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कोटा पर कलंक लगाती आत्महत्या की घटनाएं

रमेश सर्राफ धमोरा

राजस्थान का कोटा शहर देश में कोचिंग की सबसे बड़ी मंडी बन चुका है। यहां प्रतिवर्ष लाखों छात्र कोचिंग करने के लिए आते हैं। जिससे कोचिंग संचालकों को सालाना कई हजार करोड़ रुपए की आय होती है। हालांकि कोटा आने वाले सभी छात्र मेडिकल व इंजीनियरिंग परीक्षा में सफल नहीं होते हैं। मगर देश की शीर्षस्थ मेडिकल व इंजीनियरिंग संस्थानों में चयनित होने वाले छात्रों में कोटा में कोचिंग लेने वाले छात्रों की संख्या भी काफी होती है। इसी कारण अभिभावक अपने बच्चों को कोचिंग के लिए कोटा भेजते हैं। कोटा में कोचिंग लेने वाले छात्रों को प्रतिवर्ष लाखों रुपए खर्च करने पड़ते हैं। बहुत से छात्रों के अभिभावकों की स्थिति इतना खर्च वहन करने की नहीं होने के उपरांत भी वह अपने बच्चों को इस आशा से कोटा भेजते हैं कि यदि वह परीक्षा में सफल हो जाता है तो भविष्य में इंजीनियर या डॉक्टर बन जाएगा। इसके लिए लोग लाखों रुपए के कर्ज के बोझ तले भी दब जाते हैं।

कोचिंग के बड़े केंद्र कोटा में पढ़ने वाले छात्रों द्वारा की जा रही आत्महत्याओं की घटनाएं शहर के दामन पर कलंक लगा रही है। पिछले अगस्त महीने में ही कोटा में कोचिंग करने वाले पांच छात्रों ने आत्महत्या कर ली थी। साल 2023 के 8 महीना में अब तक कोटा में 23 छात्र आत्महत्या कर चुके हैं। पिछले 5 वर्षों में यहां 70 छात्रों ने आत्महत्या की है। कोटा में कोचिंग संस्थानों में पढ़ाई करने वाले छात्रों द्वारा लगातार की जा रही आत्महत्या की घटनाओं से पूरा देश सकते की स्थिति में है। सरकार व प्रशासन द्वारा लाख प्रयासों के उपरांत भी कोटा के छात्रों द्वारा आत्महत्या करने की घटनाएं नहीं रूक पा रही है। कोटा में आत्महत्या करने वाले छात्रों में से अधिकांश गरीब या मध्यम वर्गीय परिवारों से आते हैं। इसी वर्ष जो 23 छात्रों ने आत्महत्या की है उनमें से 19 छात्र व चार छात्राएं शामिल है। इनमें से 17 छात्र नीट परीक्षा की तैयारी कर रहे थे वही 6 छात्र जेईई परीक्षा की तैयारी कर रहे थे।

कोटा में छात्रों द्वारा आत्महत्या करने का मुख्य कारण छात्रों पर पढ़ाई करने के लिए पड़ने वाला मनोवैज्ञानिक दबाव को माना जा रहा है। कोटा में पढ़ने के लिए आने वाले छात्रों में अधिकांश मध्यम वर्गीय परिवारों से होते हैं। उनके अभिभावक आर्थिक रूप से अधिक सक्षम नहीं होते हैं। अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दिलवाने के लिए वह लोग विभिन्न स्तरों पर पैसों की व्यवस्था कर बच्चों को कोचिंग के लिए कोटा भेजते हैं। कोटा आने वाले छात्रों को पता है कि उनके अभिभावकों ने कितनी मुश्किल से कोचिंग लेने के लिए उन्हें कोटा भेजा है।

ऐसे में यदि वह सफल नहीं होंगे तो उनके अभिभावक जिंदगी भर कर्ज में दबे रह जाएंगे। यही सोचकर छात्र हमेशा मनोवैज्ञानिक दबाव महसूस करता रहता है। इसके अलावा कोटा में पढ़ने वाले छात्रों पर पढ़ाई का भी बहुत अधिक दबाव रहता है। यहां चलने वाले सभी कोचिंग संस्थाएं कई शिफ्टों में संचालित होती है। जिसमें अलग-अलग बैच में पढ़ाई होती हैं। कोटा में पढ़ने वाले छात्रों पर मेडिकल या इंजीनियर की परीक्षा में अच्छे नंबर हासिल करने को लेकर अभिभावकों व कोचिंग संस्थानों का दबाव होता है।

कोचिंग संस्थान भी अच्छा परिणाम दिखाने के चक्कर में छात्रों को मशीन बनाकर रख देते हैं। छात्रों पर हर दिन पढ़ाई का दबाव बना रहता है तथा साप्ताहिक टेस्ट पास करने के चक्कर में छात्र दिन-रात पढ़ाई करते रहतें हैं। जिससे ना तो उनकी नींद पूरी हो पाती है ना ही वह मानसिक रूप से आराम कर पाते हैं। ऐसे में छात्र जल्दी उठकर कोचिंग संस्थान में जाकर पढ़ाई करने व दिनभर पढ़ाई में व्यस्त रहने के कारण वह तनाव में आ जाता है। बाहर से आने वाले बहुत से छात्र पढ़ाई में पिछड़ जाने के डर से वह आत्महत्या जैसा अमानवीय कदम उठा लेते हैं।

कोटा में कोचिंग छात्रों के आत्महत्या के बढ़ते मामलों को लेकर विधायक पानाचंद मेघवाल ने विधानसभा में प्रश्न पूछा था। जिसके जवाब में सरकार ने आत्महत्या के जो प्रमुख कारण गिनाए थे उनमें कोचिंग सेंटर में होने वाले टेस्ट में छात्रों के पिछड़ जाने के कारण उनमें आत्मविश्वास की कमी होना, माता-पिता की छात्रों से उच्च महत्वाकांक्षा होना, छात्रों में शारीरिक मानसिक और पढ़ाई संबंधित तनाव उत्पन्न होना, आर्थिक तंगी, ब्लैकमेलिंग और प्रेम-प्रसंग जैसे प्रमुख कारण शामिल थे।

कोटा कभी राजस्थान का बड़ा औद्योगिक नगर होता था। मगर श्रमिक आंदोलन व हड़ताल के चलते धीरे-धीरे यहां के उद्योग धंधे बंद होते गए। एक समय ऐसा भी आया कि कोटा में नाम मात्र के उद्योग ही रह गए थे। 1990 के दौरान कोटा शहर में कोचिंग संस्थान खुलना प्रारंभ हुई। सन 2005 के आसपास तो यहां बड़ी संख्या में कोचिंग संस्थान स्थापित हो गए जिनमें प्रतिवर्ष लाखों छात्र पढ़ने लगे। आज कोटा में कोचिंग संस्थान एक बहुत बड़ा व्यवसाय बन चुका है। पूरे कोटा शहर की अर्थव्यवस्था इन कोचिंग संस्थानों पर ही निर्भर है। कोटा शहर के हर चौक-चौराहे पर छात्रों की सफलता से अटे पड़े बड़े-बड़े होर्डिंग्स बताते हैं कि अब कोटा में कोचिंग हीं सब कुछ है। यह सही है कि कोटा में सफलता की दर तीस प्रतिशत से उपर रहती है। देश के इंजीनियरिंग और मेडिकल के प्रतियोगी परीक्षाओं में टाप टेन में पांच छात्र कोटा के रहते हैं। मगर उसके साथ ही कोटा में एक बड़ी संख्या उन छात्रों की भी है जो असफल हो जाते हैं।

आज कोटा देश में कोचिंग का सुपर मार्केट है। एक अनुमान के मुताबिक कोटा के कोचिंग मार्केट का सालाना चार हजार करोड़ का टर्नओवर है। कोचिंग सेन्टरों द्वारा सरकार को अनुमानतः सालाना 300-400 करोड़ रूपये से अधिक टैक्स के तौर पर दिया जाता है। कोटा में देश के तमाम नामी गिरामी संस्थानों से लेकर छोटे मोटे 200 कोचिंग संस्थान चल रहे हैं। यहां तक कि दिल्ली, मुंबई के साथ ही कई विदेशी कोचिंग संस्थाएं भी कोटा में अपना सेंटर खोल रही हैं। लगभग ढ़ाई लाख छात्र इन संस्थानों से कोचिंग ले रहे हैं। कोटा में सफलता की बड़ी वजह यहां के शिक्षक हैं। आईआईटी और एम्स जैसे इंजीनियरिंग और मेडिकल कालेजों में पढने वाले छात्र बड़ी-बड़ी कम्पनियों और अस्पतालों की नौकरियां छोडकर यहां के कोचिंग संस्थाओं में पढ़ा रहे हैं। तनख्वाह ज्यादा होने से अकेले कोटा शहर में 75 से ज्यादा आईआईटी पास छात्र पढ़ा रहे हैं।

कोटा में बढ़ती आत्महत्याओं की घटनाओं से चिंतित राजस्थान सरकार हरकत में आई है। सरकार ने त्वरित कदम उठाते हुए अगले दो माह तक सभी तरह के टेस्टों पर प्रतिबंध लगा दिया है। कोटा में कोचिंग करने वाले छात्रों के लिए अलग से पुलिस थाना खोला जाएगा। हॉस्टल के कमरों में ऐसे पंखे लगाए जाएंगे जिनमें डिवाइस फिट रहेगी और यदि कोई पंखे पर लटकने की कोशिश करेगा तो डिवाइस में लगा सायरन बजकर लोगों को सतर्क कर देगा। सरकार ने छात्रों के मानसिक तनाव के विस्तृत अध्ययन के लिए मनोचिकित्सकों की एक टीम भी बनाई है जो छात्रों से मिलकर आत्महत्याओं के कारणों की जांच करेगी।

सरकार अपनी तरफ से चाहे कितनी भी कोशिश कर ले। कोटा में पढ़ने वाले छात्र जब तक खुले मन से बिना किसी दबाव के पढाई करने लगेंगे तभी यहां का माहौल सुधरेगा। यहां चल रहे कोचिंग संस्थानों को मशीनी स्तर पर चलाई जा रही प्रतिस्पर्धा को रोककर एक सकारात्मक वातावरण बनाना होगा। तभी कोटा में पढ़ने वाले छात्र खुद को सुरक्षित महसूस कर पढाई कर पाएंगे। कोटा में संचालित कोचिंग संस्थान जब तक अपने काम को पैसे कमाने कि मशीन समझना बंद कर अपने छात्रों के साथ संवेदनशील व्यवहार नहीं करेंगे तब कोटा के हालात नहीं सुधरेंगे।

आलेखः-

रमेश सर्राफ धमोरा

(लेखक राजस्थान सरकार से मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार है। इनके लेख देश के कई समाचार पत्रों में प्रकाशित होते रहते हैं।)

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