भारत आज भी गांवों का ही देश है। भारतीय जनमानस में भी ग्रामीण परिवेश और ग्रामीण जन के प्रति गहरी संवेदनाएं हैं, लेकिन लोकतंत्र का चौथा पाया प्रेस आज गांवों से नहीं बल्कि शहरों से ही चलता प्रतीत होता है। सच तो यह है कि भारत आज भी गांवों में ही परिलक्षित और प्रतिबिंबित होता है। भारत की पहचान आज भी उसके गांवों से ही है, शहरों से नहीं। दूसरे शब्दों में कहें तो भारत का अतीत भी गांव ही है और भारत का वर्तमान भी गांव ही हैं, इसलिए पत्रकारिता के क्षेत्र में भी गांवों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। गांवों की पत्रकारिता को एक तरह से नजरअंदाज सा किया जा रहा है और अक्सर यह देखा जाता है कि छोटे-छोटे गाँवों की बहुत सी ऐसी खबरें होती हैं जो राष्ट्रीय स्तर की बनती हैं। वास्तव में सीमित संसाधनों के साथ आज ग्रामीण पत्रकारिता करना बहुत ही चुनौतीपूर्ण कार्य हो गया है। गानों में संसाधनों की कमी होती है और गांव के पत्रकारों को इन कमियों के कारण पत्रकारिता के क्षेत्र में जूझना पड़ता है। सूदूर ग्रामीण इलाकों से समाचार, सूचनाओं, फोटो आदि का संकलन कर उसे समाचार पत्र तक पहुंचाना कोई आसान काम नहीं है। आज कोई भी गांव की खबर यदि राष्ट्रीय स्तर की बनती है तो यह सब ग्रामीण पत्रकारों, ग्रामीण पत्रकारिता के कारण ही मुमकिन या संभव हो पाता है। लेकिन यह विडंबना ही कही जा सकती है कि आज ग्रामीण पत्रकारों व ग्रामीण पत्रकारिता को वह स्थान नहीं मिल पाता है जो कि वास्तव में उन्हें मिलना चाहिए। यह बहुत ही संवेदनशील है कि बहुत सी स्थितियों में तो ग्रामीण पत्रकार को दी गई खबर के लिए कोई श्रेय तक नहीं मिलता है। राष्ट्रीय स्तर पर महत्व रखने वाली ग्रामीण स्तर से उठी खबर पर ग्रामीण पत्रकारों का नाम तक नहीं होता जो कि बड़ी मेहनत से उस खबर को सबसे पहले उठाते हैं। दरअसल, ग्रामीण पत्रकारिता बहुत आसान दिखती है लेकिन वह इतनी आसान नहीं होती, ग्रामीण मुद्दों को उठाकर राष्ट्रीय स्तर पर ले आना कोई हंसी-खेल नहीं होता है । आज ग्रामीण पत्रकारों के समक्ष अनेक प्रकार की चुनौतियां हैं, मसलन ग्रामीण इलाकों मे पत्रकारों के लिए सबसे बड़ी चुनौती अनियमित तनख्वाह(वेतन) है। उन्हें न के बराबर वेतन मिलता है, संसाधनों की भी उनके पास कमी होती है। ग्रामीण पत्रकारों के लिए सुरक्षा भी एक मुद्दा है, उन पर बहुत बार स्थानीय, राजनैतिक दबाव होते हैं। पैसों के प्रभाव के कारण पेड न्यूज़ का बोलबाला हो गया है। ग्रामीण पत्रकारों को ऊपरी दबाव, जात-पात, राजनीति और गरीबी से लड़ना पड़ता है। भ्रष्टाचार, चोरी, किन्हीं छुपे हुए गूढ़ रहस्यों को उजागर करने वाले मुद्दों पर खबर प्रकाशित करने पर ग्रामीण पत्रकारों को ऊंचे रसूख वाले लोगों, नेताओं या प्रभुत्व शाली लोगों के बहुत ही अनुचित दबाव(प्रेशर) का सामना करना पड़ता है। वास्तव में ग्रामीण लोकतंत्र के इन पत्रकारिता के पहरूओं को सत्ता, ताकत या किन्हीं रसूख वाले बड़े लोगों द्वारा दबाया जाता रहा तो यक्ष प्रश्न यह उठता है कि ऐसी स्थितियों में समाज में, देश में व्याप्त भ्रष्टाचार, अशिक्षा, बेरोजगारी, महंगाई ,आम जनता की आवाज़ को आखिर उठाएगा कौन ? एक ग्रामीण पत्रकार ग्रामीण अंचल के विभिन्न मुद्दों, ग्राम के विकास के लिए पल-पल जूझता है, यदि सच दबता रहा और आम जनता के सामने नहीं आया तो इस समाज, इस देश, राष्ट्र का आखिर क्या होगा, यह विचारणीय है। पत्रकारिता सामाजिक आंदोलनों को बल देने का काम करती है तो वह समाज में हो रहे गलत कार्यों को भी निष्पक्ष होकर उठाती है। वह भ्रष्टाचार की सरेआम पोल खोलती हैं तो वहीं समाज में हो रहे या किए जा रहे या छुपाये जा रहे गलत कामों के खिलाफ भी अपनी आवाज़ को बुलंद करती है। आज ग्रामीण पत्रकार मूलभूत समस्याओं को उठाते हैं। सामाजिक सरोकारों से जुड़े मुद्दों को आम जनता के सामने लाते हैं। जनसरोकार और जोर-जुल्म के खिलाफ ग्रामीण पत्रकारों की कलम चली है, लेकिन शहरी पत्रकारिता के बीच बहुत बार ग्रामीण पत्रकारों की आवाज़ दब जाती है। एक ग्रामीण पत्रकार समाज में व्याप्त कुरीतियों, बुराइयों, अनियमितताओं के खिलाफ जन जागरण करके वह लोगों को सदैव सजग व जाग्रत करता है। आज ग्रामीण पत्रकारिता के क्षेत्र में बहुत सी संभावनाएं हैं। ग्रामीण पत्रकारिता में आज बहुत से क्षेत्र हैं, जिन पर ग्रामीण पत्रकार अपनी कलम चला रहे हैं। मसलन कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य, रीति-रिवाज, परंपराएं, समाज में भेदभाव, गांव की सभ्यता-संस्कृति, गरीबी, कुपोषण, वन, विभिन्न सरकारी योजनाएं आदि आदि। सच तो यह है कि ग्रामीण पत्रकारिता और पत्रकार सामाजिक जनमत को अभिव्यक्ति देने का काम करते हैं। वे नयी जानकारियां समाज को उपलब्ध कराते हैं। समाज को उचित दिशा-निर्देश पत्रकारिता से मिलता है। धार्मिक-सांस्कृतिक पक्षों का निष्पक्ष विवेचन इससे संभव होता है। स्वस्थ मनोरंजन तो ग्रामीण पत्रकारिता करती ही है।सामाजिक कुरीतियों को मिटाने की दिशा में भी ग्रामीण पत्रकारिता व पत्रकार काम करते हैं। ये ग्रामीण पत्रकारिता व पत्रकारों के कारण से ही संभव हो पाता है कि आज कृषि जगत व कुटीर उद्योग जगत की उपलब्धियां आम जन मानस के सामने आ पाती हैं। सामान्य जनों को अपने अधिकारों का पता चल पाता है।समय समय पर सरकारी नीतियों, कार्यक्रमों का विश्लेषण व प्रसारण हो पाता है। ग्रामीण पत्रकारिता आम जनता में वसुधैव कुटुंबकम के भाव जगाने का काम करती है और संकटकालीन स्थितियों में हम सभी का मनोबल बढ़ाती है। बावजूद इसके यह हमारे देश की विडंबना ही कही जा सकती है कि आज राष्ट्रीय स्तर पर मीडिया में ग्रामीण पत्रकारों, ग्रामीण पत्रकारिता का प्रतिनिधित्व हासिये पर है। आज जरूरत इस बात की है कि पत्रकारिता में गांवों के समाचारों, गांवों पर आधारित स्टोरीलाइन, सूचनाओं, तथ्यों आदि को अधिकाधिक स्थान मिलना चाहिए। गांवों की पत्रकारिता से हमारे गांव निश्चित ही सुदृढ़ होंगे और गांव सुदृढ़ होंगे तो देश तो अपने आप सुदृढ़ व और अधिक सशक्त होगा ही।
(आर्टिकल का उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है।)
सुनील कुमार महला,