पहले तो समझिए कि किरण रिजूजू बहुत जूनियर मंत्री थे जिन्हें एकाएक कानून मंत्रालय जैसा बड़ा पोर्टफोलियो दिया गया था। जाहिर है जिसने दिया है उसने कुछ टास्क भी दिया था।
अब किरण रिजूजू क्या कर रहे थे?
अपने टास्क अनुसार लगातार न्यायपालिका पर हमलावर थे।
उन्होंने हर उस तरह न्यायपालिका पर हमला किया जो अभी तक आमजन के अंदर था लेकिन कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट के डर से आमजन उसे बोलने से डरता था। उन्होंने अपने टास्क के तहत आमजन को वो ताकत दी कि करो न्यापालिका को एक्सपोज, कंटेम्प्ट होगा तो पहले मेरा होगा।
इसके बाद वो खुद भी कोर्ट पर हमलावर हुए।
उन्होंने भाई भतीजावाद पर हमला किया कि ये खुद से खुद ही जज चुन लेते हैं।
उन्होंने ये भी कहा कि इनके कुछ जज तो रिटायर होने के बाद एन्टी इंडिया फोर्स जॉइन कर लेते हैं।
उन्होंने ये भी कहा कि ये 4-5 जज बैठकर भारत का फैसला नही कर सकते हैं।
उन्होंने ये भी कहा कि ये जज तो अपनी मर्जी से फैसला दे देते हैं लेकिन इनकी जवाबदेही क्या है?
ऐसे बहुत से हमले थे जो उन्होंने न्यायपालिका पर किये। इसी के बाद आमजन की भी हिम्मत बढ़ी और जनता भी खुलकर कोर्ट की आलोचना करने लगी। CJI तक को कहना पड़ा कि मैं सोशल मीडिया पर नही आना चाहता क्योंकि मुझे मेरे कर्मचारी ने बताया कि सर वहां आपकी बहुत आलोचना(ट्रोल) होती है। जाहिर है कोर्ट को भी समझ आ गया कि सरकार जनता को अपने कंधे से ताकत दे रही है हमारे खिलाफ।
अब ये सब अकेले किरण रिजूजू तो कर नही रहे थे। उन्हें जिसने उस पद पर इतने बड़े नेताओं को बायपास कर कानून मंत्री बनाया था उसके आदेश पर ही हो रहा था। अब उसी ने क़ानून मंत्री को छुट्टी दे दी तो इसका मतलब ये नही है कि रिजूजू बलि का बकरा बन गए। जाहिर है उनका टास्क पूरा हुआ है, अब अगले की बारी है।
वैसे भी बलि का बकरा वो कैसे बन सकते हैं क्योंकि उन्हें अगर चुप रहने को कहा जाता तो वो क्या मोदी के खिलाफ जाकर कोर्ट पर हमला कर सकते थे? वो मोदी जिन्होंने न सिर्फ रिजूजू बल्कि उपराष्ट्रपति तक को इसी टास्क में लगा रखा है। उपराष्ट्रपति ने तो NJAC से लेकर 1973 के फैसले जहां सुप्रीम कोर्ट ने खुद को संसद से बड़ा बनाने का फैसला दिया था उसपर तक हमला किया हुआ है।
और यही वजह थी कि रविशंकर जैसे बड़े नेता और कानून के जानकार को हटाकर रिजिजू जो खुद कहते हैं कि मैंने कभी कोर्ट का दरवाजा तक नही देखा था उन्हे कानून मंत्रालय का टास्क दिया था। अब यदि मोदी को ऐसा ही कोई चाहिए होता जो न्यायपालिका के सामने कमतर दिखे तो वो तो रविशंकर दिख ही रहे थे क्योंकि वकील होने के नाते उनका पुराना परिचय जजों से था जिस वजह से वो ऐसी टिप्पणी नही कर सकते थे जो रिजूजू करते रहे। तो फिर रिजूजू को बनाने की जरूरत ही क्या था??
इसलिए जिन्हें लगता है कि कोर्ट से डर की वजह से रिजूजू को हटाया गया है वो इस चीज की तरफ ध्यान नही दे रहे कि क्या वो वाकई डर है या फिर कोर्ट से समझौता किया गया है? अब क्या है वो समझौता इसका पता तो आने वाले समय मे लगेगा लेकिन आज के तीन फैसले उस ओर इशारा कर ही रहे हैं। जल्लीकट्टू पर अपना ही फैसला पलटना, बंगाल-तमिलनाडु सरकारों पर सख्त टिप्पणी और इन सबसे बड़ी चीज जातीय जनगणना पर रोक जिसका प्लान विरोधी हिन्दुओ को बांटने के लिए बना रहे थे जिसमें कांग्रेस ने भी तैयारी कर ली थी कि 2024 में “जितनी आबादी उतना हक” के नाम पर हिन्दुओ को जाति के नाम पर भड़काना है और वही पुराना मंडल बनाम कमंडल का राक्षस जिंदा करना है जिसने UP-बिहार जैसे राज्यों को गर्त में धकेल दिया था जातीय अस्मिता के नाम पर।
हालांकि आज के तीनों फैसले ही हिन्दुओ के पक्ष में आये हैं।
बाकी इन्तेजार कीजिये। अर्जुन मेघवाल भी कानून के जानकार नही हैं लेकिन फिर भी उन्हें कानून मंत्री बनाया है तो देखते हैं उन्हें क्या टास्क दिया गया है। क्योंकि फिर से मोदी ने किसी रविशंकर जैसे व्यक्ति को मंत्री नही बनाया जिसका परिचय जजों के साथ हो और फिर वो कुछ भी करने से पहले सम्बन्धो के नाते हिचकता फिरे।। विशाल कुकरेती जी की पोस्ट