हमारे देश में बड़ी मुश्किल है, सत्ता से दूर या नज़दीक का नाता रखने वालों के लिए भारत जो कुछ है, वह नरेंद्र मोदी में सिमट गया है। प्रतिपक्ष राहुलगांधी, शरद पंवार,ममता बनर्जी और जाने किस किस की प्रतिच्छाया में भारत को पहचान रहे हैं। और यही वह भारत है, जिसे सत्ता लूटती है, जनता से छीनती है–और उसी को असली भारत बताकर का प्रचार करती है।
भारत की राजनीति में इन दिनों का प्रिय विषय है, राहुल गांधी द्वारा विदेश में जाकर देश के लोकतंत्र पर वक्तव्य, सभी आजकल इसी में व्यस्त हैं। इस सबके बीच स्वीडन की संस्था, वी-डेम (वेरायटीज ऑफ़ डेमोक्रेसी) ने डेमोक्रेसी रिपोर्ट 2023 प्रकाशित की है, जिसमें कुल 179 देशों के लिबरल डेमोक्रेसी इंडेक्स में भारत 97वें स्थान पर चुनावी प्रजातंत्र इंडेक्स में 108वें स्थान पर है, यह 75 वर्ष की उपलब्धि है?। पिछले वर्ष के इंडेक्स में भारत का स्थान 100वां था। तंज़ानिया, बोलीविया, मेक्सिको, सिंगापुर और नाइजीरिया जैसे घोषित निरंकुश सत्ता वाले देश भी इस इंडेक्स में भारत से पहले के स्थानों पर हैं, यानि उनमें प्रजातंत्र की स्थिति भारत से बेहतर है। यही नहीं भारत को चुनावी निरंकुशता वाले देशों में शामिल किया गया है। यहां यह भी ध्यान देना आवश्यक है कि इससे पहले फ्रीडम हाउस ने भारत को आंशिक स्वतंत्र देशों की सूचि में और इंस्टिट्यूट फॉर डेमोक्रेसी एंड इलेक्टोरल असिस्टेंस ने तेजी से पीछे जाते हुए प्रजातंत्र वाले देशों में शामिल किया था। इस रिपोर्ट के अनुसार पिछले 10 वर्षों के दौरान दुनिया में प्रजातंत्र को निरंकुश सत्ता में बदलने वाले देशों में भारत सबसे आगे है।
चुनावी प्रजातंत्र इंडेक्स में पहले स्थान पर डेनमार्क है, इसके बाद क्रम से स्विट्रजलैंड, स्वीडन, नॉर्वे, एस्तोनिया, बेल्जियम, आयरलैंड, न्यूजीलैण्ड, लक्समबर्ग और फ्रांस का स्थान है। ऑस्ट्रेलिया 14वें स्थान पर, जर्मनी 15वें, कनाडा 19वें, यूनाइटेड किंगडम 22वें, जापान 23वें, और अमेरिका 27वें स्थान पर है। भारत 108वें स्थान पर है, जबकि पूरी तरीके से निरंकुश सत्ता वाले इजराइल का स्थान 49वां और हाल में ही चुनावी उपद्रव का शिकार ब्राज़ील 58वें स्थान पर है। रिपोर्ट के अनुसार दक्षिण पूर्व एशिया ऐसा क्षेत्र है, जहां प्रजातंत्र का स्थान तेजी से निरंकुशता ले रही है, यह भारत के पड़ोसी देशों के इंडेक्स में क्रम से भी स्पष्ट है। नेपाल 62वें, भूटान 83वें, श्रीलंका 78वें, पाकिस्तान 104वें, बांग्लादेश 131वें, म्यांमार 173वें, अफ़ग़ानिस्तान 176वें, और चीन 177वें स्थान पर है।
चुनावी प्रजातंत्र इंडेक्स में सबसे अंतिम स्थान पर सऊदी अरब है। इससे पहले के देश क्रम से एरिट्रिया, चीन, अफगानिस्तान, नार्थ कोरिया, क़तर, म्यांमार,यूनाइटेड अरब अमीरात, एस्वतिनी और बहरीन हैं। इस वर्ष के डेमोक्रेसी रिपोर्ट का शीर्षक है – डीफायेंस इन द फेस ऑफ़ ऑटोक्रेटाइजेशन, इसे विभिन्न देशों के मानवाधिकार प्रतिनिधियों के साथ 4000 से अधिक अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों ने तैयार किया है।
इसके अनुसार पिछले 35 वर्षों के दौरान दुनिया ने जो प्रजातंत्र में प्रगति की थी, उसे गवां दिया गया है। दुनिया में प्रजातंत्र का स्तर अब 1986 के समतुल्य हो गया है, और एशिया-प्रशांत क्षेत्र में प्रजातंत्र की स्थिति वर्ष 1978 के स्तर पर पहुंच गई है। पिछले 2 दशकों में ऐसा पहली बार हो रहा जब कट्टर निरंकुश सत्ता झेलने वाली आबादी उन्मुक्त प्रजातंत्र में रहने वाली आबादी से अधिक है। लगभग एक दशक पहले केवल 7 देशों में अभिव्यक्ति की आजादी छीनी जा रही थी, पर अब 35 देशों में ऐसा हो रहा है। दुनिया के 47 देश समाचारों पर सरकारी सेंसरशिप झेल रहे हैं जबकि 37 देशों में मानवाधिकार संगठनों और सिविल सोसायटी की आवाज को कुचला जा रहा है। दुनिया के 30 देश ऐसे हैं, जहां चुनावों में सत्ता का पूरा दखल रहता है, यानि चुनाव निष्पक्ष नहीं होते।
दुनिया की 72 प्रतिशत आबादी निरंकुश सत्ता झेल रही है, जबकि महज 28 प्रतिशत आबादी प्रजातंत्र में सांस ले रही है। केवल 14 देशों में निरंकुश सत्ता से प्रजातंत्र में परिवर्तन हो रहा है, पिछले 50 वर्षों में यह सबसे कम संख्या है, इन देशों में दुनिया की महज 2 प्रतिशत आबादी रहती है। ऐसे देशों में सर्वाधिक, 5, अफ्रीका में हैं। दूसरी तरफ 42 देशों में, जहां दुनिया की 43 प्रतिशत आबादी है, प्रजातंत्र की राह छोड़कर निरंकुशता और तानाशाही की राह पर हैं। पिछले वर्ष यह हाल 33 देशों में और दुनिया की 36 प्रतिशत आबादी के साथ था। पिछले 10 वर्षों के दौरान दुनिया के 10 में से 7 देशों में प्रजातंत्र का पूरी तरह खात्मा हो गया।
एशिया-प्रशांत क्षेत्र में 90 प्रतिशत आबादी निरंकुश सत्ता या फिर निरंकुशता की तरफ जा रही सत्ता की मार झेल रही है। इस क्षेत्र में, चीन की तरह घोषित निरंकुश सत्ता भी है और भारत की तरह चुनावी निरंकुशता भी है| इस क्षेत्र में नेपाल, जापान, दक्षिण कोरिया, इंडोनेशिया और मंगोलिया जैसे देश प्रजातंत्र को सुरक्षित रखने में सफल रहे हैं। एल साल्वाडोर, हंगरी और भारत जैसे देशों में केवल प्रजातंत्र ही कमजोर नहीं पड़ा है बल्कि पूरी सामाजिक व्यवस्था ही ध्वस्त हो गयी है।
इस रिपोर्ट के अनुसार झूठी खबरें, अफवाह, सामाजिक ध्रुवीकरण और निरंकुश सत्ता – सब एक दूसरे को आगे बढाने में मदद करते हैं। आज पूरी दुनिया में यही हो रहा है। वैश्विक स्तर पर सबसे घातक यह है कि निरंकुश सत्ता अब अलग-थलग नहीं पड़ती, बल्कि यही दुनिया की मुख्य विचारधारा बन गयी है, और दुनिया को नियंत्रित भी कर रही है। वैश्विक अर्थव्यवस्था भी इससे अछूती नहीं है – अब वैश्विक स्तर पर 46 प्रतिशत से अधिक जीडीपी निरंकुश देशों के नियंत्रण में है, और यह आंकड़ा साल-दर-साल बढ़ता जा रहा है।