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सीमा और अंजू का प्रेम

आचार्य भरत मुनि के नाट्यशास्त्र में आठ स्थायी भावों और उन पर आधारित आठ रसों को बताया गया है। सर्वप्रथम रस श्रृंगार रस को दो भागों विभक्त किया गया है, संयोग श्रृंगार व वियोग श्रृंगार। संयोग श्रृंगार के अन्तर्गत रति का भाव होता है, जिसमें नायक, नायिका विभिन्न प्रकार के हाव-भाव से एक दूसरे को आकर्षित करने का प्रयास करते हैं। इसी भाव से सम्बन्धित दो प्रकरणों ने समस्त जनता को प्रेम की नवीन परिभाषा पर चिन्तन करने के लिए विवश कर दिया है।
प्रेम और जल का प्रवाह एक समान होता है। जब जल नदियों में उफनता है तब उसके प्रवाह को रोकना किसी के लिए भी सरल नहीं होता। उसी प्रकार जब प्रेम परवान चढ़ता है तो वह देश-विदेश के सामाजिक, पारिवारिक बंधनों की परवाह नहीं करता। समाज में ऐसे अनेक उदाहरण हैं जिनमें अन्तोत्गत्वा प्रेम के असीम प्रवाह के समक्ष परिवार व समाज को नतमस्तक होना ही पड़ा है अन्यथा निर्दयी समाज कभी-कभी उस प्रेम का दर्दनाक अंत भी कर देता है।
सीमा व सचिन के प्रेम प्रसंग की चर्चा आज दूरदर्शन, सोशल मीडिया आदि पर प्रकाशित हो रही हैं। स्वतंत्र भारत में सभी को अपनी-अपनी भावाभिव्यक्ति करने का अधिकार है। जिस प्रकार एक सिक्के के दो पहलू होते हैं, जिसमें दोनों ही पहलू स्वयं में महत्वपूर्ण होते हैं, इसलिए पहले पहलू के साथ-साथ दूसरे पहलू को भी समझने की आवश्यकता है। इस प्रकरण के अन्तर्गत अतिशय सम्भावना यह भी निहित है कि सीमा हैदर, सचिन को हृदय से प्रेम करती हो और इसी कारण वह अपने चारों बच्चों को लेकर देश-विदेश की सारी सीमाएं लांघ कर अजनबी देश में अवैध रूप से निडर होकर रहने लगती है, इस तथ्य का संज्ञान होने पर भी कि उसे चारों बच्चों समेत आजीवन कारावास में भी रहना पड़ सकता है। अभी सीमा हैदर के विषय में हमारी सुरक्षा ऐजेन्सियां जांच पड़ताल कर रही हैं, यदि जाँच में वह निर्दोष पायी जाती है एवं जब हम लाखों शरणार्थियों (रोहिग्याओं) को अपने देश में शरण दे सकते हैं तो एक प्रेमिका, जिसने प्रेम के वशीभूत होकर अपना धर्म भी परिवर्तित कर लिया और पूर्ण रूप से भारतीय संस्कृति को अपना लिया तो उसको भारतीयों के द्वारा अपनाने में क्या आपत्ति हो सकती है। आशा है कि हमारी इस छोटी सी पहल से अतीत में हिन्दु से मुस्लिम धर्म अपनाने वाले परिवारों की भारत में रहने वाली करोड़ो मुस्लिम बेटियाँ, हिन्दु लड़को के साथ विवाह करने के लिए अपने मूल धर्म में आना स्वीकार कर लें। इस पहल के कारण देश से हिन्दु-मुस्लिम वैमनस्य के कारण जो अशान्ति सर्वव्याप्त है सम्भवतया वह समाप्त हो जाए और देश से इस दीर्घ अवधि से व्याप्त सामाजिक समस्या का निराकरण हो जाए।
इसी श्रृखंला में एक अन्य प्रकरण में जिसमें भारत देश की बेटी अंजू ने प्रेम के वशीभूत होकर, अपने दोनों मासूम बच्चों को तड़पता छोड़कर पाकिस्तान पहुँच कर अपने प्रेमी नसरुल्लाह से निकाह कर लिया और अपना नाम फातिमा रख लिया। वहाँ की सरकार और जनता ने भी उन्मुक्त हृदय से उसको स्वीकार भी कर लिया। निकाह के पश्चात दोनों प्रेमी पाकिस्तान में रहते हुए अपने जीवन को आनन्द के साथ व्यतीत कर रहें हैं और वहाँ के दर्शनीय स्थलों का भी भ्रमण कर रहें हैं। इसके विपरीत भारत में घटित प्रकरण की केन्द्र बिन्दु सीमा को जिन कठिनाईयों को सहन करना पड़ रहा है, उसमें से अंजू को पाकिस्तान की सरकार के सरल हृदय के द्वारा स्वीकृत करने के कारण 1 प्रतिशत भी कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ा।
द्वितीय प्रकरण की प्रमुख केन्द्र बिन्दु भारतीय महिला अंजू के द्वारा एक अपराध अवश्य हुआ है कि वह अपने दोनों मासूम बच्चों को कठोर हृदय के साथ बिलखता छोड़कर देश की सीमा पार अन्य देश में स्थायी निवासी हो गई, इसके विपरीत पाकिस्तानी महिला सीमा हैदर अपने चारों बच्चों को हृदय से लगाकर अपने साथ लेकर आयी। इन दोनों प्रकरणों में मुख्य अंतर प्रेम के भाव का है। सीमा का प्रेम सचिन के साथ-साथ अपने बच्चों के प्रति वात्सल्य भाव से भी जुड़ा था परन्तु अंजू का प्रेम नसरूल्लाह नामक युवक के साथ होना मात्र एक आकर्षण की ओर इंगित करता है। अब दोनों महिलाओं ने जो साहसिक पहल की है उसको दोनों देशों को सहृदयता के साथ स्वीकार करना चाहिए ताकि उनका जीवन सफल हो सके। इन दोनों महिलाओं के द्वारा लिया गया निर्णय, ईश्वर का निर्णय मानकर इनको आगामी जीवन निर्विघ्न व्यतीत करने का अवसर प्रदान किया जाना चाहिए।

योगेश मोहन

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