Shadow

चन्द्र यान

अद्भुत अविश्वसनीय लगभग पचहत्तर लाख लोग एक साथ देख रहे थे केवल इसरो के यूट्यूब चैनल पर। इतनी बड़ी भीड़ का एक साझे लक्ष्य पर दृष्टि गड़ाना अपने आप में अद्भुत है। मुझे पता है, अंतिम के दस मिनट तक सबकी धड़कने मेरी ही तरह बहुत बढ़ गयी होंगी। और फिर इसरो के उस हॉल में बैठे उन देश के सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिकों की भीड़ जब उछल कर तालियां बजाती हैं, तो लगता है जैसे जग जीत लिया हो। मैं उछल पड़ा हूँ। मोबाइल फेंक कर चिल्ला उठा हूँ, “हर हर महादेव!” प्रचंड उल्लास के क्षणों में केवल ईश्वर याद आते हैं। रौंगटे खड़े हो गए हैं, गला भर आया है, आंखें बहने लगीं हैं। मैं जानता हूँ, यही दशा सबकी हुई होगी। पूरे देश की… ऐसी उपलब्धियां, ऐसे क्षण एक झटके में पूरे देश को एक सूत्र में बांध देते हैं। मेरे बच्चे आश्चर्य से मेरा मुँह देख रहे हैं। वे छोटे हैं, इस उपलब्धि का मूल्य नहीं जानते। सावन के महीने में धरती की राखी लेकर भाई के पास पहुँचे उस संवदिया का चंद्रमा पर उतरना उन्हें याद रहे न रहे, अपने पिता का उछल पड़ना सदैव याद रहेगा। बड़े होने पर समझेंगे वे इस क्षण का मूल्य, कि कैसे हजार वर्षों के संघर्ष से मुक्त होने के सत्तर वर्ष बाद ही इस पुण्यभूमि ने अपने गौरवशाली अतीत की चमक दुबारा बिखेरनी शुरू कर दी थी। चंद्रयान की ओर टकटकी लगा कर देखते लोगों में अधिकांश को विज्ञान की अधिक समझ नहीं है, पर इस उपलब्धि ने सबकी छाती चौड़ी कर दी है। चंद्रयान के चनरमा तक पहुँचने से मिलने वाली जानकारियों का हिसाब किताब वैज्ञानिक देखें, हम तो केवल यह सोच कर उछल पड़े हैं कि देश सफल हुआ है। हम आपस में भाषा, क्षेत्र, रूप या जाति को लेकर भले हजार बार सहमत-असमत होते रहे हों, बात जब राष्ट्र की आती है तो हम एक होते हैं। यही हमारा मूल चरित्र है। संसार की इस सबसे प्राचीन सभ्यता के ध्वज का चंद्रमा के उस अनजान भाग तक पहुँचना केवल एक वैज्ञानिक उपलब्धि नहीं, बल्कि इस ऐतिहासिक सत्य का नवीनतम प्रमाण है कि इस ब्रम्हाण्ड को सबसे पहले हमने पहचाना था। ग्रहों से सबसे पुराना नाता हमारा है, सितारों का चरित्र सबसे पहले हम समझे थे। वो तो घर में बार बार घुस आते डकैतों से उलझने में देर हो गयी, वरना अपनो से नाता हमसे अधिक कोई क्या ही निभाएगा। पिछली असफलता के बाद यह सफलता प्रमाण है कि असफलताएं एक सामान्य घटना भर होती हैं। सभ्यता का रथ असफलता के ठोकरों पर नहीं रुकता, वह दौड़ता रहता है। असफलता सफलता को थोड़ी दूर भले कर दें, पर उसके बाद मिलने वाले उल्लास को उतना ही बढ़ा भी देती हैं। इसरो ने एक बार फिर देश को गौरवान्वित किया है। उसके सारे वैज्ञानिकों को बधाई। और बधाई इस पुण्यभूमि के हर व्यक्ति को, कि जिनके बच्चों ने आज लपक कर चांद को छू लिया है। सर्वेश तिवारी श्रीमुख गोपालगंज, बिहार। ===================== भारत संपूर्ण विश्व को भौतिक और आध्यात्मिक प्रगति की राह पर अग्रसर करेगा – डॉ. मोहन भागवत, सरसंघचालक, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ “अभी तक चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर कोई नहीं उतरा था, हमारे वैज्ञानिकों ने लंबे परिश्रम के पश्चात वहां उतरने का पहला मान प्राप्त किया है। संपूर्ण देश के लिए ही नहीं, सारे विश्व की मानवता के लिए। सारे विश्व को वसुधैव कुटुंबकम् की अपने स्नेह से आलोढ़ित करने वाली दृष्टि को लेकर भारत अब शांति और समृद्धि विश्व को प्रदान करने वाला भारत बनने की दिशा में अग्रसर हुआ है। इसका प्रतीक आज का हम सबके आनंद का यह क्षण है। हमारे वैज्ञानिक कठोर परिश्रम से यह जो धन्यता का क्षण हमारे लिए खींच कर लाए हैं, उसके लिए हम उनके कृतज्ञ हैं और सारे वैज्ञानिकों का, उनको प्रोत्साहन देने वाले शासन-प्रशासन, सबका हम धन्यवाद करते हैं, हम उन सबका अभिनंदन करते हैं। भारत उठेगा और सारी दुनिया के लिए उठेगा। भारत विश्व को भौतिक और आध्यात्मिक दोनों प्रकार की प्रगति की राह पर अग्रसर करेगा, यह बात अब सत्य होने जा रही है। ज्ञान के, विज्ञान के भी क्षेत्र में हम बढ़ चलेंगे, नील नभ के रूप के नव अर्थ भी हम कर सकेंगे। भोग के वातावरण में त्याग का संदेश देंगे, दास्य के घन बादलों से सौख्य की वर्षा करेंगे। इस उद्देश्य को साकार करने के लिए सारे देश का आत्मविश्वास जग गया है। स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव में यह एक वास्तविक अमृत वर्षा करने वाला क्षण हम सब लोगों ने अपनी आंखों से देखा है, इसलिए हम धन्य हैं। अब हम अपने कर्तव्य के लिए जागें, और आगे बढ़ें, इसकी आवश्यकता है। आगे बढ़ने के लिए आवश्यक सामर्थ्य, आवश्यक कला कौशल, आवश्यक दृष्टि, यह सब कुछ हमारे पास है। यह आज के इस प्रसंग ने सिद्ध कर दिया है। मैं फिर से एक बार सबका अभिनंदन करता हूं और हृदय से कहता हूं – भारत माता की जय। ===================== भारतीय बाल साहित्य में वर्षों से चंदा ‘मामा’ को इसी विशेषण के साथ हम सब ने प्रेम से मामा का स्थान दिया है। इसी रिश्ते को बलवती बनाते हुए सैकड़ो कविताएं रची गई। कभी पूर्णिमा से अमावस की ओर जाते मामा को रूठते हुए मामा कहा गया तो कभी तिथि के अनुसार सिकुड़ते हुए चंदा मामा को बच्चों ने ठंड से ठिठुर कर सिकुड़ते हुए मामा मान लिया। कोई बच्चा कहानियों में यह कहता नजर आता था की धरती माता अपने नन्हे भैया चंदा के लिए रुई भरकर रजाई तैयार कर रही है। इन सारे प्यारे प्यारे प्रतिकों के बीच भारत के इसरो द्वारा भेजे गए चंद्रयान ने जैसे ही चंद्रमा पर लैंडिंग की और इस दृश्य को टीवी पर इस देश के करोड़ों बच्चों ने एक साथ देखा तो यूँ लग रहा है मानो बाल साहित्य के सारे प्रतीक और प्रतिमान ही बदल गए हैं। आधुनिक युग की गूगल पीढ़ी को संबोधित करते हुए माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने जब यह कहा कि अब – चंदा मामा दूर के नहीं चंदा मामा बस एक टूर के होकर रह गए हैं तो लगा सचमुच बाल साहित्यकर धन्य हो गए। आज देश का शीर्ष नेतृत्व भी बाल साहित्य उद्धृत कर रहे हैं। मैं भी बाल साहित्य और बाल पत्रकारिता का विद्यार्थी होने के नाते यही कहना चाहूंगा कि- “चंदा मामा दुर के, पूए पकाए बुर के।” नहीं अब भारत के बच्चे गाएंगे – “चंदा मामा पास के, पुए पकाएं आस के।” और यह आस पूरी की हमारे चंद्रयान ने। धरती माता की राखी लेकर गए यान को भारत के बच्चों की ओर से हृदय से आभार। अमिताभ बच्चन अंकल हमारी ओर से कहिए ना एक बार-“मामा आज खुश तो बहुत होंगें तुम।हँय ssss।” डॉ विकास दवे निदेशक, साहित्य अकादमी, म.प्र. शासन, भोपाल ============== मेरा देश बदल रहा है- एक जाने माने वामपंथी विचारक ने लिखा कि- “ध्यान दें कि आज भारत ने जो उपलब्धि अर्जित की है वह एक दिन, एक बरस, एक दशक की नहीं, साठ बरसों की मेहनत का फल है. फिर याद कीजिए कि इसरो की स्थापना 1962 में हुई थी. सलाम कीजिए हमारे उन जन नायकों को जो इतना दूरगामी और वैज्ञानिक सोच रखते थे. उनका एक शिष्य , उन्हें एकदम उसी भाषा मे उत्तर दे आया *काश! ऐसा ही चिंतन स्वतंत्रता प्राप्ति के बारे में भी किया जाता।* ध्यान दें कि 15 अगस्त को भारत ने जो उपलब्धि अर्जित की है वह एक व्यक्ति, एक परिवार , एक पार्टी की नहीं,190 बरसों की मेहनत का फल है. फिर याद कीजिए कि 1757 से ही भारत ने अंग्रेजों से मुक्ति के लिए संघर्ष प्रारम्भ कर दिए थे। 1857 में तो एक पूरा राष्ट्रव्यापी स्वतंत्रता संग्राम हुआ था।तब आजादी के उत्तराधिकारी द्वय का जन्म भी नही हुआ था।. सलाम कीजिए हमारे उन स्वतंत्रता सेनानियों को जो इतना दूरगामी और राष्ट्रीय सोच रखते थे. – संदीप जोशी ====================== **ऋषि परंपरा के सम+गठन की** •••••••••••••••••••••••••••••••••• **संकल्प शक्ति** *ऋषि परंपरा की पुनरावृत्ति* ••••••••••••••••••••••••••••••••• **दिनांक २३ अगस्त २०२३** पौराणिक इतिहास के अनुसार । सतयुग में जंबूद्वीप [आर्यावर्त अर्थात भारत वर्ष] के ऋषि अपने योग बल [ शक्ति ] के आधार पर अंतरिक्ष का भ्रमण किया करते थे। *प्रातः स्मरणीय ऋषियों* [तत्कालीन वैज्ञानिक] ने प्रथ्वी से विभिन्न ग्रहों नक्षत्रों की दूरी का जो विवरण शास्त्रों में उल्लिखित किया है।विश्व के अनेक वैज्ञानिकों ने उससे सहमति व्यक्त किया है। *सिद्ध मंत्रों द्वारा संचालित अदृश्य अद्भुत मारक क्षमता के आग्नेयास्त्र भी ऋषि युग में विकसित हुए*। त्रेता व द्वापर युग में उन्ही अग्नेयास्त्रों के प्रयोग का उल्लेख शास्त्रों में उल्लिखित है। *शोध अनुसंधान को प्रोत्साहन का परिणाम राष्ट्र ने आज प्रत्यक्ष देखा* *चंद्रमा पर चंद्रयान की साफ्ट लैंडिंग का साक्षी बनने का सौभाग्य देश को हासिल हुआ* सूर्य देव से महाबली पवनसुत हनुमान जी संबंधों से सभी परिचित हैं। *इतिहास साक्षी है कि श्री हनुमान जी ने श्री सूर्यदेव से शिक्षा प्राप्त की थी* भरत भूमि के ऋषियों को जल, थल,नभ मंडल के रहस्यों का सूक्ष्मतम ज्ञान [गहन] हासिल था। *शास्त्रों में साक्ष्य उपलब्ध हैं* आज राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी की पंक्ति *जीवंत* हो गई ~ *भूलो न ऋषि संतान हो, अब भी तुम्हें यदि ध्यान हो*। *तो विश्व को फिर भी तुम्हारी शक्ति का कुछ ज्ञान हो*।। आधुनिक ऋषि तुल्य वैज्ञानिकों की साधना को बारंबार नमन संपूर्ण विश्व के मंदिरों व यज्ञशालाओं एवं घर घर में जनमानस की साधना साकार हुई। *परम सत्ता से कामना* इस देवभूमि में प्रारंभ अश्वमेध यज्ञ के घोड़े को कोई भी कुदृष्टि छेड़छाड़ करने का साहस न कर सके। *डॉ धनंजय* [स्वयं सेवक व शिक्षक] 

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