विनीत नारायण
ये सुन कर दुनिया भर के ईसाई भड़क जाएँगे कि बाइबिल में ईसा मसीह की शिक्षाएँ नहीं हैं। पर गहन शोध के
बाद ये दावा किया है इतिहासकार हर्ष महान कैरे ने अपनी पुस्तक, ‘डिस्कवरिंग जीसस’ में। रूपा प्रकाशन से
प्रकाशित 387 पेज की ये अंग्रेज़ी पुस्तक ईसाइयों और ग़ैर ईसाइयों के बीच कौतूहल का विषय बन गई है। लेखक
का दावा है कि बाइबिल में जो शिक्षाएँ लिखी गई हैं वो पॉल के विचार हैं जो कभी ईसा मसीह से मिला ही नहीं
था। पर उसका दावा है कि ईसा मसीह ने यह ज्ञान उसे अवचेतन अवस्था में दिया। जिसे उसने लिपिबद्ध कर दिया।
हालाँकि पॉल ईसा मसीह के बारह प्रथम व मूल शिष्यों में से एक नहीं था फिर भी वो स्वयं को अपोस्टेल (प्रचारक)
होने का दावा करता है। जबकि ऐतिहासिक प्रमाण इसके विरुद्ध हैं।
यीशु के बारह प्रधान शिष्य थे जिन्हें अपोस्टेल (प्रचारक) कहा जाता है। इनमें से एक का नाम जूड्स इस्कारियट था
जिसने यीशु को धोखा दे कर गिरफ़्तार करवाया और सूली पर चढ़वाया। कहते हैं कि बाद में उसने प्रायश्चित में
आत्महत्या कर ली। जिसके बाद शेष ग्यारह प्रचारकों ने आपसी सहमति से एक और प्रचारक को अपने साथ ले
लिया पर वो पॉल नहीं था। परंतु आज का ईसाई धर्म पॉल की लिखी शिक्षाओं पर ही आधारित है।
‘डिस्कवरिंग जीसस’ पुस्तक ईसाई धर्म शास्त्रियों के लेखों पर किए गये शोध पर आधारित है। वे धर्म शास्त्री
जिन्होंने यीशु के बाद की शताब्दियों में लेखन कार्य किया इस शोध से ये सिद्ध होता है कि यीशु के असली प्रचारक
और पॉल न तो कभी एक साथ रहे और न ही उनके द्वारा दी गई शिक्षाओं में कोई समानता है। इस बात के भी
प्रमाण हैं कि पॉल जीवन भर इन प्रचारकों से लड़ता रहा, पर उन्होंने कभी भी उसे स्वीकारा नहीं।
पॉल द्वारा स्थापित मान्यता है कि संसार का अंत होगा और न्याय की घड़ी होगी। वो लिखता है कि इस दिन मृतक
अपनी क़ब्रों से नये शरीरों के साथ उठ खड़े होंगे और जो जीवित होंगे उन्हें भी नये शरीर मिलेंगे। इन सब का
फ़ैसला इनके कर्मों के आधार पर होगा। सदकर्म वाले स्वर्ग में सुख भोगेंगे और दुष्कर्म वाले नरक में अनंत काल तक
दुख भोगेंगे। पॉल आगे कहते हैं कि ये फ़ैसला यीशु ईश्वर के प्रतिनिधि के रूप में करेंगे। पॉल की सबसे महत्वपूर्ण
घोषणा यह थी कि जो मानते हैं यीशु ईश्वर के पुत्र हैं और मर कर ज़िंदा हुए हैं वो सब स्वर्ग जाएँगे।
जबकि लेखक का शोध इस ग्रंथ में यह सिद्ध करता है कि यीशु और उनके बारह प्रमुख प्रचारकों का यह मत क़तई
नहीं था। वे तो पुनर्जन्म के सिद्धांत में विश्वास करते थे जो कि व्यक्ति के पूर्वजन्म के कर्मों पर आधारित होता है।
जन्म-मृत्यु के इस निरंतर चक्र से आत्मा तभी मुक्त हो सकती है जब उसे आध्यात्मिक साधना के द्वारा आत्म
साक्षात्कार हो जाए। ईसा मसीह की ये शिक्षाएँ आज के प्रचलित ईसाई धर्म (पॉल द्वारा प्रतिपादित) के बिलकुल
विपरीत हैं और वैदिक धर्म के समान हैं। ये बात दूसरी है कि इसी लेखक ने अपने दूसरे एक ग्रंथ ‘ऐन आर्यन जर्नी’ में
यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि आर्य बाहर से भारत आए थे और इसलिए वैदिक ज्ञान भी बाहर से ही भारत
आया।
‘डिस्कवरिंग जीसस’ पुस्तक में लेखक ने बाइबिल से ही प्रमाण लेकर पॉल और मूल प्रमुख प्रचारकों के बीच मतभेद
को दर्शाया है। इसी तरह बाइबिल से लिये गये अन्य उदाहरणों की सहायता से ईसाई धर्म की तमाम मौजूदा
मान्यताओं को सिरे से ख़ारिज किया है, क्योंकि ये मान्यताएँ पॉल द्वारा प्रतिपादित हैं, यीशु के प्रमुख शिष्यों द्वारा
नहीं। इसके अलावा भी ईसाई पादरियों के द्वारा प्रारंभिक सदियों में लिखे गये लेखों के आधार पर इस पुस्तक के
लेखक ने यह सिद्ध किया है कि वे पॉल को यीशु का प्रमुख शिष्य नहीं मानते थे और उसकी शिक्षाओं से सहमत नहीं
थे। मसलन यीशु के भाई जेम्स जो यीशु की मृत्यु के बाद जेरुसलम के बिशप बने और प्रमुख प्रचारकों के चर्च के
मुखिया बने, दुर्भाग्य से उन लोगों के लेख आज उपलब्ध नहीं हैं। केवल वही साहित्य उपलब्ध हैं जो बहुत सावधानी
से पैक करके मिस्र मिस्र में गाढ़ दिया गया था जिसे अब ‘नाग हमादी’ पुस्तकालय के नाम से जाना जाता है।
जितनी सावधानी से पैक किया गया है वही इस बात का प्रमाण है कि उन्हें इस मूल साहित्य को नष्ट किए जाने का
डर था। इसके अलावा पॉल के अनुयायियों ने मूल प्रचारकों पर हमले की भावना से या उनका मज़ाक़ उड़ाने के
लिए जो कुछ आगे की सदियों में लिखा उससे भी अपोस्टेल (प्रचारक) के विचारों का पता चलता है।
पुस्तक में आगे इस बात का वर्णन है कि कैसे पॉल और पौलाइन चर्च ने ‘न्यू टेस्टामेंट’ के साथ छेड़छाड़ की। इससे
पता चलता है कि केवल ‘गोस्पेल ऑफ़ मैथ्यू’ के ही लेख ही शुद्ध हैं जिन्हें प्रचारकों के शिष्यों ने स्वीकार किया था
क्योंकि ये हिब्रू भाषा में लिखे गये थे जिनका बाद में ‘गोस्पेल ऑफ़ मार्क’ ने यूनानी भाषा में अनुवाद किया था।
हालाँकि इसमें भी एक दो बातें ऐसी हैं जो पॉल के सिद्धांतों का समर्थन करती हैं। उदाहरण के तौर पर यीशु को
आध्यात्मिक दर्जा देने के लिए उनके जन्म को कुँवारी माँ के गर्भ से हुआ बताना, उनके चमत्कारों को महिमामंडित
करना या उनका मर कर पुनर्जीवित होना। ये अंतिम बात पॉल ने इसीलिए जोड़ी ताकि वह अपने ‘अंतिम न्याय’ के
सिद्धान्त को स्थापित कर सके।
इस तरह बाइबिल के ही उदाहरणों से लेखक ने बार-बार पॉल के सिद्धांतों और मान्यताओं को ग़लत सिद्ध करने का
प्रयास किया है। लेखक ईसाई धर्म गुरुओं को इस विषय में उससे शास्त्रार्थ करने की खुली चुनौती भी देता है। आश्चर्य
की बात है कि 2022 में प्रकाशित इस ग्रंथ में उठाए गए विषयों पर ईसाई जगत से चुनौती देने अभी तक कोई
सामने नहीं आया है। अगर ऐसा हो तो बहुत सारी गुत्थियां सुलझ सकती हैं और भ्रांतियाँ भी दूर हो सकती हैं।
क्योंकि एक संत, योगी या तत्ववेत्ता किसी भी धर्म का मानने वाला क्यों न हो जब वो साधना की चरम सीमा पर
पहुँचता है तो उसे जो आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त होता है वो सार्वभौमिक होता है। तब धर्मों के बीच कोई मतभेद रह
ही नहीं जाता। जो मतभेद आज दिखाई देता है वह आध्यात्मिकता या रूहानियत का आवरण मात्र है।