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अमेरिका द्वारा चीन से विकासशील देश का दर्जा छीनने पर बौखलाहट

हाल ही में हमारे पड़ोसी चीन ने विकासशील देश का दर्जा को दिया है। दरअसल, हाल ही में अमेरिका ने चीन से उसका ‘विकासशील देश’ का दर्जा छीन लिया है और अमेरिका के इस फैसले से चीन यानी कि ड्रैगन में बौखलाहट देखने को मिल रही है। वास्तव में चीन से विकासशील देश का दर्जा हटने से अब इसकी अर्थव्यवस्था पर असर पड़ना लगभग लगभग तय हो गया है। जानकारी देना चाहूंगा कि वर्तमान समय में  अमेरिका 26.854 ट्रिलियन डॉलर के साथ दुनिया की सबसे बड़ी इकॉनमी है। वहीं, चीन 19.374 ट्रिलियन डॉलर के साथ दूसरी सबसे बड़ी इकॉनमी है‌। चीन के बाद जापान 4.410 ट्रिलियन डॉलर के साथ तीसरे नंबर और जर्मनी 4.309 ट्रिलियन के साथ चौथे नंबर पर है और इसके बाद भारत का नंबर आता है। अब चीन को विश्व बैंक(वर्ल्ड बैंक) और आईएमएफ यानी कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से कम ब्याज पर लोन नहीं मिल सकेगा। इस नये कानून से चीन की जीडीपी की ग्रोथ रेट और नीचे चली जाएगी। अब तक चीन विकासशील देश का दर्जा लेकर विश्व बैंक व अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से खूब फायदा उठा रहा था, क्यों कि विकासशील देशों को सस्ती दरों पर ये दोनों संस्थाएं कर्ज उपलब्ध कराती रहीं हैं। अमेरिका द्वारा चीन से विकासशील देश का दर्जा छीन लेने के बाद अब चीन सस्ता लोन लेकर गरीब देशों को अपने चंगुल में नहीं फंसा सकेगा। अब तक चीन ने विकासशील देश का दर्जा हासिल कर न केवल विश्व के कई गरीब देशों को अपने चंगुल में फंसाया था, बल्कि अमेरिका जैसे विश्व के एक शक्तिशाली देश तक को भी चीन ने नहीं छोड़ा था। चीन की नीति हमेशा हमेशा से ही एक विस्तारवादी देश की रही है और इसी विस्तारवादी नीति के तहत चीन ने विकासशील देश का दर्जा हासिल कर हमेशा विश्व के गरीब देशों पर अपना आधिपत्य जमाया अथवा आधिपत्य जमाने की भरपूर कोशिश की। यहां यह भी जानकारी देना चाहूंगा कि चीन की दूसरे देशों के क्षेत्र पर कब्जा जमाने की नीति को ही विस्तारवादी नीति कहा जाता है। चीन ना केवल जमीनी सीमा पर बल्कि दूसरे देशों की समुद्री सीमाओं पर भी घुसपैठ करता रहता है वह सभी देशों की समुद्री सीमा पर अपना अधिकार जमाता है। उल्लेखनीय है कि वर्तमान समय में ड्रैगन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी इकॉनमी है, इसलिए अमेरिकी संसद ने यह माना कि चीन को अब डेवलपिंग कंट्री का स्टेटस नहीं दिया जा सकता है। जानकारी देना चाहूंगा कि विश्व में अमेरिका और चीन विश्व के दो ऐसे बड़े व शक्तिशाली देश हैं,जिनके पास दुनिया में विश्व की सबसे बड़ी सेनाएं मौजूद हैं और वर्तमान में अमेरिका द्वारा चीन से विकासशील देश का दर्जा छीनना कहीं न कहीं यह दर्शाता है कि दोनों ही देशों में अब आपसी तकरार लगातार बढ़ रही है। वास्तव में अमेरिका ने चीन से विकासशील देश का दर्जा छीनकर उसे तगड़ा झटका दिया है। अमेरिकी संसद के इस कदम से निश्चित ही चीन की अर्थव्यवस्था पर बहुत बड़ा असर पड़ना लाजिमी है। चीन एक अत्यंत ही शातिर देश रहा है और वह विकासशील देश के नाम पर विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से सस्ता कर्ज लेकर उसी कर्ज को अत्यंत कठोर शर्तों और ब्याज दरों पर विश्व के गरीब देशों पर अपना आधिपत्य स्थापित करता है और यही उसकी विस्तारवादी नीति कहलाती है। उल्लेखनीय है कि इसी साल यानी कि वर्ष 2023 के मार्च के महीने में पहली बार अमेरिकी संसद के निचले सदन हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स में एक बिल लाया गया था। उस बिल की खास बात यह थी कि उसका मकसद सिर्फ और सिर्फ चीन पर लगाम कसना था, अब उस बिल को अमेरिकी संसद ने मंजूरी दे दी है। चीन ने डेवलपिंग कंट्री स्टेट्स का नाजायज फायदा उठाया है, इसीलिए उसका यह दर्जा अब चीन लिया गया है। दरअसल अमेरिका कभी भी यह नहीं चाहता है कि चीन कभी भी अमेरिका से अधिक शक्तिशाली बनें। आज दोनों ही देशों में आपसी प्रतिस्पर्धा है कि कौन अधिक शक्तिशाली है और दोनों के संबंध कुछ अच्छे नहीं हैं। आपसी प्रतिस्पर्धा के चलते दोनों ही देशों में आपसी मनमुटाव है। दूसरे शब्दों में कहें तो दोनों ही देश एक दूसरे के रणनीतिक प्रतिद्वंद्वी हैं। आज चीन संयुक्त राज्य अमेरिका को एक आधिपत्य शक्ति के रूप में देख रहा है तो वहीं अमेरिका के साथ भी कुछ ऐसा ही है। जानकारी देना चाहूंगा कि डोनाल्ड ट्रम्प के समय, अमेरिका ने चीन पर बौद्धिक संपदा की साइबर चोरी, जबरन आईपी हस्तांतरण और अनुचित व्यापार प्रथाओं का आरोप लगाया था। अमेरिका ने उस समय यह तर्क दिया था कि अगर चीन गूगल और फेसबुक को चीन में प्रवेश करने से रोक सकता है, तो उसी तरह अमेरिका हुवावे और जेडटीई पर भी प्रतिबंध लगा सकता है। यह भी उल्लेखनीय है कि ट्रम्प प्रशासन ने अमेरिकी घटकों और प्रौद्योगिकी तक पहुंच में कटौती करके हुआवेई पर प्रतिबंध कड़े कर दिए थे। कुछ समय पहले एक 

आभासी शिखर सम्मेलन के बाद, राष्ट्रपति बिडेन ने चीन को यह कहा था कि ‘चलो कुछ सही करें, हम एक दूसरे को अच्छी तरह से जानते हैं। हम पुराने दोस्त नहीं हैं। यह शुद्ध व्यवसाय है।’ वास्तव में, द्विपक्षीय संबंधों की उनकी धारणा में विरोधाभास स्पष्ट है। यह भी उल्लेखनीय है कि यूक्रेन संकट में अमेरिका-चीन के संबंध तनावपूर्ण हुए हैं। जानकारी देना चाहूंगा कि पद संभालने के तुरंत बाद, राष्ट्रपति बिडेन ने पूर्व और दक्षिण पूर्व एशिया में किसी भी विस्तार के खिलाफ चीन को चेतावनी भेजना शुरू कर दिया था। यहां तक कि अमेरिका ने पूर्व में दक्षिण चीन सागर में आक्रामक चीनी मुद्रा, हाइड्रोकार्बन और मत्स्य पालन के दोहन को भी खारिज कर दिया था। बिडेन प्रशासन ने चीन की आर्थिक नीतियों का विरोध भी जारी रखा है। इसके अलावा हाल के वर्षों में अमेरिका-चीन सैन्य संपर्कों में भी काफी गिरावट देखी गई है। यह सब दर्शाता है कि चीन और अमेरिका के संबंधों में लगातार गिरावट आ रही है।
(आर्टिकल का उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है।)
सुनील कुमार महला, फ्रीलांस राइटर, कालमिस्ट व युवा साहित्यकार पटियाला।

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