आर.के. सिन्हा
कनाडा के रक्षा मंत्री हरजीत सिंह सज्जन के भारत के दौरे के कार्यक्रम की जब घोषणा हुई थी तो वास्तव में अच्छा लगा था। वे भारतीय मूल के कैनेडियन नागरिक है और कनाडा में रक्षा मंत्री हैं। उनके दो साल पहले कनाडा का रक्षा मंत्री बनने पर भारत में भी उत्साह का वातावरण बन गया था। सारे भारत को आमतौर पर तथा पंजाब और पंजाबियों को खासतौर पर गर्व का एहसास हो रहा था कि उनका ही एक भाई सात समंदर पार जाकर इतने ऊंचे मुकाम पर पहुंच गया है।
विवादास्द दौरा
दुर्भाग्यवश हरजीत सिंह सज्जन का भारत का दौरा शुरू होने से पहले ही विवादों के घेरे में आ गया जब पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने स्पष्ट कर दिया कि वे सज्जन से कतई नहीं मिलेंगे। उन्होंने इसकी वजह यह बताई कि वो खालिस्तान के समर्थक रहे हैं। उनके इस फैसले की कई स्तरों पर आलोचना भी हुई।
सज्जन और खालिस्तान
सज्जन लाख मना करते रहे कि उनके खालिस्तानी तत्वों से कनाडा में कोई संबंध नहीं हैं, पर उनके विगत गुरुवार को पंजाब दौरे के दौरान सिख चरमपंथियों ने खालिस्तान के समर्थन में नारेबाजी की और स्वर्ण मंदिर के बाहर शिरोमणि गुरुद्वारा (एसजीपीसी) प्रबंधन समिति के कार्यबल के स्वयंसेवियों से भिड़ भी गए। ये प्रदर्शनकारी कट्टरपंथी शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर) और अन्य चरमपंथी संगठनों के थे और स्वर्ण मंदिर के बाहर ही खड़े रहे। इनके हाथों में सज्जन का स्वागत और पंजाब सरकार की आलोचना वाले पोस्टर, बैनर और प्लेकार्ड थे। सज्जन जैसे ही स्वर्ण मंदिर पहुंचे, इन्होंने खालिस्तान के समर्थन में नारेबाजी करनी शुरू कर दी। एसजीपीसी कार्यबल के सदस्यों ने इन्हें सज्जन के पास जाने से रोक दिया। सज्जन ने स्वर्ण मंदिर में मत्था टेका और लगभग एक घंटे तक वहीं रहे। उन्होंने परिक्रमा भी की और कुछ देर बैठे। पंजाब जाने से पहले राजधानी दिल्ली में उनका भव्य स्वागत हुआ। रक्षा मंत्री अरुण जेटली ने भी उनसे भेंट की। दोनों नेताओं ने भारत और कनाडा के बीच रक्षा और सुरक्षा सहयोग बढ़ाने के मुद्दे पर विस्तृत चर्चा की।
क्यों उठाया 84 के दंगों को
पर क्या सज्जन को अपने भारत दौरे के समय 1984 में सिख विरोधी दंगों जैसे संवेदशील सवाल को उठाना चाहिए था? उस कत्लेआम को तो कतई जायज नहीं माना जा सकता। सबको मालूम है कि उस कत्लेआम को लेकर कांग्रेस के गुंडे खुलेआम लिप्त थे। कांग्रेस के कई बड़े नेताओ ने तो बजाप्ता दंगाइयों की कमान संभल राखी थी लेकिन, यह भी तो किसी अन्य देश के रक्षा मंत्री को शोभा नहीं देता कि वो इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भड़काए गए उन दंगों को मसले सार्वजनिक रूप से को उठाए। उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस के साथ एक साक्षात्कार में कहा कि “1984 में भारत में सिख विरोधी दंगों से उनके देश में रहने वाले सिख भी बहुत आहत हुए थे। उन दंगों के संबंध में सोचकर मुझे लगता है कि हम कितने भाग्यशाली हैं कि कनाडा में रहते हैं,जिधर मानवाधिकारों को लेकर संवेदनशीलता बरती जाती है”। जब दिल्ली में सिखों का कत्लेआम हो रहा था तब केन्द्र में कांग्रेस की सरकार थी। पी.वी.नरसिंह राव देश के गृह मंत्री थे। वे मौनी-बाबा के अंदाज में तीन दिनों तक अज्ञातवास में चले गए थे, जब सिख भाई खुलेआम मारे जा रहे थे। मैं तब दिल्ली में ही था। मैंने उन काले दिनों को अपनी आंखों से देखा है। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सारे देश में माहौल तनावपूर्ण हो गया था। सारा देश स्तब्ध था। जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री पद की शपथ ले रहे थे, ठीक उसी वक्त दिल्ली की सड़कों-कालोनियों में कत्लेआम चालू हो चुका था। “खून का बदला खून”, “सरदार गद्दार हैं”। इस तरह के नारे लगाते हुए हत्यारे सिखों को सरेआम जला रहे थे। उनकी संपत्ति लूट रहे थे। कांग्रेस के कई बड़े नेताओं जैसे हरकिशन लाल भगत, जगदीश टाइटलर, धर्मदास शास्त्री, सज्जन कुमार आदि सिखों के खिलाफ भीड़ को उकसा रहे थे।इन नेताओं को सैकड़ों लोगों ने दंगा भड़काते हुए देखा। अख़बारों ने लिखा। फोटो भी छपे। राजीव गाँधी प्रधानमंत्री थे। उन्होंने तो दंगों को रोकने की कोशिश की न ही खेद व्यक्त किया। मात्र इतना कहा कि “जब कोई बड़ा बरगद का वृक्ष गिरता है, तब जमीं तो हिलती ही है।“ यानि, दंगाईयों को प्रकारांतर से छुट दे दी।
31 अक्टूबर. 1984 को इंदिरा गांधी की हत्या हुई और 1 नवंबर से देश में लोकतंत्र का खून हुआ। अगले तीन दिन में देशभर में हजारों सिख मारे गये। सबसे ज्यादा बुरी हालत थी दिल्ली में। अकेले दिल्ली में करीब तीन हजार सिखों की हत्या हुयी। पूर्वी दिल्ली में कल्याणपुरी, शाहदरा. पश्चिमी दिल्ली में सुल्तानपुरी,मंगोलपुरी, नांगलोई, दक्षिणी दिल्ली में पालम कॉलोनी और उत्तरी दिल्ली में सब्जी मंडी और कश्मीरी गेट जैसे कुछ ऐसे इलाके हैं जहां सिखों के पूरे-पूरे परिवार खत्म कर दिए गये। सागरपुर, महावीर एनक्लेव और द्वारकापुरी – दिल्ली कैंट के वो इलाके हैं जहां सिख विरोधी हिंसा में सबसे ज्यादा मौते हुईं। हिंसा के शिकार लोग जब पुलिस से मदद मांगने गये तो पुलिस ने उनकी शिकायत दर्ज करने से इंकार कर दिया। ऊपर का आदेश है, कहकर भगा दिया। इन तथ्यों से इंकार नहीं किया जा सकता। पर कनाडा के रक्षामंत्री उन दंगों को भारत आकर उठाए यह बात भी समझ से परे है। यह तो सीधे तौर पर भारत की सार्वभौम सत्ता पर प्रश्नचिन्ह उठाना हुआ। देश के आंतरिक मामलों में इस प्रकार की सीधी दखलंदाजी अच्छी बात नहीं है।
कनाडा में खालिस्तानी
बेशक, कनाडा हमारा मित्र राष्ट्र है। कनाडा में लाखों भारतवंशी बसे हुए हैं। पर यह भी सच है कि वहां पर खालिस्तानी तत्व मजबूत रहे हैं। कनाडा की ओंटारियो विधानसभा ने हाल ही में 1984 के सिख विरोधी दंगों को सिख नरसंहार और सिखों का राज्य प्रायोजित कत्तलेआम करार देने वाला एक प्रस्ताव पारित किया था। ये सब गंभीर मामले हैं। ये भारत के आतंरिक मामलों में हस्तक्षेप करने के समान है। इस तरह की बातों से साफ होता है कि कनाडा में भारत विरोधी तत्व सक्रिय हैं। ये खालिस्तानी समर्थक हैं। आरोप थे कि पंजाब के हालिया विधान सभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को कनाडा से करोड़ों रुपये की मदद खालिस्तानी कर रहे थे। उनका मकसद और कुछ नहीं बस पंजाब राज्य में माहौल खराब करना है। पंजाब में केजरीवाल को खालिस्तानी आतंकवादियों का समर्थन प्राप्त होने के आरोप भी लगते रहे हैं। और क्या कोई भूल सकता है कनिष्क विमान हादसा। कहा जाता है कि 1984 में स्वर्ण मंदिर से आतंकियों को निकालने के लिए हुई सैन्य कार्रवाई के विरोध में यह हमला किया गया था।
मांट्रियाल से नई दिल्ली जा रहे एयर इंडिया के विमान कनिष्क 23 जून 1985 को आयरिश हवाई क्षेत्र में उड़ते समय, 9,400 मीटर की ऊंचाई पर, बम से उड़ा दिया गया था और वह अटलांटिक महासागर में दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। इस आतंकी हमले में 329 लोग मारे गए थे, जिनमें से अधिकांश भारतीय मूल के कनाडाई नागरिक ही थे। इसी दिन एक घंटे के भीतर जापान की राजधानी टोक्यो के नरिता हवाई अड्डे पर एयर इंडिया के एक अन्य विमान में विस्फोट किया गया था जिसमें सामान ढोने वाले दो व्यक्तियों की मौत हो गई थी। इस मामले में इंदरजीत सिंह रेयात एकमात्र व्यक्ति है, जिसे दोषी ठहराया गया। जिस समय उसमें बम विस्फोट हुआ, तब वह लंदन के हीथ्रो हवाई अड्डे से क़रीब 45 मिनट की दूरी पर था। कनिष्क विमान ब्रिटेन के समय के मुताबिक सुबह आठ बजकर 16 मिनट पर अचानक राडार से ग़ायब हो गया था और विस्फोट के बाद विमान का मलबा आयरलैंड के तटवर्ती इलाक़े में बिखर गया था।दोनों बम कनाडा के वैंकुवर शहर के खालिस्तानी चरमपंथियों ने 1984 के स्वर्ण मंदिर को उग्रवादियों से मुक्त कराने के लिए की गई सैन्य कार्रवाई का बदला लेने के लिए किया था। भारत में खालिस्तान नामक अलग सिख राज्य की मांग के लिए आंदोलन कर रहे बब्बर खालसा नामक सिख अलगाववादी गुट के सदस्य मुख्य संदिग्धों में शामिल थे। बब्बर खालसा यूरोप और अमेरिका में ग़ैर-क़ानूनी आतंकवादी समूह के रूप में प्रतिबंधित था। इसलिए ये तो सबको पता है कि कनाडा में लंबे समय से भारत विरोधी गतिविधियां चलाते रहे हैं, खालिस्तानी। यह सभी को पता है ही कि इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दिल्ली और समूचे भारत में हजारों सिखों के कत्लेआम में अपनी भड़काऊ और कुटिल भूमिका को लेकर पिछले 32 साल से भी ज्यादा समय से कांग्रेस बैकफुट पर ही रहती आई है। पिछले तीन दशकों से भी ज्यादा समय से 1984 के पीड़ितों के परिवारों को इंसाफ नहीं मिल पाना, न सिर्फ भारतीय लोकतंत्र और न्यायपालिका पर एक धब्बा है, बल्कि यह नरसंहार के लिए जिम्मेदार कांग्रेस और इसके दागी नेताओं को भी लगातार कठघरे में खड़ा करती है।बहरहाल, हरजीत सिंह सज्जन की विवादास्पद भारत यात्रा के बाद भी भारत-कनाडा के संबंध और मजबूत होते रहेंगे। दोनों देश एक-दूसरे से परस्पर सहयोग करते रहेंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत-कनाडा संबंधों को प्रगाढ़ बनाने को लेकर शुरू से ही गंभीर रहे हैं। प्रधानमंत्री पद पर आसीन होने के बाद वे कनाडा की यात्रा पर गए भी थे। तब भारत ने कनाडा से तीन हज़ार टन से ज़्यादा यूरेनियम खरीदने के एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे।
आशा की जानी चाहिए कि छोटे-मोटे विवादों को दरकिनार कर दोनों देश अपने मैत्रीपूर्ण संबंधों को नई दिशा देते रहेंगे।
(लेखक राज्य सभा सांसद एवं हिन्दुस्थान समाचार बहुभाषीय एजेंसी के अध्यक्ष हैं)