इन दिनों भारत में मानसून अपने परवान पर है और बहुत से स्थानों पर मानसून के कारण भारी बरसात देखने को मिल रही है। भारत को मानसून का जुआ कहा जाता है, क्यों कि यहां मानसून के कारण कभी अधिक तो कभी कम बारिश देखने को मिलती है। जानकारी देना चाहूंगा कि मानसून या पावस, मूलतः एवं अरब सागर की ओर से भारत के दक्षिण-पश्चिम तट पर आने वाली हवाओं को कहते हैं जो भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश आदि में भारी वर्षा करातीं हैं। ये ऐसी मौसमी पवन होती हैं, जो दक्षिणी एशिया क्षेत्र में जून से सितंबर तक, प्रायः चार माह सक्रिय रहती है। जब यह आर्टिकल लिखा जा रहा है तब जून का अंतिम सप्ताह जारी है। बहुत बार मानसूनी बारिश के कारण मानव को बहुत सी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। हम देखते हैं कि पहाड़ी क्षेत्रों में अधिक बारिश के कारण आज जगह जगह पहाड़ टूटते हैं। आज हम देखते हैं कि बारिश के सीजन में पहाड़ों में अनेक स्थानों पर भू-स्खलन हो जाता है हैं। हर साल लाखों लोग भूस्खलन से प्रभावित होते हैं, क्यों कि लगातार बारिश के कारण पहाड़ों की मिट्टी ढ़ीली हो जाती हैं और भूस्खलन होता है। आजकल पहाड़ी क्षेत्रों में वन भी पहले की तुलना में काफी कम हो गये हैं, जिससे पहाड़ों पर भू-स्खलन देखने को मिलता है। भूस्खलन होता है तो पहाड़ी क्षेत्रों में बहुत से सड़क मार्ग अवरूद्ध हो जाते हैं और लोगों को अनेक प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। बहुत बार तो अधिक बारिश से गांव के गांव डूबे जाते हैं और हर तरफ विनाश ही विनाश बरसता है। वास्तव में,भारत के विभिन्न राज्यों में बार-बार आने वाली बाढ़ के कारण जान-माल का भारी नुकसान होता है। राष्ट्रीय बाढ़ आयोग ने देश में 4 करोड़ हेक्टेयर भूमि को बाढ़ प्रभावित क्षेत्र घोषित किया है। उत्तर भारत की अधिकतर नदियाँ विशेषकर उत्तर प्रदेश और पंजाब में बाढ़ लाती रही हैं। बारिश के कारण चारों ओर तबाही का मंजर बन जाता है। सड़कें तालाब बन जाती हैं। हाल ही में पहाड़ी क्षेत्र उत्तराखंड में मानसून की पहली बारिश का कहर देखने को मिला। वहां पिथौरागढ़ जिले में जौलजीबी-मुनस्यारी मार्ग बह गया। थल मुनस्यारी मार्ग पर बहुत से वाहन; फंस गए। जानकारी देना चाहूंगा कि गोरी गंगा, रामगंगा, मंदाकिनी, सेरा नदी, जाकुला, गोसी नदी सहित सभी नालों का जलस्तर बढ़ गया। हिमाचल प्रदेश में भी भूस्खलन देखने को मिला है।हिमाचल प्रदेश के मंडी में बादल फटा।वहीं, उत्तराखंड में भारी बारिश के बाद केदारनाथ यात्रा रोक दी गई।बदरीनाथ में भी मूसलाधार बारिश से जनजीवन अस्त व्यस्त हो गया था। हिमाचल प्रदेश के शिमला, मंडी, सोलन और कुल्लू में तेज बरसात के साथ लगातार लैंडस्लाइड देखने को मिली। यहां तक कि हरियाणा के पंचकूला में बेहिसाब बरसात से आम जीवन प्रभावित हुआ । हमने देखा कि गुजरात के कच्छ और सौराष्ट्र में जमकर तबाही मचाने के बाद चक्रवात बिपोर्जॉय ने राजस्थान के अनेक क्षेत्रों में कहर मचाया। जालौर और बाड़मेर जिले बिपरजोय से प्रभावित हुए। ट्रेनों को रद्द करना पड़ा। बिपरजोय के कारण बहुत से गांव बिजली आपूर्ति से वंचित हो गए।बिपोर्जॉय तूफान के चलते जैसलमेर में आंधी बारिश का दौर दिखा, वहीं बाड़मेर और सिरोही में भी कई पेड़ और बिजली के पोल गिर गये। देश के केरल व मध्य प्रदेश भी बारिश से काफी प्रभावित हुए हैं। झारखंड, जम्मू कश्मीर, छत्तीसगढ़ में भी भारी बारिश से जनजीवन प्रभावित हुआ। मुंबई समेत महाराष्ट्र के कई जिलों में बारिश को लेकर अलर्ट जारी हुआ है।मेघालय में कई जगहों पर भूस्खलन हुआ है। जानकारी देना चाहूंगा कि पूर्वोत्तर के तीन राज्य असम, मेघालय और सिक्किम बाढ़ के कहर से जूझ रहे हैं। वहां पर भारी बारिश की वजह से कई नदियां उफ़ान पर हैं। मौसम विभाग ने असम और मेघालय के कुछ इलाकों में भारी बारिश का रेड अलर्ट जारी किया है।मेघालय से दक्षिण असम और त्रिपुरा की ओर जाने वाली सड़कें बुरी तरह बाधित हो गई। सिक्किम में भी बाढ़ से बदतर हालात बने और यहां कुछ जगहों पर भूस्खलन हुआ। इसके अलावा पूर्वोत्तर के कई इलाकों में बारिश का ऑरेंज अलर्ट जारी किया गया। असम के 14 ज़िले बाढ़ से प्रभावित हैं और यहां हजारों लोगों पर इसका असर पड़ा है। यहां की तीन नदियां ख़तरे के निशान से ऊपर बह रही हैं, जिससे आसपास के गांवों को ख़तरा हो गया है। असम में हर साल पानी के अत्यधिक बहाव से जान माल का काफी नुकसान होता है। जबरदस्त बहाव से कच्चे पक्के घर टूट जाते हैं।काजीरंगा में जंगली जानवरों को बाढ़ के पानी का सामना करना पड़ता है। सच तो यह है कि बाढ़ काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान और टाइगर रिजर्व , पोबितोरा वन्यजीव अभ्यारण्य, और मानस राष्ट्रीय उद्यान के बड़े हिस्से को जलमग्न कर देती है।बाढ़ के प्राकृतिक और मानव निर्मित कारक हैं जो इसके लिये योगदान करते हैं। चीन, भारत, बांग्लादेश और भूटान में फैले एक बड़े बेसिन क्षेत्र के साथ ब्रह्मपुत्र नदी अपने साथ भारी मात्रा में जल और गाद का मिश्रण लेकर आती है, जिससे असम में कटाव की घटनाओं में वृद्धि होती है जो बाढ़ का कारण बनती है।हमने देखा कि अभी कुछ समय पहले ही मुंबई समेत महाराष्ट्र के कई जिलों में बारिश को लेकर अलर्ट जारी किया गया। सच तो यह है कि मानसून की एंट्री के साथ ही देश के कई राज्यों में तबाही का मंजर दिखने लगा है। हालांकि आपदा प्रबंधन विभाग राहत और बचाव के काम में जुटा रहता है और प्रशासन व सरकार भी लगातार उच्च स्तरीय बैठकें करतीं हैं, लेकिन प्राकृतिक कहर, हमेशा प्राकृतिक कहर होता है। उसके आगे मनुष्य का पूर्ण वश तो नहीं चलता है लेकिन मानव अपनी गतिविधियों पर कुछ हद तक अंकुश लगाकर प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाकर आगे बढ़े तो इन प्राकृतिक आपदाओं पर नियंत्रण किया जा सकता है। बारिश के समय में महानगरों में जल भराव इतना अधिक हो जाता है कि सड़क और गड्ढे का फर्क गायब हो जाता है। सीवरेज सिस्टम गड़बड़ा जाता है, नालियां ओवरफ्लो होने लगतीं हैं। वास्तव में देखा जाए तो बारिश का बरसना सुखद भी है और तबाही भी है। यह किसानों के 15 करोड़ से अधिक परिवारों के लिए ‘संजीवनी’ भी है, क्योंकि आज भी बहुत सी खेती बरसात पर ही आश्रित है। मानसून में देरी होती है तो किसानों के चेहरों पर उदासी सी आ जाती है। अक्सर बरसात के मौसम में पहाड़ टूटते हैं। बहुत से स्थानों पर भू-स्खलन होते हैं, तो प्रलय का सैलाब आता है। सच तो यह है कि आपदा के साथ विनाश भी बरसता है। बहुत से स्थानों पर बारिश से करंट दौड़ जाता है और जानें भी चली जाती हैं। कई स्थानों पर बिजली के खंभे टूट जाते हैं, जिससे विद्युत आपूर्ति तो बाधित होती ही है, मानव व जीवों पर करंट का खतरा पैदा हो जाता है। अनेक जीव जंतु करंट का शिकार हो जाते हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि घनघोर बारिश के समय दुर्घटनाएं और मौत बिन बुलाए आती हैं। जिंदगी यकायक ठहर-ठहर सी जाती हैं। आजकल जलवायु परिवर्तन हो चला है और जलवायु परिवर्तन के कारण मानसून अनेक स्थानों पर मूसलाधार बरसता है, लिहाजा असम राज्य में 2 लाख से ज्यादा लोग बाढ़ बारिश और बाढ़ से प्रभावित हुए हैं। असम तो हर साल बाढ़ग्रस्त रहता है। जानकारी देना चाहूंगा कि उत्तर पश्चिम भारत के कुछ हिस्सों को छोड़कर, मानसून ने लगभग लगभग पूरे देश को प्रभावित किया है। पूरे गुजरात और दक्षिण- पूर्वी राजस्थान को मानसून ने कवर कर लिया है। अगले कुछ दिनों में ही उम्मीद है कि दक्षिण पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के शेष हिस्से भी कवर हो जाएंगे। यहां यह भी जानकारी देना चाहूंगा कि बिहार का शोक कही जाने वाली कोसी नदी हर साल तबाही मचाती है। इससे फसलों की बड़ी हानि होती है। बहुत बार इस नदी में बाढ़ आने के कारण लोगों को दूसरे सुरक्षित स्थानों की ओर पलायन करना पड़ता है। यदि हम यहां राजस्थान की बात करें तो जब यह आर्टिकल लिखा जा रहा है तब मौसम विभाग के अनुसार प्रदेश में अत्यंत भारी बारिश होने की संभावना जताई गई है, जिसे लेकर चार जिलों में रेड अलर्ट जारी किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार झालावाड़, कोटा, बारां व अजमेर में 60 से 70 किलोमीटर प्रति घंटे की गति वाली हवाओं के साथ प्रदेश में अत्यंत भारी बारिश होने की संभावना बताई जा रही है, जबकि भीलवाड़ा, बूंदी, चित्तौडगढ़़, डूंगरपुर, जयपुर और प्रतापगढ़ में भी इस दौरान अति भारी बारिश होने की बात कही गई है। इस संबंध में मौसम केंद्र ने ऑरेंज अलर्ट जारी किया है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि यह सब जलवायु- परिवर्तन का ही असर है। भले ही हम मौसम की इस अवधारणा को स्वीकार न करें, लेकिन पूरा विश्व आज जलवायु परिवर्तन को लेकर अत्यंत चिंतित है। आज अंतरराष्ट्रीय मंचों पर जलवायु परिवर्तन को लेकर घोर चिंता जताई जा रही है। भारत में मानसून की अभी तो शुरुआत है, लेकिन मौसम विभाग ने 11 राज्यों जिनमें क्रमशः पंजाब, हिमाचल, उत्तराखंड, हरियाणा, पश्चिमी उप्र, राजस्थान, मप्र, छत्तीसगढ़, केरल, महाराष्ट्र और गुजरात शामिल हैं, में अलग- अलग अलर्ट जारी किए हैं। कभी भी, कहीं भी कुछ भी अनहोनी या अनिष्ट घट सकता है। यदि इन राज्यों में मध्यम से भारी बारिश हुई, तो तबाही के नए मंजर निश्चित ही सामने आएंगे। दुर्भाग्य इस बात का है कि हमारी व्यवस्था, हमारे प्रशासन, हमारी सरकारों, हमारे अधिकारियों ने बारिश और बाढ़ के कहर से कोई सबक नहीं सीखा है। हालांकि ऐसा भी नहीं है कि सरकारें, प्रशासन व आपदा विभाग कुछ करता नहीं है, लेकिन हमें भी सतर्क व जागरूक रहने की आवश्यकता है। सारे काम की जिम्मेदारी सरकार, प्रशासन व अधिकारियों की ही नहीं है। हमें भी सरकार, प्रशासन व अधिकारियों के साथ इसके लिए आगे आना होगा। यह सभी का सामूहिक दायित्व और जिम्मेदारी है। आज स्थिति यह है कि बहुत से शहरों और गांवों में ड्रेनेज सिस्टम बंद पड़े रहते हैं। भ्रष्टाचार व लापरवाही के चलते उनकी सफाई सालों-साल नहीं की जाती।बारिश और बाढ़ तो हर साल आती हैं, यहां यक्ष प्रश्न यह उठता है कि आखिर उन्हें रोकने के बंदोबस्त समय पर क्यों नहीं किए जाते ? आज देश में विकास के नाम पर राजनीति की जाती है। यह ठीक नहीं है।बारिश और बाढ़ के प्रबंधन पर सार्थक काम किए जाने की जरूरत है। कहना ग़लत नहीं होगा कि बाढ़ के कारण समाज का सबसे गरीब तबका प्रभावित होता है। बाढ़ जान-माल की क्षति के साथ-साथ प्रकृति को भी हानि पहुँचती है। अतः सतत् विकास के नज़रिये से बाढ़ के आंकलन की ज़रूरत है। जानकारी देना चाहूंगा कि तटबंधों, नहरों और रेलवे से संबंधित निर्माण के कारण नदियों के जल-प्रवाह क्षमता में कमी आती है, फलस्वरूप बाढ़ की समस्या और भी गंभीर हो जाती है। वर्ष 2013 में उत्तराखंड में आई भयंकर बाढ़ को मानव निर्मित कारकों का परिणाम माना जाता है। बादल फटना, नदियों में गाद का लगातार संचय, पेड़ पौधों की अंधाधुंध कटाई, विकास के नाम पर धरती के संसाधनों का अंधाधुंध दोहन, मौसम संबंधी तत्व कहीं न कहीं बाढ़ के लिए जिम्मेदार घटक हैं। वास्तव में आज बाढ़/सूखे से निपटने के लिये तंत्र सहित पूर्व तैयारी जैसे विकल्पों पर ज़ोर दिये जाने की जरूरत है। साथ ही प्राकृतिक जल निकास प्रणाली के पुनर्स्थापन पर भी अत्यधिक ज़ोर दिये जाने की आवश्यकता है।बाढ़ का सामना करने के लिये तैयार रहने हेतु बाढ़ पूर्वानुमान अति महत्त्वपूर्ण है तथा इसका देश भर में सघन विस्तार किया जाना चाहिये और वास्तविक समय आँकड़ा संग्रहण प्रणाली का उपयोग करते हुए आधुनिकीकरण किये जाने की जरूरत है। विभिन्न संरचनात्मक उपाय जैसे कि तटबंध, कटाव रोकने के उपाय, जल निकास तंत्र का सुदृढ़ीकरण, तटीय सुरक्षा के लिये दीवार से भी बाढ़ पर नियंत्रण किया जा सकता है। इसके अलावा पुनर्वनीकरण, जल निकास तंत्र में सुधार, वाटर-शेड प्रबंधन, मृदा संरक्षण जैसे उपाय किए जा सकते हैं। अधिकाधिक पेड़ पौधों का रोपण किया जा सकता है। आपदा प्रबंधन को हर समय तैयार रहने की जरूरत है।अपने घर की नालियों में बाढ़ के पानी को घुसने से रोकने के लिए मोरी की जालियों (सीवर ट्रैप्स) में चेक वाल्व लगाये जाने चाहिए। नालियों, सीवरेज सिस्टम को ठीक रखने की जरूरत है। नदियों, नहरों, नालों, घाटियों तथा अचानक बाढ़-ग्रस्त होने वाले अन्य क्षेत्रों से परिचित रहने की आवश्यकता है। इसके अलावा सूचना के लिए रेडियो सुनना या टेलीविजन देखना चाहिए। जागरूकता की जरूरत तो है ही।
(आर्टिकल का उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है।)
सुनील कुमार महला, फ्रीलांस राइटर,कालमिस्ट व युवा साहित्यकार उत्तराखंड ।