गिरफ्तारी से लेकर न्यायालय में आरोप साबित करने में वर्षों का समय गुजर जाता है। यदि इतनी मेहनत, संसाधन व ऊर्जा खर्च करने के बाद भी अपराधी को सज़ा न हो पाए तो इसे आपराधिक न्याय प्रणाली की असफलता कहना गलत नहीं होगा। अब यह सुनिश्चित करना बेहद आवश्यक है कि अपराधियों को, विशेषकर गम्भीर मामलों में दंडित अवश्य किया जाए।
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