भारत में खेती बारिश के भरोसे ही फलती-फूलती है, और उससे जुड़ा चक्र बाज़ार और बाज़ार आम आदमी को प्रभावित करता है । मानसूनी बारिश का इंतजार किसान शिद्दत से करता है, लेकिन यदि यही बारिश बेमौसमी हो तो आफत का सबब बनती है।अगले दिन कैसे बीतेंगे,चिंता का सबब है।
पिछले कुछ दिनों से पश्चिमी विक्षोभ से होने वाली बारिश ने किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें ला दी हैं। दरअसल, खेतों में गेहूं की फसल पक चुकी है। किसान अनाज खलिहानों से निकालकर मंडी ले जाने की तैयारी में है। इसी तरह सरसों की फसल भी पक चुकी है। पिछले दिनों से उत्तर भारत के कई राज्यों में हुई बेमौसमी बरसात से गेहूं-सरसों की फसल को काफी नुकसान हुआ। जहां सरसों में बीज तैयार हो चुका था, ओलावृष्टि से वो बिखरा है। दूसरी ओर जो सरसों मंडियों तक पहुंची थी, वह बारिश से भीग गयी। दरअसल, पिछले कुछ वर्षों में ग्लोबल वार्मिंग से जो तापमान वृद्धि हुई है, उससे मौसम के मिजाज में तीव्र परिवर्तन आया है।
इन दिनों हमारी खाद्य शृंखला पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। बारिश की आवृत्ति, उसके समय और गुणवत्ता में बदलाव आया है। बारिश तेज होती है और कम समय के लिये होती है। पिछले दिनों अचानक तापमान में समय से पहले हुई वृद्धि को गेहूं की फसल के लिये नुकसानदायक माना जा रहा था। पिछले साल भी ऐसा ही हुआ था कि समय से पहले तापमान वृद्धि से भरी-पूरी फसल के बावजूद गेहूं का दाना छोटा रह गया था। जिससे उत्पादकता में कमी आई और किसान को नुकसान उठाना पड़ा। ऐसे में जब बारिश हुई तो कयास लगाये जा रहे थे कि तापमान में कमी आना गेहूं की फसल के लिये लाभदायक रहेगा, लेकिन तेज बारिश ने किसानों के अरमान पर पानी फेर दिया है। किसान व विपक्ष कव नेता मांग कर रहे हैं कि फसलों को हुए नुकसान का आकलन करके तुरंत किसानों को राहत राशि दी जाये। निस्संदेह, यह वक्त की जरूरत भी है।
वैसे पिछले दिनों देश के विभिन्न भागों में किसान आलू-प्याज की भरपूर फसल होने के बावजूद कीमतों में आयी गिरावट का त्रास झेल रहे थे। कहीं सड़कों पर आलू बिखेरने व आलू की फसल पर ट्रेक्टर चलाने की खबरें आ रही थीं तो नासिक में प्याज उत्पादकों के आंदोलन की सुगबुगहाट थी। वहीं किसान संगठन भी अपनी पिछली मांगों पर केंद्र का सकारात्मक प्रतिसाद न मिलने के बाद दिल्ली में फिर एकजुट हुए हैं। बहरहाल, बारिश के चलते फसलों को होने वाले नुकसान ने किसानों की मुसीबतें और बढ़ा दी हैं।
मौसम विज्ञानी पश्चिमी विक्षोभ के चलते कुछ और दिन बारिश की भविष्यवाणी कर रहे हैं। ऐसे में जहां किसानों को फौरी राहत दिये जाने की जरूरत है, वहीं केंद्र व राज्य सरकारों को फसलों हेतु नये शोध-अनुसंधान को बढ़ावा देने की जरूरत है, जो ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों से होने वाले नुकसान को रोकने में किसानों की मदद करें।
निस्संदेह, लगातार मौसम की बेरुखी से किसान के माथे पर चिंता की लकीरें गहरी होती जा रही हैं। दूसरे, मंडियों में कृषि उत्पादों के वाजिब दाम न मिल पाने से किसान अपनी लागत भी हासिल नहीं कर पा रहा है। यह संकट किसानों की आने वाली पीढ़ी को खेती से विमुख करने वाला है। बहुत संभव है कि एक सौ चालीस करोड़ की आबादी वाले देश में आने वाले दशकों में खाद्यान्न संकट पैदा हो जाये। जिसके लिये अभी से दूरगामी नीतियां बनाने की जरूरत है।
चिंता की बात यह भी है कि हालिया बे-मौसमी बारिश व ओलावृष्टि से मध्यप्रदेश हरियाणा, पंजाब, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में गेहूं,मटर व सरसों आदि फसलों को ठीक कटाई से पहले हुए नुकसान के चलते खाद्य मुद्रास्फीति न बढ़ जाये। इससे केंद्र सरकार और आरबीआई द्वारा मुद्रास्फीति को कम करने के प्रयासों को झटका लग सकता है। साथ ही सरकार द्वारा देश के अस्सी करोड़ लोगों को दिये जा रहे खाद्यान्न सहायता कार्यक्रम पर भी इसका प्रभाव पड़ सकता है। वहीं सरसों की फसल प्रभावित होने से खाद्यान्न तेलों के आयात का दबाव भी बढ़ सकता है। निस्संदेह, आम आदमी के लिये महंगाई की चुनौती भी बढ़ सकती है।