बढ़ती महंगाई लोगों की जेब पर भारी पड़ रही है, महंगाई के लिए खाद्य वस्तुओं की आपूर्ति संबंधी चिंताओं के बीच कच्चे तेल की कीमतें पिछले 10 माह के उच्चतम स्तर पर पहुंचने से महंगाई की चुनौती और कठिन हो गई है। ऐसे में सरकार के लिए महंगाई कम करना बड़ा मुद्दा बन गया है। यद्यपि केंद्र सरकार ने 29 अगस्त को घरेलू रसोई गैस सिलेंडर के दाम 200 रुपए घटाकर बड़ी राहत दी है, लेकिन आम आदमी सरकार से खाद्य पदार्थों की कीमतों के साथ-साथ पेट्रोल-डीजल के दामों में कुछ कमी की भी अपेक्षा कर रहा है।
हाल ही में 5 सितंबर को रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा है कि जुलाई 2023 में जो मुद्रास्फीति सप्लाई चेन के झटकों के कारण ऊंचे स्तर पर पहुंच गई है, उसे कम करने के हरसंभव प्रयास किए जा रहे हैं। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) के अनुसार जून 2023 में जो खुदरा महंगाई दर 4.87 प्रतिशत थी, वह माह जुलाई में 15 महीने के उच्चतम स्तर 7.44 प्रतिशत पर पहुंच गई है। खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतों के कारण खुदरा महंगाई दर केंद्र सरकार के 6 प्रतिशत की तय ऊपरी सीमा से अधिक है। आरबीआई ने चालू वित्त वर्ष 2023-24 के लिए खुदरा महंगाई दर का अनुमान बढ़ाकर 5.4 प्रतिशत कर दिया है।
गेहूं उपजाने वाले प्रमुख क्षेत्रों में बारिश नहीं होने के कारण अनाज के दाम बढ़ गए हैं। देश में फसलों पर सफेद मक्खी के प्रकोप और मॉनसूनी बारिश के असमान वितरण से भी सब्जियां महंगी हुई हैं। स्थिति यह है कि सीमित आपूर्ति के कारण देश में थोक गेहूं की कीमतें पिछले दो महीनों में तेजी से बढ़ी हैं। सरकार के गोदामों में भी गेहूं के स्टॉक में कमी आई है। बाजार में नकदी ज्यादा रहने से भी महंगाई बढ़ी है। मौसम विज्ञानियों ने इस बार अलनीनो के हावी रहने से भारत का 30 सितंबर तक का मानसून सीजन सामान्य से कम यानी 94 प्रतिशत से कम बारिश के साथ समाप्त होने की बात कही है।
मौसम विज्ञानियों के मुताबिक अलनीनो के अगले साल मार्च-अप्रैल तक इसी स्थिति में रहने की संभावना है। इसमें कोई दो मत नहीं हैं कि देश में खाद्य कीमतों के कारण बढ़ती महंगाई को नियंत्रित करने के लिए केंद्र सरकार और आरबीआई कई प्रयासों के साथ आगे बढ़े हैं। 24 अगस्त को आयोजित आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की द्विमासिक समीक्षा बैठक में टमाटर सहित अन्य सब्जियों की बढ़ती कीमतों के कारण ब्याज दर को न बदलते हुए 6.5 प्रतिशत रखने का महत्वपूर्ण फैसला किया गया है। केंद्र सरकार के द्वारा खाद्य पदार्थों के निर्यात पर लगातार सख्ती बरती जा रही है।
सरकार ने बासमती चावल के निर्यात के लिए 1200 डॉलर प्रति टन को न्यूनमत मूल्य तय किया है। प्याज पर 40 प्रतिशत निर्यात शुल्क लगाया है। केंद्र ने 25 अगस्त से उबले चावल के निर्यात पर भी 20 प्रतिशत शुल्क लगा दिया है। गेहूं और चावल की बढ़ती कीमतों को काबू करने की कोशिश में सरकार जुटी हुई है। इसलिए सरकार ओपन मार्केट सेल स्कीम (ओएमएसएस) के जरिए रियायती दर पर गेहूं और चावल दोनों बेच रही है।
इसी तरह सब्जियों, दालों और तिलहन के दाम काबू में रखने के लिए भी खास उपाय किए गए हैं।
सरकार पेट्रोल का आयात खर्च घटाने और कम कीमत रखने के मद्देनजर पेट्रोल में 10 प्रतिशत इथेनॉल ब्लेंडिंग कर रही है। स्थिति यह है कि महंगाई नियंत्रण के इन विभिन्न प्रयासों के बावजूद अभी खाद्य महंगाई नियंत्रित नहीं है। वित्त मंत्रालय ने भी जुलाई 2023 की अपनी रिपोर्ट में आगाह किया है कि वैश्विक तथा क्षेत्रीय अनिश्चितताओं और देश के भीतर आपूर्ति में अड़चनों की वजह से आने वाले महीनों में भी महंगाई ऊंची बनी रह सकती है। महंगाई पर नियंत्रण इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि एक निश्चित समय से महंगाई की दर अधिक रहने से आम आदमी की मुश्किलों के साथ आर्थिक विकास भी प्रभावित होता है।
खाद्य पदार्थों की आपूर्ति बढ़ाने और खुदरा महंगाई दर पर अंकुश लगाने के लिए सरकार को अधिक कारगर उपायों के साथ आगे आना होगा।