हमारे बुजुर्गो द्वारा अपने अनुभवों के आधार पर कहीं बातों ने कहावतों का रूप ले लिया, जो आज भी प्रासांगिक है, यथा – हाथी के दाँत खाने के और, दिखाने के और, मुँह में राम, बगल में छुरी आदि। इसी प्रकार वर्ष 1962 में भारत-चीनी, भाई-भाई का नारा लगाते-लगाते चीन ने हमारी जमीन पर शक्ति के बल पर कब्जा कर लिया। चीन के द्वारा तिब्बत पर बलपूर्वक अधिकार कर लिया गया, परन्तु यह तो उसकी महत्वाकांक्षा का एक छोटा सा ही उदाहरण था। अब उसका लक्ष्य हमारा अरुणाचंल प्रदेश एवं अन्य स्थानों को कब्जाने का प्रयास निरन्तर चल रहा है। चीन के साथ गलवान घाटी में हुए युद्ध की घटना, जिसमें हमारे अनेकों जवानों को बलिदान देना पड़ा था, हमारी स्मृति से अभी विस्मृत भी नहीं हो पायी थी कि चीन के द्वारा अनेको छोटी-छोटी झड़पे अन्य स्थानों पर होनी प्रारम्भ हो गईं। गलवान में टकराव के पश्चात 18 बार चीन व भारत के मध्य कमाण्डर स्तर की सैन्य शांतिवार्ता सम्पन्न हो चुकी हैं, परन्तु चीन की कुटिलता के कारण ये सभी वार्ता असफल सम्पन्न हुईं।
चीन के रक्षा मंत्री ली शांगफू एस0सी0ओ0 (शंघाई कोओपरेशन आर्गेनाईजेशन) की बैठक में भाग लेने हेतु भारत आए और उन्होंने अपने समकक्ष भारत के रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह से संबंध सुधार कर, भारतीय-चीनी संयुक्त सैनिक अभ्यास के लिए प्रस्ताव रखा, जिसे हमारे रक्षामंत्री जी ने शालिनतापूर्वक अस्वीकार कर दिया। यह एक बहुत ही उचित कदम था, क्योंकि सीमा पर तनाव के मध्य, सैन्य अभ्यास होना अप्रसांगिक है। भारत का हित तभी सम्भव है, जब सीमा विवाद के स्थाई समाधान हेतु चीन स्वयं अपनी इच्छा दर्शाए। हालांकि चीन के द्वारा शांतिवार्ता पहल करने से यह प्रतीत होता है कि चीन, दीर्घकालीन दृष्टिकोण पर विचार-विमर्श करना चाहता था। सम्भवतया उसकी मंशा यह थी कि सीमा विवाद के साथ-साथ, उसके अन्य हित प्रभावित न हो, परन्तु चीन द्वारा अवैध रूप से कब्जाई हुई भूमि को वापस न लेना, भारत के लिए अहितकर होगा।
वर्तमान में भारतीय सेना के 50000 से भी अधिक सैनिक सीमा सुरक्षा हेतु दिन-रात डटें हुए हैं। भारत का करोड़ो रूपया इन सैनिकों के हथियारों के रखरखाव व अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु खर्च हो रहा है, जोकि भारत जैसे प्रगतिशील देश के लिए अत्यधिक कष्टकारक है। चीन भी इस तथ्य से अनभिज्ञ नहीं है कि भारत के साथ दीर्घ अवधि तक विवाद रखना उसके हित में नहीं है, क्योंकि भारत के साथ उसका व्यापार निरन्तर बढ़ रहा है, जिसमें चीन को ही अत्यधिक आर्थिक लाभ हो रहा है। इसके इतर भारत की भी विवशता है कि कुछ वस्तुओं का उत्पादन विश्व में मात्र चीन ही करता है और यह वस्तुए सामरिक दृष्टि से अत्यधिक आवश्यक भी हैं। स्पष्ट है कि भारत और चीन व्यापार, दोनो ही देशों के हित में बंद करना सम्भव नहीं है तथा दोनों ही देश, एक-दूसरे की विवशता से भलीं-भांति परिचित हैं। अतः चीन की विवशता है कि सीमा विवाद के साथ-साथ व्यापार भी यथावत चलता रहे।
*योगेश मोहन*