यह विडंबना ही है कि चौतरफा चुनौतियां झेल रहे किसानों को राहत देने के लिये दी जाने वाली प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के आवंटन में चतुर-चालाकों ने फर्जीवाड़ा कर डाला। नियंत्रक व महालेखा परीक्षक यानी कैग की वह रिपोर्ट चौंकाती है, जिसमें उल्लेख है कि एक राज्य में ‘प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि’ योजना में करीब 38 हजार 105 अयोग्य किसानों ने सरकार के करीब चालीस करोड़ से अधिक रुपये डकार लिये।
वैसे यह जानकारी प्रधानमंत्री किसान पोर्टल पर उपलब्ध है। जमीनी स्तर पर यदि मामले की पड़ताल हो तो फर्जीवाड़े के दायरे में निश्चित रूप से विस्तार पाया जायेगा। यदि देश के सभी राज्यों में इस दिशा में गंभीर जांच-पड़ताल हो तो फर्जीवाड़े का आकार बड़ा हो सकता है। यह विडंबना रही है कि देश का असली किसान ऑनलाइन व्यवस्था व नई आर्थिकी को लेकर ज्यादा जानकार व जागरूक नहीं रहा है। कभी वह सूदखोरों, बिचौलियों तथा आढ़तियों की चपेट में रहा है तो अब नये जमाने के पढ़े-लिखे ठगों ने किसानों के हक का दोहन करना शुरू कर दिया है। जाहिर है यह मामला सिर्फ अयोग्य किसानों का ही नहीं है। तंत्र की काली भेड़ें भी इस घपले में शामिल हो सकती हैं। बिना विभागीय कर्मचारियों व अधिकारियों की शह के ऐसा संभव नहीं है कि कोई वास्तविक जरूरतमंद किसानों का हक हड़प ले।
यह बात तो तय है कि जब से किसानों को राहत-मुआवजा व सब्सिडी राशि ऑनलाइन सिस्टम के जरिये मिलने शुरू हुई है किसी हद तक धांधलियों पर रोक लगी है, अन्यथा पहले तो बिचौलियों के पौ-बारह बने रहते थे। किसानों का अंगूठा लगाकर बिचौलिये दशकों तक मौज करते रहे हैं। देश की निरक्षरता का स्तर उनके लिये वरदान साबित हुआ करता था। हालांकि, अब देश में साक्षरता की दर में सुधार और नई पीढ़ी के किसानों की जागरूकता से ऐसी नकारात्मक प्रवृत्तियों पर लगाम लगाने में मदद मिल सकी है। लेकिन अभी इस दिशा में पारदर्शी व्यवस्था बनाने हेतु गंभीर प्रयासों की जरूरत है।
किसानों को राहत देने को बनी योजनाओं में फर्जीवाड़ा हमारी व्यवस्था की खामियों की ओर इशारा करता है, वहीं हमारे समाज में नैतिक पतन की स्थिति को भी दर्शाता है। आखिर कितना पैसा आता है सम्मान राशि में और इतने पैसे से लोग कितने समय तक फायदा ले सकते हैं? जाहिर बात है कि यह राशि कोई बहुत बड़ी रकम नहीं है, मगर किसान को सम्मानजनक ढंग से थोड़ी राहत देने की कोशिश जरूर है। समाज मे नैतिक पराभव की स्थिति देखिये कि कुछ लाभार्थियों ने पत्नी व नाबालिग बच्चों के नाम से भी पैसे ले लिये। उनके आधार कार्ड का भी दुरुपयोग किया गया है।
विडंबना देखिये कि करीब 38 हजार से अधिक ऐसे किसान थे, जो आयकरदाता थे, इसके बावजूद उन्हें 38 हजार करोड़ का भुगतान किया गया। मामले का खुलासा होने के बावजूद रुपये वापस लौटाने वालों की संख्या बेहद कम है। निस्संदेह, तंत्र की काहिली के अतिरिक्त यह मानवीय मूल्यों के क्षरण का भी ज्वलंत उदाहरण है। अकसर सरकारों पर किसानों के दोहन के आरोप लगते रहे हैं, लेकिन अब समाज में ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जो सरकार का दोहन करने में पीछे नहीं रहते। ऐसे वक्त में जब तकनीकी उन्नति से व्यवस्था के छेदों पर लगाम लगने लगी है, तो सरकारों को भी फुलप्रूफ व्यवस्था की ओर बढ़ना चाहिए। जो किसान वास्तव में जरूरतमंद हैं उनकी पहचान करके ही मदद की जानी चाहिए।
कई अन्य योजनाओं के बारे में भी पारदर्शी व सुरक्षित व्यवस्था होनी चाहिए ताकि किसी भी तरह के दुरुपयोग की गुंजाइश न रह जाये। हालांकि, वर्ष 2020 में ही केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों को पत्र जारी करके स्पष्ट कर दिया था कि यदि किसी अयोग्य व्यक्ति को किसान सम्मान निधि का पैसा दिया जाता है तो उसकी रिकवरी की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की होनी चाहिए, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि गलत तरीके से ली गई प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि में से केवल दस प्रतिशत के करीब रकम अयोग्य लोगों से वापस ली जा सकी है।