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अविश्वास प्रस्ताव पर राहुल गांधी के भाषण को कैसे देखें


अवधेश कुमार
अविश्वास प्रस्ताव के दौरान लोकसभा में राहुल गांधी के भाषण को लेकर कई तरह के विवाद उत्पन्न हुए हैं। इसमें दो राय नहीं कि राहुल के भाषण पर पक्ष – विपक्ष सहित पूरे देश की नजर थी। मार्च में सूरत न्यायालय की सजा के कारण उनकी संसद सदस्य चली गई थी और उच्चतम न्यायालय द्वारा सजा पर रोक लगाये जाने के बाद अविश्वास प्रस्ताव के दौरान ही वे लोकसभा में वापस आए। उनकी वापसी के दिन जिस तरह भाजपा विरोधी दलों ने उनका स्वागत किया वह बता रहा था कि मार्च से अगस्त तक राजनीति में कितना परिवर्तन आ गया है। वस्तुतः जब उनकी संसद सदस्यता गई थी तब भाजपा विरोधी विपक्षी मोर्चा का गठन नहीं हुआ था। 18 जुलाई को बेंगलुरु में विपक्षी मोर्चा आईएनडीआईए के गठन के बाद भाजपा विरोधी विपक्ष की राजनीति की तस्वीर कांग्रेस और राहुल गांधी के संदर्भ में काफी हद तक बदली हुई है । इस कारण यह उम्मीद थी कि राहुल गांधी तथ्यों और तर्कों के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उनकी सरकार तथा भाजपा का जबरदस्त घेराव करेंगे। क्या राहुल गांधी इस कसौटी पर खरे उतरे?
यह ठीक है कि कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी के समर्थक उनके भाषण पर तालियां पीट रहे हैं और वाहवाह कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर उनके भाषण के क्लिपिंग जबरदस्त वायरल कराये जा रहे हैं। यही नहीं जो लोग भी राहुल गांधी की भाषण पर कहीं टिप्पणियां कर रहे हैं वहां भी प्रतिक्रियाओं की बाढ़ है। इसका अर्थ है कि कांग्रेस पार्टी का प्रचार विभाग विशेषकर सोशल मीडिया इस समय पूरी तरह संगठित, सतर्क और सक्रिय है। किंतु क्या इतना ही पर्याप्त है? लोकसभाध्यक्ष को राहुल गांधी के भाषण से काफी अंश हटाने पड़े हैं। विपक्ष के इतने बड़े नेता के भाषण से इतना ज्यादा अंश हटाने की लोकसभा के इतिहास की शायद पहली घटना होगी। 15 बार उन्होंने हत्या शब्द का प्रयोग किया। वैसे आजकल लाइव प्रसारण के कारण सांसदों के भाषण जनता तक पहुंच जाते हैं। इसलिए आपने रिकॉर्ड से हटा दिया वह बहुत ज्यादा मायने नहीं रखता। हां, लोकसभा अध्यक्ष के द्वारा हटाए गए अंश को निजी टेलीविजन चैनल भी नहीं चला सकते। यह कांग्रेस के लिए अवश्य धक्का है।
आप थोड़ी देर के लिए कांग्रेस या भाजपा के समर्थक विरोधी होने से बाहर आइए और सोचिए की क्या सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पर कांग्रेस पार्टी के सक्रिय सबसे बड़े नेता का भाषण उपयुक्त या प्रभावी माना जाएगा? उनके करीब 37 मिनट के भाषण में 15 मिनट के आसपास तो भारत जोड़ो यात्रा का उनका विवरण रहा। भाषण के आरंभ में उन्होंने अपनी वापसी के लिए लोकसभा अध्यक्ष को धन्यवाद देते हुए यह कह दिया कि हमने पिछली बार अडाणी जी पर ज्यादा बोला था, इसलिए आपको भी थोड़ी तकलीफ हुई। इस तरह की टिप्पणी अवांछित और अशोभनीय है।़। किसी भी पार्टी के द्वारा सभापति के बारे में ऐसी कोई पंक्ति नहीं बोली जानी चाहिए जो उसे पद के मर्यादा को कमजोर करता है। उसके बाद उन्होंने जो कुछ बोला उसे लगा नहीं कि उनकी कोई तैयारी थी। आपने मणिपुर की हत्या कर दी …भारत माता की हत्या कर दी …आप देशप्रेमी नहीं देशद्रोही हो… आप देशभक्त नहीं देशद्रोही हो जैसी पंक्तियों को कोई भी निष्पक्ष व्यक्ति उचित नहीं मान सकता। राहुल गांधी बोल रहे थे कि रावण दो ही की सलाह मानता था, कुंभकरण और मेघनाद, इसी तरह नरेंद्र मोदी जी दो ही व्यक्ति केवल अमित शाह और अडाणी जी की सलाह मानते हैं। इस तरह की बातों से वह क्या साबित करना चाहते थे?
साफ है कि उन्होंने लोकसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को रावण तथा गृह मंत्री अमित शाह को कुंभकरण साबित करने की कोशिश की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को रावण से लेकर भस्मासुर और न जाने क्या-क्या कांग्रेस के नेता पहले भी बता चुके हैं। राहुल गांधी इतने महीनों बाद लोकसभा में वापसी के बाद अगर अपनी सोच को यहीं तक सीमित रखे हुए हैं तो फिर उनकी राजनीतिक धारा और भविष्य को लेकर निश्चित रूप से प्रश्न खड़े होंगे। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा अत्यंत व्यवस्थित रही। हालांकि उसमें भी उन्होंने कई बार ऐसे भाषण दिए जिनसे समस्याएं पैदा हुईं। यहां तक कि उनके साथ ही दलों को भी दिक्कतें हुई और शरद पवार को तो जाकर कहना पड़ा कि आप वीर सावरकर पर हमले मत करिए। यही नहीं सूरत न्यायालय से उनकी सजा भी उनकी बोली के कारण ही हुई। उच्चतम न्यायालय ने उन्हें दोष से मुक्त नहीं किया है। केवल इतना कहा है कि अधिकतम निर्धारित 2 वर्ष की सजा न्यायालय ने क्यों दिया इसका कारण स्पष्ट नहीं है। न्यायालय ने साफ कहा कि राहुल गांधी ने जो कुछ बोला वह गुड टेस्ट या अच्छा नहीं था। सार्वजनिक जीवन में अपने बोलने पर व्यक्ति को सतर्क रहना चाहिए और राहुल गांधी की जिम्मेदारी है कि आगे से वे इस पर ध्यान दें। लोकसभा में उनका भाषण साबित करता है कि उन्होंने अपनी वाणी को लेकर ठंडे मन से विचार नहीं किया और न ही उनके रणनीतिकारों ने उन्हें सही तरीके से समझाया है।
सच कहा जाए तो राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उनकी सरकार और भाजपा को घेरने के बड़े अवसर से वंचित रह गए हैं। उनके पास अवसर था कि मणिपुर पर तथ्यों और तर्कों के साथ सरकार को कटघरे में खड़ा करते। इसके पहले मणिपुर या पूर्वोत्तर में हुई हिंसा के संदर्भ में पूर्व की सरकारों के अच्छे कदमों तथा वक्तव्यों को उद्धृत करते। दूसरे राज्यों में इसी तरह की हिंसा व नस्लीय टकराव में कांग्रेस सरकारों ने कैसे काम किया, प्रधानमंत्रियों की क्या भूमिका रही, इन विषयों को वे रख सकते थे। सरकार से बिंदु दर बिंदु बातें रखकर प्रश्न पूछ सकते थे। चूंकि अविश्वास प्रस्ताव था, इसलिए अर्थनीति, विदेश नीति से लेकर सरकार , मंत्रियों के साथ भाजपा नेताओं, सांसदों के कुछ ऐसे वक्तव्यों को उद्धृत करते जो उत्तरदायित्व पूर्ण नहीं माने जाते। निश्चय ही प्रधानमंत्री, गृहमंत्री व अन्य नेताओं को उसके जवाब के लिए तैयारी करनी पड़ती। जो कुछ उन्होंने बोला वो वैसी बातें हैं जिन पर सरकार , भाजपा और राजग के लोग केवल आलोचना की, उनके उत्तर के लिए तथ्य आदि जुटाने की आवश्यकता नहीं पड़ी। आश्चर्य की बात है कि अपना वक्तव्य खत्म करने के बाद वे रुके भी नहीं। ऐसा लगा जैसे वह अपनी बात रखने और निकलने को लेकर भी हड़बड़ी में थे। जाते-जाते उन्होंने सरकारी बेंच की ओर फ्लाइंग किस देकर विवाद बढ़ा दिया। हालांकि यह मानने का कोई कारण नहीं है कि उनका फ्लाइंग किस महिलाओं को अपमानित करने या उनकी ओर अभद्रता प्रदर्शित करने के लिए था। पर संसद के अंदर फ्लाइंग किस देना चाहिए, नहीं देना चाहिए यह विषय अवश्य विचारणीय है। उनके फ्लाइंग किस को शायद ही किसी सांसद ने अंतर्मन से संसद की गरिमा के अनुकूल यह उचित माना होगा। कांग्रेस ने पहले से दी गई सूचना के अनुसार अविश्वास प्रस्ताव का भाषण राहुल गांधी से आरंभ न करवा कर पूर्वोत्तर के सांसद गौरव गोगोई से आरंभ करवाया और ऐसा लगा किय उसकी एक बेहतर रणनीति हो सकती है। गौरव गोगोई उसी क्षेत्र से आते हैं और उन्होंने ही पहले लोकसभा अध्यक्ष को अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया था। इससे लगा कि कांग्रेस सरकार के विरुद्ध सुनियोजित रणनीति से आगे बढ़ रही है। राहुल गांधी को मुख्य मोर्चा संभालना था। ऐसा लगता है कि राहुल गांधी अंदर से गुस्से में हैं और वहीं लोकसभा के अंदर उनके भाषण और तेवर से प्रकट हो रहा था। निष्कर्ष के रूप में स्वीकार करना होगा कि राहुल गांधी अत्यंत अनुकूल अवसर का उपयोग नहीं कर सके।

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