यह अच्छी बात नहीं है,कोविड़ दुष्काल के बाद टीकाकरण के लिये बनाये गये सिस्टम ‘कोविन’ के डाटा में सेंधमारी और उसके बाद आरोप- प्रत्यारोप सनसनी फैला हुए है । चिंता की बड़ी बात यह है इसमें करोड़ों लोगों का निजी डाटा जमा है , जिसमें आम के साथ सुरक्षा की दृष्टि से तमाम खास लोग भी शामिल है । हालांकि, केंद्र सरकार ने तीव्रता से साफ किया कि कोविन का कोई डाटा चोरी नहीं हुआ। फिर भी इस मुद्दे पर विपक्ष ने केंद्र को निशाने पर ले रखा है ।वैसे भारत की सरलता से टीकाकरण की व्यवस्था को अंजाम देने के लिये देश-विदेश में कोविन सिस्टम की सराहना की गई थी।ऐसे कई मामले हैं, गाहे-बगाहे ऐसी खबरें आती ही रहती हैं कि साइबर अपराधियों ने लोगों का निजी डाटा चुरा लिया है। दरअसल, ऑनलाइन सिस्टम से जितनी सुविधा हुई व समय की बचत हुई, उसकी सुरक्षा के लिये खतरा उतना ही ज्यादा बड़ा हो गया है।
निजी डाटा में सेंधमारी की चर्चा ने आम लोगों की चिंता बढ़ा दी क्योंकि आये दिन लोगों के साथ ऑनलाइन फ्राड के मामले प्रकाश में आते रहते हैं। कोविन प्रकरण में ये बातें भी चर्चा में रही कि चुराये डाटा को बिक्री के लिये एक वेबसाइट पर रखा गया है। कहना कठिन है कि चोरी की घटना कितनी हकीकत है और कितना फसाना, मगर एक बार फिर से सरकार द्वारा नागरिकों से जुटाई गई संवेदनशील जानकारी की सुरक्षा का प्रश्न सामने खड़ा हो गया। यदि सरकार के दावे को सही मान भी लिया जाये कि डाटा चोरी नहीं हुआ है तो भी जरूरी है कि सारे मामले की गहन जांच की जाये। कोशिश हो कि इस प्रकरण में गहराई तक जांच करके दोषियों को कानूनी शिकंजे में लाने के प्रयास किये जाएं। दुनिया जानती है कि भारत एक बड़ा उभरता उपभोक्ता बाजार है और विश्व की तमाम कंपनियां अपने कारोबार को भारत में फैलाना चाहती हैं। यदि कोई डाटा चोरी होता है तो ये कंपनियां अपने कारोबार बढ़ाने के लिये चोरी का डाटा खरीदने को उत्साहित हो सकती हैं।
वास्तविकता कुछ भी हो सरकार को सरकारी सर्वर की सुरक्षा फुलप्रूफ करने की जरूरत है। जिसमें ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि खुद के अलावा कोई दूसरा व्यक्ति इस निजी डाटा को न देख सके। इसमें ओटीपी व्यवस्था के साथ ही अन्य सुरक्षा उपायों को शामिल करना चाहिए। कोशिश तो यह होनी चाहिए कि यदि किसी कल्याणकारी योजना के लिये सरकार भी किसी व्यक्ति के निजी डाटा का उपयोग करे तो उसकी जानकारी हर नागरिक को होनी चाहिए।
जहां तक कोविन प्रकरण की बात है तो सरकार को ईमानदारी से लोगों को बताना चाहिए की वास्तविक स्थिति क्या है। साथ ही समय-समय पर सुरक्षा उपायों की समीक्षा करके बचाव के नये मानकों को उपयोग में लाया जाना चाहिए। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि दुनिया में कई सरकारों के संरक्षण में हैकिंग का काम किया जा रहा है। जिस तेजी से टेक्नालॉजी बदल रही है सुरक्षा उपायों में उसी तेजी से बदलाव करके चौकस व्यवस्था को अपनाया जाना चाहिए। यह भी स्पष्ट है कि डाटा चोरी के नियमन के लिये देश में पर्याप्त कानून की जरूरत महसूस की जा रही है। कोशिश हो कि हैकरों पर नकेल कसने के लिये चाक-चौबंद कानून बनाये जाएं व तकनीकी उपायों की समय-समय पर समीक्षा भी की जाये। ताकि हैकरों को स्वच्छंद विचरण करने से रोका जा सके।
इस घटना को हमें एक वेक-अप कॉल की तरह देखना चाहिए और सुरक्षा उपायों को मजबूत करना चाहिए। ताकि लोगों का भरोसा बना रहे कि सरकार के हाथों में उसकी निजी जानकारी सुरक्षित है। केंद्र व राज्यों की नोडल साइबर सुरक्षा एजेंसियों के बेहतर तालमेल से काम करने से हैकिंग की समस्या पर किसी सीमा तक नियंत्रण करने में मदद मिलेगी। लगता है कि हमने पिछले दिनों एम्स व अन्य संस्थानों पर हुए साइबर हमलों से कोई सबक नहीं लिया। तब कहा गया था कि विभिन्न संगठनों के नेटवर्क विभाजन को सुनिश्चित करना चाहिए। जिससे साइबर सुरक्षा उपायों में सुधार करने व कमजोरियों को दूर करने में मदद मिल सकेगी। साथ ही जरूरी है कि इससे जुड़े सभी कर्मचारियों को अनिवार्य रूप से साइबर सुरक्षा प्रशिक्षण दिया जाए।