_-बलबीर पुंज_
भारत-कनाडा संबंध इस समय बहुत तनाव में है। इसका कारण कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो द्वारा खालिस्तानी चरमपंथी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में मोदी सरकार की संलिप्तता का मनगढ़ंत आरोप और भारत में दम तोड़ चुके सिख अलगाववाद की आग में लगातार घी डालने का प्रयास है। जिस प्रकार यह घटनाक्रम रूप ले रहा है, उसने अमेरिका के साथ पश्चिमी देशों के दोहरे मापदंडों और इन देशों में भारत-विरोधी शक्तियों को पुन: बेनकाब कर दिया है।
निज्जर की हत्या पर अमेरिका और पश्चिमी देशों द्वारा नैरेटिव बनाया जा रहा है कि यदि जांच में मोदी सरकार की संलिप्तता पाई गई, तो इसपर भारत को दंडित किया जाना चाहिए। अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के प्रवक्ता एड्रिएन वॉटसन के अनुसार, “यह एक गंभीर मामला है और हम कनाडा में चल रहे कानून प्रवर्तन प्रयासों का समर्थन करते हैं।“ यही नहीं, पश्चिमी मीडिया का एक बड़ा भाग अपने संपादकीयों से धमका रहा है, ‘यदि भारत ने कनाडा में हत्या का आदेश दिया था, तो इसके दुष्परिणाम होंगे।’ उसका कहना है कि भारत को रूस या सऊदी अरब द्वारा अपनाए गए मार्गों पर नहीं चलना चाहिए। क्या इस समूह ने विदेशों में अमेरिका या इज़राइल के आदेश पर अपने शत्रुओं को मौत के घाट उतारने पर ऐसा कोई उपदेश दिया है?
यह किसी से छिपा नहीं है कि अमेरिका और इज़राइल अपने दुश्मनों को दुनिया में कहीं से भी ढूंढकर उनकी हत्या करने के मामले में कुख्यात है। अमेरिकी जांच एजेंसी ‘सीआईए’ ने क्यूबा के नेता फिदेल कास्त्रो की हत्या करने के आठ असफल प्रयास किए थे। यह निष्कर्ष किसी और का नहीं, अपितु अमेरिका द्वारा 1975 में गठित चर्च समिति का है, जिसमें कास्त्रो को विषैली और विस्फोटक सिगार से भी मारने का प्रयास किया गया था। यही नहीं, सीआईए के सहयोग से दक्षिण वियतनाम के राष्ट्रपति न्गो दीन्ह दीम और कांगो के पैट्रिस लुमुंबा को मारा गया था, तो उसने चिली में राष्ट्रपति साल्वाडोर अलेंदे के तख्तापलट और हत्या को बढ़ावा दिया था। एक आंकड़े के अनुसार, अमेरिका— इराक में एक हजार से अधिक आतंकवादियों की इसी तरह हत्या कर चुका है। बीते कई वर्षों में अमेरिका— पाकिस्तान में घुसकर ओसामा बिन लादेन, ईरान में कासिम सुलेमानी और लेबनान में इमाद मुगनिया जैसे 60 शीर्ष कट्टर इस्लामियों को भी निपटा चुका है। क्या इसपर अमेरिकी-यूरोपीय मीडिया में कोई हंगामा हुआ?
इज़राइल भी ’आत्मरक्षा’ में अपने दुश्मनों को दुनिया के किसी भी छोर में ठिकाने लगाने में पारंगत है। 1972 के म्यूनिख ओलंपिक में 11 इज़रायली खिलाड़ियों की हत्या करने वाले फ़िलिस्तीनी आतंकवादियों को रोम (इटली), पेरिस (फ्रांस), लिलेहैमर (नार्वे) से लेकर लेबनान-साइप्रस के 7 स्थानों पर ढूंढकर मारना— इसका एक बड़ा उदाहरण है। आज भी इज़राइल इस प्रकार के कदम उठाने से नहीं हिचकचता। संयुक्त राष्ट्र और अन्य मानवाधिकार संगठन ने इसकी निंदा तो करते है, परंतु अमेरिका और नाटो सहयोगी इसपर चुप्पी साधे रहते है।
वास्तव में, अमेरिकी-पश्चिमी आलोचक इस बात से चिंतित नहीं है कि भारत अपने घर के साथ अब पाकिस्तान में घुसकर आतंकवादियों को मार रहा है। उनकी बौखलाहट का कारण यह है कि अब उनकी धरती पर भी भारत-विरोधियों की हत्या होने लगी है। आखिर हरदीप सिंह निज्जर कौन था, जिसे पश्चिमी मीडिया का एक वर्ग अपनी रिपोर्टिंग में ‘प्लंबर’ बताकर उसकी वास्तविकता छिपाने में जुटा है?
निज्जर भारत की ‘मोस्ट वांटेड’ आतंकियों की सूची में शामिल था। उसपर 10 लाख रुपये का घोषित इनाम था। वह प्रतिबंधित चरणपंथी संगठन ‘खालिस्तान टाइगर फोर्स’ (केटीएफ) का सरगना था। निज्जर मूल रूप से पंजाब के जालंधर जिले के शाहकोट के निकटवर्ती गांव भारसिंहपुर का निवासी था, जो कालांतर में फर्जी दस्तावेजों के आधार पर कनाडा जाकर बस गया। अनेकों भारत-विरोधी गतिविधियों में शामिल रहने वाला निज्जर, इसी वर्ष जून में कनाडा में दिनदहाड़े गोलियों से भून दिया गया।
यक्ष प्रश्न है कि कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने क्यों एक घोषित अपराधी के लिए भारत के साथ संबंधों को दांव पर लगा दिया? इसके दो कारण है। पहला— स्वयं की पार्टी पर चीन के साथ सांठगांठ करने के आरोपों से अपनी देश की जनता का ध्यान भटकाना। दूसरा— वोटबैंक के लिए कनाडाई सिख समाज में कट्टरपंथी वर्ग को तुष्ट करना। बकौल मीडिया रिपोर्ट, ट्रूडो ने जिस ‘विश्वसनीय आरोपों’ के आधार पर सार्वजनिक रूप से भारत के विरुद्ध मिथ्या-दोषारोपण किया और जिसे भारत के साथ कनाडाई राजनीतिक अधिष्ठान का एक वर्ग निरस्त कर चुका है— वह वास्तव में अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और न्यूजीलैंड के खुफिया तंत्र गठबंधन ‘फाइव आइज’ द्वारा साझा की गई एक जानकारी थी।
आखिर कनाडाई खुफिया तंत्र और ‘फाइव आइज’ की प्रामाणिकता क्या है? हाल ही में यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की कनाडा के दौरे पर थे और उन्होंने कनाडाई संसद को संबोधित भी किया। इस दौरान द्वितीय विश्व युद्ध का हिस्सा रहे एक पूर्व सैनिक यारोस्लोव हुंका को यूक्रेनी नायक के रूप में सम्मानित किया गया। इसपर कनाडा के सभी सांसदों ने हुंका का खड़े होकर अभिवादन किया। बाद में पता चला कि हुंका ने हिटलर की उस दानवीय नाजी सेना में भी अपनी सेवाएं दी थीं, जिसके हाथ लाखों यहूदियों के रक्त से सने पड़े है। इसपर ट्रूडो को माफी मांगनी पड़ी। सोचिए, कनाडा का जो खुफिया तंत्र और अमेरिका नीत ‘फाइव आइज’, एक पूर्वनिर्धारित राजकीय कार्यक्रम में पूर्व नाजी सैनिक को नहीं पहचान पाया, वह निज्जर हत्याकांड में भारत सरकार पर दोषारोपण कर रहा है।
वास्तव में, अमेरिका के साथ अन्य पश्चिमी देशों द्वारा कनाडाई प्रधानमंत्री ट्रूडो के अनर्गल आक्षेपों पर ‘चिंता’ प्रकट करना, इन देशों के भीतर सक्रिय अनाधिकृत राजनीतिक नेतृत्व, निजी संस्थाओं और गैर-सरकारी संगठनों के गठजोड़ की बौखलाहट है। वे अपने-अपने देशों की नीतियों को प्रभावित करने में सक्षम है। इसी समूह का एक बड़ा वर्ग, भारत से उसकी हिंदू पहचान, देश की विकास यात्रा और वैश्विक पटल पर उसके बढ़ते कद से गंभीर रूप से चिढ़ा हुआ है। अमेरिकी धनाढ्य जॉर्ज सोरोस द्वारा राष्ट्रवाद से प्रेरित मोदी सरकार को उखाड़ फेंकने हेतु खुलेआम वित्तपोषण की घोषणा— इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है।
लेखक वरिष्ठ स्तंभकार, पूर्व राज्यसभा सांसद और भारतीय जनता पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय-उपाध्यक्ष हैं।