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ऊर्जा भंडारण अनुप्रयोगों के लिए नया सुपरकैपेसिटर

इलेक्ट्रिक उपकरणों के संचालन में बैटरियों की भूमिका महत्वपूर्ण है। लेकिन, समय के साथ बैटरियाँ विद्युतीय चार्ज का भंडारण करने की अपनी क्षमता खो देती हैं, और इसीलिए उनकी शेल्फ-लाइफ सीमित होती है।

बेंगलुरु स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) के शोधकर्ताओं ने एक नया अल्ट्रा-माइक्रो सुपरकैपेसिटर विकसित किया है, जिसके बारे में बताया जा रहा है कि यह भारी मात्रा में इलेक्ट्रिक चार्ज को स्टोर करने में सक्षम है।

मौजूदा सुपरकैपेसिटर की तुलना में यह उपकरण आकार में बेहद छोटा और अधिक कॉम्पैक्ट है। संभावित रूप से इसका उपयोग स्ट्रीटलाइट्स से लेकर उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स, इलेक्ट्रिक कारों और चिकित्सा उपकरणों सहित विभिन्न उपकरणों में किया जा सकता है।

भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) के इंस्ट्रूमेंटेशन ऐंड एप्लाइड फिजिक्स विभाग (आईएपी) के शोधकर्ताओं द्वारा यह अध्ययन किया गया है। उनका कहना है कि नये विकसित कैपेसिटर अपने विशिष्ट डिजाइन के आधार पर इलेक्ट्रिक चार्ज को अधिक समय तक स्टोर कर सकते हैं।

पाँच वोल्ट पर चलने वाले कैपेसिटर को देखें, तो ये एक दशक बाद भी उसी वोल्टेज पर काम कर सकते हैं। लेकिन, मोबाइल फोन को पावर देने को उदाहरण के तौर पर लें, तो बैटरी की तरह वे लगातार ऊर्जा प्रवाह बनाये नहीं रख सकते। वहीं, सुपरकैपेसिटर, बैटरी और कैपेसिटर दोनों का सबसे अच्छा संयोजन हैं, और वे बड़ी मात्रा में ऊर्जा को स्टोर करने के साथ-साथ रिलीज भी कर सकते हैं। इसीलिए, अगली पीढ़ी के इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के लिए सुपरकैपेसिटर की अत्यधिक माँग है।

शोधकर्ताओं ने मौजूदा कैपेसिटर में उपयोग किए जाने वाले धातु इलेक्ट्रोड के बजाय चार्ज कलेक्टर के रूप में फील्ड इफेक्ट ट्रांजिस्टर (एफईटी) का उपयोग करके नये सुपरकैपेसिटर का निर्माण किया है। इस अध्ययन से जुड़ी शोधकर्ता प्रोफेसर आभा मिश्रा कहती हैं, “सुपरकैपेसिटर के लिए इलेक्ट्रोड के रूप में एफईटी का उपयोग कैपेसिटर में ट्यूनिंग चार्ज के लिए एक नया आयाम है।”

वर्तमान कैपेसिटर्स में आमतौर पर धातु ऑक्साइड-आधारित इलेक्ट्रोड का उपयोग होता है। लेकिन, खराब इलेक्ट्रॉन गतिशीलता के कारण उनकी अपनी सीमाएं होती हैं। शोधकर्ताओं ने इलेक्ट्रॉन गतिशीलता बढ़ाने के लिए मोलिब्डेनम डाइसल्फ़ाइड (MoS2) और ग्राफीन की परतों को मिलाकर हाइब्रिड एफईटी बनाने का फैसला किया। ठोस सुपरकैपेसिटर बनाने के लिए दो एफईटी इलेक्ट्रोड के बीच ठोस जेल इलेक्ट्रोलाइट का उपयोग किया जाता है। पूरी संरचना एक सिलिकॉन डाइऑक्साइड / सिलिकॉन आधार पर निर्मित की गई है।

प्रोफेसर मिश्रा कहती हैं,, “सुपरकैपेसिटर का डिजाइन महत्वपूर्ण हिस्सा है, क्योंकि आप दो प्रणालियों को एकीकृत कर रहे हैं।” दो प्रणालियाँ दो एफईटी इलेक्ट्रोड और जेल इलेक्ट्रोलाइट, एक आयनिक माध्यम हैं, जिनकी अलग-अलग चार्ज क्षमताएँ हैं।”

आईएपी में पीएचडी शोधार्थी और अध्ययन से जुड़े शोधकर्ताओं में शामिल विनोद पंवार कहते हैं, “ऐसा उपकरण बनाना चुनौतीपूर्ण था, जो ट्रांजिस्टर की सभी आदर्श विशेषताओं को प्राप्त कर सके। चूँकि, ये सुपरकैपेसिटर बहुत छोटे होते हैं, इसलिए इन्हें माइक्रोस्कोप के बिना नहीं देखा जा सकता, और निर्माण प्रक्रिया के लिए उच्च परिशुद्धता और हाथों एवं आँखों के उच्च समन्वय की आवश्यकता होती है।”

सुपरकैपेसिटर के निर्माण के बाद, शोधकर्ताओं ने विभिन्न वोल्टेज लगाकर उपकरण की इलेक्ट्रोकेमिकल क्षमता या चार्ज-होल्डिंग क्षमता का आकलन किया है। कुछ स्थितियों में इसकी क्षमता में 3000% तक वृद्धि देखी गई है। इसके विपरीत, ग्राफीन के बिना सिर्फ मोलिब्डेनम डाइसल्फ़ाइड वाले कैपेसिटर में समान परिस्थितियों में क्षमता में केवल 18% की वृद्धि देखी गई।

भविष्य में, शोधकर्ता यह पता लगाने की योजना बना रहे हैं कि क्या मोलिब्डेनम डाइसल्फ़ाइड को अन्य सामग्रियों के साथ बदलने से उनके सुपरकैपेसिटर की धारिता और भी अधिक बढ़ सकती है। वे कहते हैं कि नया सुपरकैपेसिटर पूरी तरह व्यावहारिक है। ऑन-चिप एकीकरण के जरिये इलेक्ट्रिक कार बैटरी या किसी भी लघु प्रणाली वाले ऊर्जा भंडारण उपकरण में इसका उपयोग किया जा सकता है।

शोधकर्ताओं की योजना सुपरकैपेसिटर पर पेटेंट के लिए आवेदन करने की है। यह अध्ययन शोध पत्रिका एसीएस एनर्जी लेटर्स में प्रकाशित किया गया है।

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