Shadow

बदलते मौसम के अनुसार नई नीति ज़रूरी

मौसम के मिजाज में आये अप्रत्याशित बदलाव ने नागरिकों के साथ मौसम विज्ञानियों को चौंकाया है। सामान्य लोग भले ही कहते रहे हैं कि मई में फरवरी-मार्च का अहसास हुआ है, क्या मई में गर्मी आयेगी?और गर्मी आ गई। यह सामान्य बात नहीं है। इस परिवर्तन के गहरे निहितार्थ हैं और हमारे मौसम चक्र के लिये यह शुभ संकेत कदापि नहीं है। मौसम के बदलावों से हमारी वनस्पति, फसलों व फलों के उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और उनका स्वाभाविक विकास भी बाधक होता है।

यह असामान्य मौसम आज के दौर का नया सामान्य है। पिछले मार्च में अचानक गर्मी का बढ़ जाना और मई में तापमान का सामान्य से कम हो जाना अच्छा संकेत नहीं है मार्च में गेहूं की फसल के पकने के समय बढ़ी गर्मी से इसके उत्पादन में कमी आने की बात सामने आई थी। चौंकाने वाली बात यह भी है कि मई माह में हिमालय पर्वत शृंखलाओं की ऊंची चोटियों पर हिमपात हुआ। इस मौसम में जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड व हिमाचल में कम ऊंचाई वाले इलाकों में हिमपात होना आश्चर्य की ही बात है। ये दुर्लभ घटनाएं हमारी चिंता का विषय होनी चाहिए।

कहा जा रहा है कि रिकॉर्ड निम्न तापमान गर्मी से राहत देने वाला है, लेकिन मौसम के मिजाज में बदलाव हमारी चिंता का विषय होना चाहिए। यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि मौसम में इस तरह के उतार-चढ़ाव दरअसल जलवायु संकट का विस्तार बताये जाते हैं। आशंका जतायी जा रही है कि इस बदलाव का असर मानसून की गुणवत्ता पर भी पड़ सकता है। जो एक गंभीर विश्लेषण की मांग करता है। मौसम विज्ञानियों को आशंका है कि पृथ्वी के लगातार गर्म होने के बीच मौसम के चरम की ऐसी घटनाएं हमारे सामान्य जीवन पर प्रतिकूल असर डाल सकती हैं। जिसकी चुनौती का समय रहते मुकाबला जरूरी है।

वैज्ञानिक आशंका जता रहे हैं कि वर्ष 2031 से 2060 के बीच भीषण गर्मी पड़ सकती है। गर्मी की यह तीव्रता कालांतर वर्ष 2071 से 2100 के बीच दोगुनी हो सकती है। मौसम विज्ञानियों के अध्ययन से पता चलता है कि भारत में वर्ष 2000 से 2004 और 2017 से 2021 के बीच अत्यधिक गर्मी से होने वाली मौतों में 55 फीसदी की वृद्धि हुई है। अरब सागर के गर्म होने से उत्तर पश्चिम और मध्य भारत में गर्मी की तीव्रता में तेजी आने की आशंका जतायी जा रही है। भविष्य के आसन्न संकट को देखते हुए हमें ठोस योजनाएं बनाने की जरूरत है। सार्वजनिक सुरक्षा की बड़ी चिंताओं को ध्यान में रखते हुए ताप से बचाव की एक व्यापक कार्य योजना बनाना वक्त की जरूरत है।

शहरों को नुकसान से बचाने के लिये हमें तैयार रहना होगा क्योंकि हमारे सामने पूरी तरह से नई परिस्थितियां उत्पन्न हो रही हैं। खासकर समाज के कमजोर वर्गों की पहचान करने की जरूरत है। यह तथ्य भुलाया नहीं जा सकता है कि मौसम की तीव्रता का असर समाज के गरीब तबके पर अधिक होता है। अब चाहे लू हो, शीत लहर हो या बाढ़- इसका शिकार यही गरीब तबका होता है। सबसे पहले आर्थिक रूप से कमजोर आबादी की पहचान की जानी चाहिए। फिर आपातकालीन स्थितियों से मुकाबले के लिये बुनियादी ढांचा तैयार किया जाना चाहिए। साथ ही गर्मी के जोखिम से जुड़े स्वास्थ्य के खतरों के मद्देनजर जागरूकता अभियान चलाया जाना चाहिए।

समाज में कॉरपोरेट्स और स्वैच्छिक संगठनों को कस्बों और शहरों में पीने योग्य पानी की सुविधा जुटाने के लिये सहयोग करना चाहिए। सरकारों का दायित्व है कि गर्म होते पर्यावरण के मद्देनजर वे तत्काल वित्तीय व तकनीकी सहायता प्रदान करें। शहरों में हरियाली का विस्तार समस्या के निस्तारण में मूल्यवान निवेश साबित होगा। इसके अलावा गर्मी से बचाव के लिये परंपरागत भवन निर्माण शैली के साथ सामंजस्य बैठाकर अनुकूल निर्माण तकनीकों को प्रोत्साहित करना होगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *