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भारतीय परंपरा, संस्कृति और विचार की सच्ची प्रतीक और संवाहक रही है संस्कृत।

भले ही आज के युग में संस्कृत को एक ‘मृत भाषा’ की संज्ञा दे दी गई है लेकिन संस्कृत ही आज दुनिया की एकमात्र ऐसी भाषा है जिसे सबसे प्राचीन भाषा होने का गौरव प्राप्त है। आज दुनिया में लगभग 6-7 हजार से भी ज्यादा भाषाओं का प्रयोग किया जाता है और इन सभी भाषाओं की जननी संस्कृत को ही माना जाता है। यहां यह कहना कदापि ग़लत नहीं होगा कि 

संस्कृत केवल एक मात्र भाषा नहीं है अपितु संस्कृत एक विचार है। संस्कृत एक संस्कृति है, एक संस्कार है। संस्कृत में विश्व का कल्याण है, शांति है ,सहयोग है वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना निहित है।महर्षि श्री अरबिंदों के शब्दों में ‘अगर मुझसे पूछा जाए कि भारत के पास सबसे बड़ा खजाना क्या है और उसकी सबसे बड़ी विरासत क्या है, तो मैं बिना किसी हिचकिचाहट के जवाब दूंगा कि यह संस्कृत भाषा और साहित्य है और इसमें वह सब कुछ है। यह एक शानदार विरासत है, और जब तक यह हमारे लोगों के जीवन को प्रभावित करती है, तब तक भारत की मूल प्रतिभा बनी रहेगी।’ बहरहाल, इस वर्ष 30 अगस्त को विश्व संस्कृत दिवस के रूप में मनाया जाएगा। वास्तव में, हर साल श्रावण पूर्णिमा के अवसर पर इस दिवस का आयोजन किया जाता है। प्रतिष्ठित फोर्ब्स पत्रिका की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में सिर्फ संस्कृत ही एक ऐसी भाषा है जो पूरी तरह सटीक(एक्युरेट) है। इसका कारण हैं इसकी सर्वाधिक शुद्धता। कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर के लिए भी संस्कृत को ही सबसे उपयुक्त भाषा माना जाता है। वास्तव में, संस्कृत को विश्व की समस्त भाषाओं की जननी माना जाता है। संस्कृत को ‘देववाणी’ अथवा ‘सुरभारती’ भी कहा जाता है। वास्तव में, संस्कृत” शब्द की उत्पत्ति ‘सम् स् कृत’ से हुई है, जिसका अर्थ है ‘परिष्कृत’ या ‘परिमार्जित’ भाषा। मैक्समूलर जिन्संहोंने संस्कृत को आर्यों की मूल भाषा सिद्ध किया, उनके अनुसार संस्कृत के सभी शब्द 500 धातु से निकले हैं। यहां पाठकों को यह भी जानकारी देना चाहूंगा कि हिंदू धर्म के लगभग लगभग धर्मग्रंथ भी इसी भाषा में लिखे गए हैं और बौद्ध धर्म का महायान, जैन धर्म के महत्वपूर्ण ग्रंथ तक संस्कृत भाषा में लिखे गए हैं। आज भी हिंदू धर्म में पूजा, यहां तक कि विभिन्न संस्कार यज्ञादि संस्कृत में ही होते हैं। ताज्जुब की बात है कि कम्प्यूटर के इस युग में कम्प्यूटर साफ्टवेयर के लिए संस्कृत भाषा को सबसे उपयुक्त माने जाने के बावजूद इसे कम्प्यूटर के लिए प्रयोग नहीं किया जाता है, लेकिन पाठकों को यह जानकारी प्राप्त करके अत्यंत आश्चर्य होगा कि संस्कृत भाषा में किसी भी शब्द के समानार्थी शब्दों की संख्या सर्वाधिक है। उदाहरण के तौर पर हाथी शब्द के लिए संस्कृत में चार हजार से अधिक शब्द हैं जैसे गज:, हस्ति, करि, कूम्भा, मतंग, द्विप:, महामृग: आदि। नासा के वैज्ञानिकों के अनुसार जब वो अंतरिक्ष ट्रैवलर्स को मैसेज भेजते थे तो उनके वाक्य उलट हो जाते थे। इस वजह से मैसेज का अर्थ ही बदल जाता था। उन्होंने कई भाषाओं का प्रयोग किया लेकिन हर बार यही समस्या आई। आखिर में उन्होंने संस्कृत में मैसेज भेजा क्योंकि संस्कृत के वाक्य उलटे हो जाने पर भी अपना अर्थ नहीं बदलते हैं।वास्तव में, संस्कृत (संस्कृतम्) भारतीय उपमहाद्वीप की एक हिंदू-आर्य भाषा हैं जो कि हिंद-यूरोपीय भाषा परिवार की एक शाखा है। इतिहासकार विल डूरान्ट ने लिखा है कि ‘भारत की मातृभूमि कई प्रजातियों की जन्मदात्री रही है और संस्कृत यूरोपीय भाषाओं की जननी रही है। पाणिनि की रचना अष्टाध्यायी को आज भी संस्कृत व्याकरण और शब्दावली का एकमात्र स्रोत माना जाता है।प्रसिद्ध इतिहासकार और लेखक विलियम कुक टेलर ने संस्कृत के बारे में यहां तक कहा है कि ‘इस भाषा की महारत हासिल करना लगभग जीवनभर का श्रम है, इसका साहित्य अंतहीन लगता है।’ जानकारी मिलती है कि यह 5000 ईसा पूर्व के आसपास भारतीय उपमहाद्वीप में विकसित हुई थी। इसकी लिपि देवनागरी है। संविधान की आठवीं अनुसूची में सम्मिलित संस्कृत उत्तराखंड राज्य की द्वितीय राजभाषा है। संस्कृत वर्णमाला में 13 स्वर 33 व्यंजन और 4 आयोगवाह ऐसे कुल मिलाकर के 50 वर्ण हैं। स्वर को ‘अच्’ और व्यंजन को ‘हल्’ कहते हैं । वाल्मिकी, कालिदास, व्यास, भृर्तहरि, मांस, भवभूति, माघ, जयदेव,अमरू, अश्वघओष, पाणिनि, तुलसीदास, शंकराचार्य, अभिनवगुप्त, बाणभट्ट, वात्स्यायन, दण्डी, वराहमिहिर, चाणक्य, क्षेमेंद्र, सोमदेव, नारायण भट्ट, हेमचंद्र, जयंत भट्ट, जैमिनी और दत्तात्रेय संस्कृत साहित्य के प्रकांड विद्वान माने जाते हैं।स्वामी विवेकानंद ने यह बात कही है कि ‘भाषा ही उन्नत्ति का प्रतीक है। संस्कृत ही वह एक मात्र पवित्र भाषा है जिसके अंतस से अन्य भाषाओं का आविर्भाव हुआ है। भाषा शास्त्र में संस्कृत भाषा को एक सार्वभौमिक भाषा तथा सभी यूरोपीय भाषाओं की नींव के रूप में स्वीकार किया गया है।’ वास्तव में, संस्कृत में मानव जीवन के लिए उपयोगी चारों पुरुषार्थों धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष का विवेचन बड़े ही विस्तार से किया गया है। वास्तव में प्राचीनता, अविच्छिन्नता, व्यापकता, धार्मिक व सांस्कृतिक मूल्य तथा कलात्मक दृष्टि से ही नहीं अपितु धर्म व दर्शन के विचारात्मक अध्ययन की दष्टि से भी संस्कृत भाषा का अपना निजी महत्त्व है। आधुनिक भारतीय भाषाएँ जैसे- हिंदी, अंग्रेजी, बांग्ला, मराठी, सिन्धी, पंजाबी, नेपाली, आदि इसी से उत्पन्न हुई हैं। संस्कृत का समृद्ध इतिहास और परंपरा है। संस्कृत भाषा भारतीय उपमहाद्वीप की एक हिंद-आर्य भाषा है। इसे व्याकरण और वाक्य-विन्यास की अत्यधिक विकसित प्रणाली के साथ प्राचीनतम और सबसे जटिल भाषाओं में से एक माना जाता है। बहरहाल, संस्कृत भाषा के सार्वभौमिक स्वरूप एवं व्यापकता के कारण वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इसका महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है। संस्कृत ही एक ऐसी एकमात्र भाषा हैं जो क्रमशः अंगुलियों एवं जीभ को लचीला बनाते हैं। संस्कृत अध्ययन करने वाले छात्रों को गणित, विज्ञान एवं अन्य भाषाएँ ग्रहण करने में सहायता मिलती है। अक्सर कहा जाता है कि अरबी भाषा को कंठ से और अंग्रेजी को केवल होंठों से ही बोला जाता है किंतु संस्कृत में वर्णमाला को स्वरों की आवाज के आधार पर कवर्ग, चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग, पवर्ग, अंतःस्थ और ऊष्म वर्गों में बांटा गया है। संस्कृत के बारे में एक रोचक जानकारी यह भी मिलती है कि कर्नाटक के मट्टुर गाँव में आज भी लोग संस्कृत में ही बोलते हैं। यहां तक कहा गया है कि संस्कृत में बात करने से मानव शरीर का तंत्रिका तंत्र तक सक्रिय रहता है। यहां तक कि यूनेस्को ने भी मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की अपनी सूची में संस्कृत वैदिक जाप को जोड़ने का निर्णय लिया गया है। यूनेस्को ने माना है कि संस्कृत भाषा में वैदिक जप मानव मन, शरीर और आत्मा पर गहरा प्रभाव पड़ता है। यह याददाश्त बढ़ाती है। संस्कृत की खास बात यह है कि संस्कृत वाक्यों में शब्दों की किसी भी क्रम में रखा जा सकता है। इससे अर्थ का अनर्थ होने की बहुत कम या कोई भी सम्भावना नहीं होती। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि सभी शब्द विभक्ति और वचन के अनुसार होते हैं। जैसे- अहं गृहं गच्छामि या गच्छामि गृहं अहं दोनों ही ठीक हैं।संस्कृत एकमात्र ऐसी भाषा है, जिसमें बहुत कम शब्दों में ही वाक्य पूर्ण हो जाते हैं। इस प्रकार संस्कृत भाषा से बड़े वाक्यों को बहुत कम शब्दों में बयां किया जा सकता है।अंत में यही कहूंगा कि संस्कृत का ज्ञान भण्डार दुनिया का एक नायाब और सबसे अमूल्य खजाना है। यह भाषा महान भारतीय परंपरा, यहां की संस्कृति और विचार की सच्ची प्रतीक रही है।

सुनील कुमार महला, फ्रीलांस राइटर, कालमिस्ट व युवा साहित्यकार, उत्तराखंड।

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