-ः ललित गर्ग:-
बाल गंगाधर तिलक प्रखर राष्ट्रवादी, हिन्दूवादी नेता एवं बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्तित्व थे। वे समाज सुधारक, राष्ट्रीय नेता, थे जिन्हें भारतीय इतिहास, संस्कृत, हिन्दू धर्म, गणित और खगोल विज्ञान में महारथ हासिल थी। तिलक ने ही सबसे पहले ब्रिटिश राज के दौरान पूर्ण स्वराज की मांग उठाई थी। स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे ले कर रहूंगा। इस नारे ने बहुत से लोगों को प्रोत्साहित किया था। आजादी के परवानों के लिए ये महज कुछ शब्द भर नहीं थे बल्कि एक जोश, एक जुनून था जिसके जरिए लाखों लोगों ने अपनी कुर्बानियां देकर मां भारती को अंग्रेजों से आजादी दिलाई। इस वाक्य को पढ़ने और सुनने वाले को बाल गंगाधर तिलक की याद आ ही जाती है। लोकमान्य का अर्थ है लोगों द्वारा स्वीकृत किया गया नेता। लोकमान्य के अलावा इनको हिंदू राष्ट्रवाद का पितामह भी कहा जाता है।
बाल गंगाधर तिलक भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के जनक के रूप में जाने जाते हैं। बाल गंगाधर तिलक का जन्म 23 जुलाई 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। रत्नागिरी गांव से निकलकर आधुनिक कालेज में शिक्षा पाने वाले ये भारतीय पीढ़ी के पहले पढ़े लिखे नेता थे। इन्होंने कुछ समय तक स्कूल और कालेजों में गणित पढ़ाया। अप्रतिम प्रतिभा सम्पन्न तिलकजी कुशल मानवशिल्पी के साथ राष्ट्र-शिल्पी थे। उनकी वाणी तीक्ष्ण, तेजधार होने के साथ-साथ सीधी, सरल एवं हृदय को छूने एवं प्रभावकारी परिणाम करने वाली थी। अपनी पारखी दृष्टि से व्यक्ति की क्षमताओं को पहचान कर न केवल उसका विकास करते थे अपितु उसे देश, समाज एवं राष्ट्र हित में नियोजित भी करते थे। राष्ट्रोत्थान की भावना जगाने में उनका कौशल अद्भुत था। एक सामाजिक-सांस्कृतिक-राष्ट्रीय व्यक्तित्व होते हुए भी तिलकजी ने भारतीय राजनीति की दिशा को राष्ट्रीयता की ओर कैसे परिवर्तित किया है, यह समझने के लिए भी उनके जीवन-दर्शन को पढ़ना आवश्यक है।
अखण्ड भारत का स्वप्न देखने एवं उसे आकार देने वालों में प्रखर राष्ट्रवादी नेता तिलक पश्चिमी शिक्षा पद्धिति के बड़े आलोचक थे। उनका मानना था इसके द्वारा भारतीय विद्यार्थियों को नीचा दिखाया जाता है और भारतीत संस्कृति को गलत ढंग से प्रस्तुत किया जा रहा है।अंग्रेजी शिक्षा के ये आलोचक थे। इस वजह से ये मानते थे कि यह भारतीय सभ्यता के प्रति अनादर सिखाती है। कुछ सोच विचार के बाद वे इसी नतीजे में पहुंचें कि एक अच्छा नागरिक तभी बन सकता है, जब उसे अच्छी शिक्षा मिले। भारत में शिक्षा को सुधारने के लिए उन्होंने अपने मित्र के साथ मिलकर ‘डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी’ की स्थापना की ताकि भारत में शिक्षा का स्तर सुधरे। शिक्षा का स्तर सुधारने की दिशा में भी काफी काम किया। तिलक ने अंग्रेजों के खिलाफ निर्णायक लड़ाई लड़ी। जब अंग्रेजों ने तिलक को 1906 में विद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर 6 साल की सजा सुनाई और बर्मा के एक जेल में डाल दिया तो जेल में महान किताब गीता रहस्य लिख डाली जो तिलक जैसा व्यक्तित्व ही कर सकता है। गणेश उत्सव और शिवाजी के जन्म उत्सव जैसे सामाजिक उत्सवों को प्रतिष्ठित कर उन्होंने लोगों को एक साथ जोड़ने का काम भी किया।
बाल गंगाधर तिलक को ब्रिटिश राज के दौरान स्वराज के सबसे पहले और मजबूत अधिवक्ताओं में से एक माना जाता है। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कई नेताओं से एक करीबी संधि बनाई, जिनमें बिपिन चन्द्र पाल, लाला लाजपत राय, अरविन्द घोष, वी० ओ० चिदम्बरम पिल्लै और मुहम्मद अली जिन्नाह शामिल थे।बाल गंगाधर तिलक ने इंग्लिश में मराठा दर्पण व मराठी में केसरी नाम से दो दैनिक समाचार पत्र शुरू किए, ये दोनों जल्द ही जनता में बहुत लोकप्रिय हो गए। तिलक ने अंग्रेजी शासन की क्रूरता और भारतीय संस्कृति के प्रति हीन भावना की बहुत आलोचना की। इन्होंने मांग की कि ब्रिटिश सरकार तुरन्त भारतीयों को पूर्ण स्वराज दे। वो अपने अखबार केसरी में अंग्रेजों के खिलाफ काफी आक्रामक लेख लिखते थे। इन्हीं लेखों की वजह से उनको कई बार जेल भेजा गया। तिलक अपने समय के सबसे प्रख्यात आमूल परिवर्तनवादियों में से एक थे। इसके अलावा वो जल्दी शादी करने के भी विरोधी थे। इसी वजह से वो शुरु से ही 1891 एज ऑफ कंसेन्ट विधेयक के खिलाफ थे, क्योंकि वे उसे हिन्दू धर्म में अतिक्रमण और एक खतरनाक उदाहरण के रूप में देख रहे थे। इस अधिनियम ने लड़की के विवाह करने की न्यूनतम आयु को 10 से बढ़ाकर 12 वर्ष कर दिया था।
तिलक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से 1890 में जुड़े। चूंकि उन दिनों कांग्रेस का राज था, इस वजह से वो भी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए लेकिन जल्द ही वे कांग्रेस के नरमपंथी रवैये के विरुद्ध हो गए, वो उनके विरोध में बोलने लगे। इसके अलावा कई अन्य नेता भी इसी तरह से विरोध में बोलने लगे और कई समर्थन में बोलने लगे। जिसकी वजह से 1907 में कांग्रेस गरम दल और नरम दल में विभाजित हो गयी। गरम दल में तिलक के साथ लाला लाजपत राय और बिपिन चन्द्र पाल शामिल हो गए, इन तीनों को लाल-बाल-पाल के नाम से जाना जाने लगा। 1908 में तिलक ने क्रान्तिकारी प्रफुल्ल चाकी और खुदीराम बोस के बम हमले का समर्थन किया जिसकी वजह से उन्हें बर्मा (अब म्यांमार) स्थित मांडले की जेल भेज दिया गया। जेल से छूटकर वे फिर कांग्रेस में शामिल हो गए और 1916 में एनी बेसेंट और मुहम्मद अली जिन्ना के साथ अखिल भारतीय होम रूल लीग की स्थापना की।
बाल गंगाधर तिलक ने एक समय अपने पत्र केसरी में ‘देश का दुर्भाग्य’ नामक शीर्षक से लेख लिखा था जिसमें ब्रिटिश सरकार की नीतियों का विरोध किया गया था। इस वजह से उनको गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें 6 वर्ष के कठोर कारावास के अंतर्गत माण्डले (बर्मा) जेल में बन्द कर दिया गया था। कारावास के दौरान तिलक ने जेल प्रबंधन से कुछ किताबों और लिखने की मांग की लेकिन ब्रिटिश सरकार ने उन्हें ऐसे किसी पत्र को लिखने पर रोक लगा दी जिसमें राजनैतिक गतिविधियां हो।उन्होंने जेल में रहने के दौरान कई पुस्तकें लिखीं मगर श्रीमद्भगवद्गीता की व्याख्या को लेकर मांडले जेल में लिखी गयी गीता-रहस्य सर्वोत्कृष्ट है, ये किताब इतनी प्रसिद्ध हुई कि इसका कई भाषाओं में अनुवाद भी हुआ है। इसके अलावा वेद काल का निर्णय, आर्यों का मूल निवास स्थान, गीता रहस्य अथवा कर्मयोग शास्त्र, वेदों का काल-निर्णय और वेदांग ज्योतिष आदि है। कारावास की सजा पूर्ण होने के कुछ समय पूर्व ही बाल गंगाधर तिलक की पत्नी का स्वर्गवास हो गया। इस खबर की जानकारी उन्हें जेल में भी एक खत से हुई। ब्रिटिश सरकार की तुगलकी नीतियों की वजह से वो अपनी मृतक पत्नी के अंतिम दर्शन भी नहीं कर पाए थे।
तिलक ने क्षेत्रीय सरकारों में कुछ हद तक भारतीयों की भागीदारी की शुरुआत करने वाले सुधारों को लागू करने के लिए प्रतिनिधियों को यह सलाह अवश्य दी कि वे उनके सहयोग की नीति का पालन करें। लेकिन नये सुधारों को निर्णायक दिशा देने से पहले ही 1 अगस्त 1920 ई. को मुंबई में उनकी मृत्यु हो गयी। उनकी मौत पर श्रद्धांजलि देते हुए महात्मा गांधी जी ने उन्हें आधुनिक भारत का निर्माता कहा एवं जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें भारतीय क्रान्ति का जनक कहा था।