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ओबामा का विभाजनकारी विचार

-बलबीर पुंज

नमस्कार बराक हुसैन ओबामा जी,
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हालिया अमेरिका यात्रा (20-23 जून) के समय आपका विवादास्पद वक्तव्य सामने आया। अमेरिका में तो चर्चा है कि आपने यह विचार भारत-विरोधी समूह से मोटी रकम लेकर प्रकट किए। संभावना यह भी है कि सही जानकारी के अभाव में आपने ऐसा बयान दिया। हो सकता है कि भारत के प्रति आपका मन, हीन-भावना जनित पूर्वाग्रह से भरा है। जो भी हो, परंतु भारत-अमेरिका में जो समूह दोनों देशों के प्रगाढ़ हुए संबंधों को लेकर आशावान है और प्रधानमंत्री मोदी का अमेरिका दौरा ऐतिहासिक बता रहे है— उन्हें आपकी द्वेषपूर्ण, घृणायुक्त और अपरिपक्व बातों से निराशा अवश्य हुई है।

आपने 22 जून को एक टीवी साक्षात्कार में कहा, “…हिंदू बहुसंख्यक भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यकों की सुरक्षा ध्यान देने योग्य है… यदि आप (प्रधानमंत्री मोदी) भारत में अल्पसंख्यक अधिकारों की रक्षा नहीं करते हैं, तो इस बात की प्रबल संभावना है कि भारत एक मोड़ पर बिखरने लगेगा, हमने देखा है कि इस प्रकार के बड़े आंतरिक संघर्ष होने पर क्या होता है। यह न केवल मुस्लिम भारत बल्कि हिंदू भारत के हितों के भी विपरीत होगा…।” आपने यह भी कहा, “भारतीय लोकतंत्र संबंधी चिंताओं को कूटनीतिक वार्ता में शामिल किया जाना चाहिए।”

भले ही जनसांख्यिकीय अनुपात में भारतीय मुसलमान अल्पसंख्यक हो, परंतु उनकी आबादी विश्व की तीसरी सर्वाधिक मुस्लिम जनसंख्या— लगभग 22 करोड़ है। आपने साक्षात्कार में चीन स्थित उइगर मुसलमानों पर हो रहे बलात् राजकीय अत्याचारों का उल्लेख किया। परंतु क्या उसकी तुलना भारत के मुस्लिमों से की जा सकती है? निसंदेह, किसी भी देश में मजहबी, नस्लीय और जातिगत उत्पीड़न का संज्ञान लेना और उसके परिमार्जन का प्रयास— समाज के सभ्य होने का प्रतीक है। परंतु आपका प्रेम केवल मुस्लिम अल्पसंख्यकों तक सीमित क्यों है?

भारत के पड़ोसी देशों— पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में बहुसंख्यक मुस्लिम समाज की मजहबी प्रताड़ना का शिकार हो रहे हिंदू-बौद्ध-सिख अल्पसंख्यकों की आपने कभी भी सुध तक नहीं ली। क्यों? जब आप चीन में उइगर मुस्लिमों के प्रति सहानुभूति जता रहे थे, तब आप उसी चीन द्वारा तिब्बत में बौद्ध भिक्षुओं के सांस्कृतिक संहार और दमन पर चुप क्यों रहे?

वर्तमान अफगानिस्तान सहस्राब्दी पहले हिंदू-बौद्ध दर्शन का एक संपन्न केंद्र था। कालांतर में, मुस्लिम आक्रांताओं के हमले, उनकी मजहबी दायित्व की पूर्ति और जबरन मतांतरण के बीच वर्ष 1970 तक यहां हिंदू-सिखों की अनुमानित संख्या लगभग सात लाख थी, जो आगे गृहयुद्ध, मजहब केंद्रित हिंसा के साथ तालिबान के शरीयत राज में घटकर मात्र 43 रह गई। इसी प्रकार, विभाजन के समय पाकिस्तान और बांग्लादेश (पूर्वी पाकिस्तान) की कुल आबादी में क्रमश: अल्पसंख्यक हिंदू-सिख 15-16 प्रतिशत और हिंदू-बौद्ध 28-30 प्रतिशत थे, जो अब घटकर क्रमश: दो प्रतिशत और आठ प्रतिशत रह गए है। इसका कारण हिंदू-सिख-बौद्ध मतावलंबियों का इस्लाम के नाम पर मजहबी उत्पीड़न, हत्या, जबरन मतांतरण और पलायन है। भारत स्थित कश्मीर घाटी भी इस मजहबी त्रासदी से अभिशप्त है। यहां साढ़े तीन दशक पहले अल्पसंख्यक कश्मीरी पंडितों के खिलाफ जिहादियों ने स्थानीय मीडिया, निवासियों और प्रशासनिक अधिकारियों के प्रत्यक्ष-परोक्ष समर्थन से हिंसक-अमानवीय मजहबी उपक्रम चलाया था। आपने इस विषय पर अपनी जुबान अबतक क्यों नहीं खोली?

यह स्थापित सत्य है कि जिन समुदायों को किसी क्षेत्र/देश में प्रताड़ित किया जाता है, उनकी आबादी कालांतर में नगण्य हो जाती है। इस पृष्ठभूमि में विभाजन के बाद हिंदू बहुल खंडित भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यक— तीन करोड़ से लगभग 22 करोड़ हो गए है, जो नई-पुरानी तीन लाख मस्जिदों में इबादत करने हेतु स्वतंत्र है। इसी ‘हिंदू बहुसंख्यक’ भारत में असंख्य मुस्लिम, प्रशासनिक-सामरिक-वैज्ञानिक सेवा देने के साथ मंत्रिपद और देश के शीर्ष पदों— राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति, मुख्यमंत्री और राज्यपाल तक पहुंच चुके है। मौलाना अबुल कलाम आज़ाद, एपीजे अब्दुल कलाम, हामिद अंसारी, सी.एच.मुहम्मद, अब्दुल रहमान अंतुले, सैयदा अनवरा तैमूर, अब्दुल गफूर, बरकतुल्ला खान, मोहम्मद अलीमुद्दीन और एम.ओ.एच फारूक— इसके कई उदाहरण है।

ओबामाजी, आपने साक्षात्कार में भारत में दो राष्ट्र— ‘हिंदू इंडिया’ और ‘मुस्लिम इंडिया’ की बात कही। यह विभाजनकारी विचार कोई नया नहीं है। सर सैयद अहमद खां (1817-98) ने भी इसी सिद्धांत के आधार पर पाकिस्तान की नींव रखी थी। समाज को तोड़ने वाली यह विषबेल आज भी भारतीय उपमहाद्वीप में पनप रही है। प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से आपने इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, और जिस विचारधारा का वे प्रतिनिधित्व करते हैं— उसे जिम्मेदार ठहरा दिया, जोकि इस भूखंड के इतिहास और तथ्यों के बिल्कुल विपरीत है।

भारतीय उपमहाद्वीप में मुस्लिम समाज का एक बड़ा वर्ग स्वयं को भारतीय संस्कृति और उसकी भूमि से जोड़कर नहीं देखता। यह अलगाववादी चिंतन इस भूखंड पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी के जन्म के बहुत पहले से अस्तित्व में है। आपकी ‘सेकुलर’ परिभाषा में गांधीजी और पं.नेहरू तो अवश्य आते होंगे। परंतु वे दोनों और अन्य समकालीन नेता भी 1947 में भारत का रक्तरंजित विभाजन नहीं रोक पाए। क्यों? भारतीय उपमहाद्वीप स्थित जनमानस के एक वर्ग में अलगाववाद एक कड़वी सच्चाई है। इसके कारण क्या हैं, इसपर ईमानदारी से सोचें।

आपके द्वारा भारतीय लोकतंत्र में ‘कथित चिंताओं’ को ‘कूटनीतिक बातचीत’ में जोड़ने की बात— न केवल बाह्य हस्तक्षेप को बढ़ावा देने वाला है, साथ ही यह विचार औपनिवेशिक मानसिकता से प्रेरित भी है। अमेरिका में लोकतांत्रिक जड़ें ढाई सदी पुरानी है। इससे पहले अमेरिका का लोकतंत्र से कोई वास्ता नहीं था। यदि भारत आज भी लोकतांत्रिक, बहुलतावादी और सेकुलर है, तो वह न ही संविधान या उसमें लिखे किसी प्रावधान के कारण है और न ही 200 वर्ष भारत का शोषण करने वाले ब्रितानियों की देन है। भारत में यह बहुलतावादी जीवनमूल्य उसकी हजारों वर्ष पुरानी हिंदू सनातन संस्कृति का प्रतिबिंब है। संक्षेप में कहूं, तो भारत में इन मूल्यों की एकमात्र गारंटी, इस देश का हिंदू चरित्र है।

वर्ष 2014 से भारत का नेतृत्व प्रधानमंत्री नरेंद्र कर रहे हैं। तभी से देश का एक विकृत वर्ग (राजनीतिक सहित) विषवमन कर रहा है कि ‘भारतीय लोकतंत्र खतरे’ में है। ऐसा कुप्रचार करने वाले विपक्षी दलों के चुनाव हारने पर निर्वाचन प्रक्रिया में ‘धांधली’ का अनर्गल आरोप लगाकर लोकतंत्र को कलंकित करते है। ओबामाजी, क्या आप भूल गए कि पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने विरुध आए जनमत को फर्जी बताया था, जिससे भड़के उनके समर्थकों ने 6 जनवरी 2021 को कैपिटल हिल पर हमला कर दिया था। क्या ऐसे आरोप के बाद मान लिया जाए कि अमेरिका की चुनावी प्रणाली— धोखा है?

इस पृष्ठभूमि में भारत की क्या स्थिति है? देश के 15 राज्यों में भाजपा (गठबंधन सहित), कांग्रेस (गठबंधन सहित) की 7, ‘आप’ की दो, तृणमूल, बीजू जनता दल, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी), भारत राष्ट्र समिति और वाईएसआर कांग्रेस की एक-एक राज्य में सरकार है। ओबामाजी, यदि आपके लिए भारतीय राजनेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच, संबंधित न्यायिक सुनवाई, आपराधिक मामलों में अदालत द्वारा दोषी ठहराना और स्थापित विचारों को चुनौती मिलना— लोकतंत्र को कमजोर करना है, तो आप ट्रंप की गिरफ्तारी, यौन शोषण मामले में दोषी ठहराने और उनपर चल रहे अन्य 30 से अधिक आपराधिक अभियोग के बारे में क्या कहेंगे?

यह सर्विदित है कि अमेरिका का लोकतंत्र केवल उसकी सीमा तक सिमटा है। अपने राष्ट्रहितों के लिए अमेरिका फासीवादी, अधिनायकवादी शासकों के साथ संबंध रखता रहा है और उन्हें मान-सम्मान भी देता रहा है। इस पृष्ठभूमि में भारत के लोकतंत्र पर आपकी चिंता, पाखंड से अधिक कुछ नहीं है।

सादर

लेखक वरिष्ठ स्तंभकार, पूर्व राज्यसभा सांसद और भारतीय जनता पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय-उपाध्यक्ष हैं।

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