और भारत का आदित्य एल-1 अपने मिशन पर निकल पड़ा है। चाँद के बाद सूरज की बारी है, भारत के वैज्ञानिकों ने यूँ ही नहीं कहा था।चंद्रयान मिशन की कामयाबी के कुछ ही दिनों बाद भारत के सूर्य मिशन ने पूरी दुनिया को चौंकाया है। सूर्य के अध्ययन के लिये भेजे गये आदित्य एल-1 मिशन के अंतर्गत अंतरिक्ष में एक ऑब्जर्वेटरी स्थापित की जाएगी, जिसके जरिये धरती के नजदीकी ग्रह सूर्य के कई रहस्यों से पर्दा उठाने की कोशिश की जाएगी। साथ ही अंतरिक्ष की कई हलचलों, मसलन सोलर विंड आदि का भी अध्ययन किया जायेगा। हालांकि यूरोपियन एजेंसी समेत कई देशों ने इस तरह के मिशन भेजे हैं, लेकिन भारत जैसे विकासशील देश द्वारा सीमित संसाधनों के साथ ये लक्ष्य हासिल करना बड़ी उपलब्धि है।
सब जानते हैं पीएसएलवी-सी 57 के जरिये अंतरिक्ष में भेजे गये आदित्य मिशन का बिलकुल सूर्य के पास जाना संभव नहीं है, लेकिन वह एक निर्धारित स्थान लैंगरेंज प्वाइंट से सूर्य की क्रियाओं का अध्ययन करेगा। दरअसल, लैंगरेंज प्वाइंट अंतरिक्ष में एक ऐसा स्थान है जहां सूर्य और पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल संतुलित होता है। इस स्थान पर अंतरिक्ष यान में ईंधन की सबसे कम खपत होती है और वह अधिक समय तक काम कर सकता है। सात पेलोड्स लेकर गया यह यान सूर्य की सतह पर ऊर्जा व अंतरिक्ष की अन्य हलचलों का अध्ययन करेगा। इसके अलावा अंतरिक्ष के मौसम पर भी इसकी नजर रहेगी। निश्चित रूप से सौर हलचलों के अंतरिक्ष के मौसम पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में नई जानकारी मिल सकेगी। निस्संदेह, ये नई जानकारियां मानवता के कल्याण में मददगार बनेंगी।
बहरहाल, इस कामयाबी से उत्साहित इसरो को आशा है इस मिशन के जरिये हम सूर्य के बारे में नई जानकारी जुटाने में कामयाब हो सकेंगे। ये तथ्य हमारी वैज्ञानिक उन्नति में भी सहायक बनेंगे। यह महत्वपूर्ण है कि महज चार साल में बेहद कम लागत में इसरो अपने इस महत्वाकांक्षी मिशन को मूर्त रूप दे पाया है। बेहद कम बजट में बड़े मिशनों को अंजाम देने की इसरो की विशेषता का पूरी दुनिया ने लोहा माना है। पिछले दिनों दुनिया की महाशक्ति रूस व अन्य बड़े देशों के मिशनों की विफलता से इतर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान का सफल मिशन भारतीय वैज्ञानिकों की मेधा की कहानी कह रहा है।
इसरो के वैज्ञानिकों ने चंद्रयान -3 को चांद की ऐसी सतह पर उतरा है जो मुश्किलों की जाल से घिरी है। सबसे बड़ी चुनौती यहां का अंधेरा था। यहां पर लैंडर बिक्रम को उतारना काफी मुश्किल था क्योंकि चांद पर पृथ्वी की तरह वायुमंडल नहीं है। हमारे वैज्ञानिकों ने पुरानी गलतियों से बड़ी सबक लेते हुए चंद्रयान-3 के लैंडर और रोवर ‘प्रज्ञान’ को चांद के उस आगोश में पहुंचाकर सांस ली, जहां से कई खगोलीय रहस्यों का परत-दर परत खुलेगा।
चंद्रयान -3 के रोवर में चंद्रमा की सतह से संबंधित डेटा प्रदान करने के लिए पेलोड के साथ संयोजित की गयी मशीनें लगी हैं। यह चंद्रमा के वायुमंडल की मौलिक संरचना पर डेटा एकत्र करेगा और लैंडर को डेटा भेजेगा। लैंडर पर तीन पेलोड्स हैं। उनका काम चांद की प्लाज्मा डेंसिटी, थर्मल प्रॉपर्टीज और लैंडिंग साइट के आसपास की सीस्मिसिटी मापना है ताकि चांद के क्रस्ट और मैंटल के स्ट्रक्चर का सही-सही पता लग सके। एक चांद की सतह पर प्लाज्मा (आयन्स और इलेट्रॉन्स) के बारे में जानकारी हासिल करेगा। दूसरा चांद की सतह की तापीय गुणों के बारे में अध्ययन करेगा और तीसरा चांद की परत के बारे में जानकारी जुटाएगा। इसके अलावा चांद पर भूकंप कब और कैसे आता है इसका भी पता लगाया जाएगा।
वैसे भारत की कामयाबी का एक अध्याय मंगल मिशन भी था। ऐसा करने वाला भारत एशिया का पहला देश था। इसी कड़ी में इसरो अपने महत्वाकांक्षी मानवयुक्त मिशन को अंतिम रूप देने में जुटा है। बीते रविवार को आदित्य एल-1 यान को दूसरी कक्षा में भेजकर इसरो ने बता दिया है कि मिशन सफलतापूर्वक अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है। वैसे तो लैंगरेंज पॉइंट तक पहुंचने में आदित्य एल-1 को करीब चार माह का समय लगेगा। सर्वविदित है कि हमारे सोलर सिस्टम के केंद्र में स्थित सूर्य की अक्षय ऊर्जा से ही पृथ्वी पर जीवन संभव हो पाता है। अब इस मिशन से होने वाले अध्ययन से पता चल सकेगा कि सूर्य में होने वाले रासायनिक बदलाव हमारी धरती के जीवन व अंतरिक्ष को किस तरह प्रभावित करते हैं। धरती पर जीवन ऊर्जा के मुख्य स्रोत सूर्य के बारे में इस मिशन के जरिये मिलने वाली जानकारी निस्संदेह, मानवता के कल्याण में सहायक होगी।