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मोहम्मद फैज़ल की सदस्यता बहाल करना लोकसभा सचिवालय का एक गलत फैसला-

मीलॉर्ड को राहुल के फंसने पर 10 साल बाद याद आया,अयोग्य ठहराने का फैसला “खतरनाक” है –

11 जनवरी, 2023 को लक्षद्वीप के NCP सांसद मोहम्मद फैज़ल को ट्रायल कोर्ट ने पूर्व कांग्रेस मंत्री पीएम सईद के दामाद हत्या के आरोप में दोषी ठहराया और 10 वर्ष कारावास की सजा सुनाई और नियमों के अनुसार 12 जनवरी को तत्काल प्रभाव से लोकसभा सचिवालय ने उसे सांसदी से अयोग्य कर सदस्यता समाप्त कर दी –

परंतु 25 जनवरी को केरल हाई कोर्ट ने उसकी सजा पर रोक लगा दी (Stay कर दिया) जिसे vacate कराने के लिए लक्षद्वीप प्रशासन सुप्रीम कोर्ट गया और फैज़ल ने अपनी सांसदी बहाल करने के लिए अभिषेक मनु सिंघवी से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करवा दी जबकि यह याचिका उसे हाई कोर्ट में ही लगानी चाहिए थी – अपनी ही पार्टी के नेता के दामाद की हत्या के आरोपी के लिए सिंघवी पापड़ बेल रहा है –

उधर चुनाव आयोग ने फैज़ल की सीट पर चुनाव कराने के लिए घोषणा कर दी मगर बाद में 27 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट में कहा कि वह हाई कोर्ट के सजा को निलंबित करने के फैसले के अनुरूप काम करेंगे लेकिन हाई कोर्ट के स्टे आर्डर पर रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट ने मना कर दिया था –

कल सुप्रीम कोर्ट में दोनों याचिकाओं पर सुनवाई से पहले ही लोकसभा सचिवालय ने मोहम्मद फैज़ल की सजा पर स्टे को ध्यान में रखते हुए उसकी सदस्यता बहाल कर दी –

फैज़ल की सदस्यता बहाल करने की मांग करने वाली याचिका और लक्षद्वीप प्रशासन की केरल हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाने की याचिका पर सुनवाई तो होने देते – यह फैसला सुप्रीम कोर्ट को करने देते कि सजा पर हाई कोर्ट द्वारा रोक लगाने भर से क्या सदस्यता बहाल हो सकती है और क्या इतने गंभीर अपराध के सिद्ध होने पर हाई कोर्ट ने सही स्टे लगाया है –

सजा पर हाई कोर्ट ने केवल रोक लगाईं थी लेकिन फैज़ल की दोषसिद्धि पर कोई फैसला नहीं दिया था और इसके अनुसार उसकी दोषसिद्धि अभी कायम है, सजा पर स्टे लगने से वह दोषमुक्त नहीं हो जाता और जब तक दोषमुक्ति न हो जाए, तब तक सदस्यता बहाल करना एक गलत फैसला माना जायेगा – फैज़ल अभी भी सजायाफ्ता मुजरिम ही माना जाएगा –

कल जब जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस नागरत्ना की पीठ से ASG केएम नटराज ने कहा कि Section 8(3) of the Representation of the People Act के अनुसार 2 साल या उससे ज्यादा की सजा होने पर सदस्यता स्वतः समाप्त हो जाती है, तब जस्टिस जोसेफ ने टिप्पणी करते हुए कहा कि “ये बहुत खतरनाक प्रावधान है और इसलिए आपको बहुत सावधान रहना चाहिए सजा सुनाते हुए” ( “But this section is very drastic.. that is why you have to be careful thinking about sentence,” )

जाहिर है हिंदुस्तान के शहजादे की गर्दन नप गई है इस कानून में और इसलिए 2013 के फैसले के 10 साल के बाद मीलॉर्ड को यह ख्याल आया है कि कानून बहुत सख्त है, सोच समझ कर फैसले करने चाहिए – यह क्यों नहीं सोचते कि 2013 में यदि सुप्रीम कोर्ट ने फैसला किया था तो वह भी बहुत सोच समझ कर ही किया होगा – आज आपको अपने से बहुत वरिष्ठ जजों के फैसले पर टिप्पणी करने का अधिकार नहीं होना चाहिए –

कल लोकसभा सचिवालय के अतिरिक्त सचिव को मैंने email के जरिए कह भी दिया है है कि सांसदी बहाल करने का फैसला गलत किया गया है –

अब हर केस में सजा होने के बाद कोशिश की जाएगी कि हाई कोर्ट से फैसले पर रोक लगवाने के प्रयास किए जाएं जिससे सदस्यता बची रहे और वही भ्रष्टाचार का नंगा नाच चलता रहे – स्पीकर ओम बिरला जी को जांच करनी चाहिए कि किसके दबाव में सचिवालय ने फैज़ल की सांसदी बहाल की –

राहुल गांधी तैयारी कर रहा है है हाई कोर्ट में सजा के खिलाफ अपील करने और सजा पर स्टे के लिए जिससे वह फिर से सांसद बन जाए –

(सुभाष चन्द्र)
“मैं वंशज श्री राम का”

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