अनुज अग्रवाल , अध्यक्ष, मौलिक भारत
बेमौसम आँधी , तूफ़ान , बर्फ़बारी और बरसात से सब्ज़ी, फलों, गेहूं व तिलहन आदि की फसल का देश के आधे से ज़्यादा जिलो में दस से पचास प्रतिशत तक नुक़सान हुआ है।औसत रूप से बीस प्रतिशत तक रबी की फ़सलों की कम पैदावार होने का आँकलन स्वतंत्र समीक्षक व कृषि विशेषज्ञ कर रहे हैं।लगभग हर प्रभावित ज़िले से दो – चार किसानों के आत्महत्या अथवा सदमे से मौत के समाचार आ रहे हैं किंतु केंद्रीय कृषि मंत्रालय व खाद्य सचिव झूठ पर झूठ बोल रहे हैं व देश के किसानों व जनता को धोखा दे रहे हैं।
वे नहीं बता पा रहे हैं कि –
1) किसी राज्य में अगर ज़्यादा पैदावार भी जाती है तो क्या उसका फ़ायदा किस तरह उन राज्यो के किसानों को होगा जिनकी फसल बर्बाद हो गई है ?
2) मंत्रालय यह क्यों नहीं बता रहा है कि बेमौसम बरसात व बर्फ़बारी से फ़सलों की गुणवत्ता बुरी तरह प्रभावित हुई है। बिना गुणवत्ता का गेहूं खाकर आम जनता के स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ेगा वे कुपोषण व बीमारियों का शिकार होंगे उसका क्या?
3) मंत्रालय के अनुसार पिछले बर्ष गेहूं की फसल मौसम की मार के कारण 2.5%ही कम हुई थी किंतु वह यह नहीं बता पाया कि पर्याप्त भंडार होने के बाद भी देश में आटा 40% महँगा क्यों बिक रहा था ? अगर इस बर्ष आटे के दाम दुगने हो गए तो वह क्या कार्यवाही करेगा ?
4) गेहूं के समान वितरण व उसके भाव पर नियंत्रण के लिए मंत्रालय की क्या योजना है यह बताया नहीं जा रहा है? क्या जिन किसानों की सही फसल हुई है वे उन करोड़ों किसानों के नुक़सान की पूर्ति करेंगे जिनकी फसल बर्बाद हुई है? क्यों किसानों के हुए नुक़सान का सही आँकलन नहीं किया जा रहा ?
5) पिछले बर्ष बीमारियाँ फैलने से लाखों जानवर मर गए व बीमार भी हुए जिससे दूध का उत्पादन कम हुआ किंतु इससे भी ज़्यादा दूध उत्पादन में कमी कम गेहूं का उत्पादन होने से हुई थी क्योंकि उसी अनुपात में चारा भी कम पैदा हुआ व दूध 10-20% बढ़े दाम पर व चारा डेढ़ से दुगने दाम पर बिका। इस बार चारे व दूध के दाम और ज़्यादा होने जा रहे हैं और मंत्रालय इसको नियंत्रित रखने के उपाय नहीं बता रहा? स्थिति इतनी बिगड़ चुकी है कि वर्षों से इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर रहे देश में सरकार विदेशों से डेयरी उत्पाद आयात करने की योजना पर काम कर रही है, आख़िर क्यों?
6) मौसम विज्ञानी बता रहे हैं कि इस वर्ष अल नीनो के प्रभाव के कारण देश में बरसात 40% तक कम हो सकती है जिसका प्रभाव ख़रीफ़ की फ़सलों की मात्रा व गुणवत्ता पर व्यापक रूप से पड़ना तय है। इसको रोकने के लिए मंत्रालय क्या उपाय करने जा रहा है ?
सच्चाई यह है कि जलवायु परिवर्तन के कारण देश खाद्य व जल संकट की ओर बढ़ रहा है और अगर व्यवस्थित व दीर्घकालिक नीति व उपाय न किए गए तो यह बड़े संकट में बदल सकता है। हम जीडीपी आधारित कितना भी भौतिक विकास कर लें किंतु अगर भोजन व पानी न मिला तो सब धरा रहा जाएगा और हम कहीं के भी न रहेंगे।
भवदीय
अनुज अग्रवाल
अध्यक्ष, मौलिक भारत
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