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भारत में न हिटलर शासन है न मुसलमान यहूदी

एक गलती को इस तरह भयानक तस्वीर में बदलना उचित नहीं

अवधेश कुमार
भाजपा के सांसद रमेश विधुड़ी द्वारा लोकसभा में प्रयोग किए गए शब्दों पर हंगामा अस्वाभाविक नहीं है। अगर लोकतंत्र के शीर्ष निकाय संसद में इस तरह की शब्दावली प्रयोग की जाएगी तो देश का पूरा वातावरण कैसा बनेगा इसकी स्वाभाविक कल्पना की जा सकती है। सांसद तो छोड़िए सामान्य जीवन में भी किसी व्यक्ति को बिना प्रमाण आपको उग्रवादी ,आतंकवादी नहीं कह सकते। इस तरह की भाषा आगे प्रयोग नहीं हो इसे रोकने की हरसंभव व्यवस्था करनी होगी। किंतु दूसरी ओर इसे आधार बनाकर जिस तरह की बातें हो रही है वह ज्यादा डरावना व खतरनाक है। भाजपा विरोधी दलों को इसकी आलोचना करने, सरकारी पक्ष को कठघरे में खड़ा करने का पूरा अधिकार है। इसका प्रभाव तभी होगा जब विरोधी स्वयं वाणी संयम का व्यवहार करें। ऐसा प्रदर्शित नहीं हो रहा। परिणाम देख लीजिए। बहुत बड़ी संख्या में लोग सोशल मीडिया पर खुलकर रमेश विधुड़ी के साथ खड़े हो रहे हैं।
यह चिंताजनक स्थिति है। जो चाहेगा कि इस तरह की भाषा का प्रयोग संसद के अंदर नहीं हो उसका अप्रोच अलग होगा। कहीं आग लगाने की कोशिश हो तो वहां पानी डालना ही विवेकशीलता है न कि उसे पर ज्वलनशील पदार्थ डाल देना। असदुद्दीन ओवैसी कह रहे हैं कि किसी दिन संसद में मुस्लिम सांसद की मोब लिंचिंग हो जाएगी। इतना पुराना और अनुभवी सांसद कैसे इस तरह का अतिवादी वक्तव्य दे सकता है? वो यहां तक बोल रहे हैं कि जिस तरह जर्मनी में हिटलर ने लोगों को बताया कि यहूदियों से तुम्हें खतरा है और उनका कत्लेआम हुआ उस तरह भारत में मुसलमानों के विरुद्ध वातावरण बनाया जा रहा है। अपनी पार्टी के कार्यक्रम में उनके पूरे भाषण को सुनें तो किसी का भी दिल दहल जाएगा। इस तरह की भाषा ओवैसी और उनके साथ अनेक नेता बीच-बीच में बोलते रहते हैं।
समाजवाजी पार्टी के नेता और पूर्व विधायक हाजी जमीर उल्लाह खान का बयान देखिए, मुसलमानों से मैं कहूंगा कि ये 2024 आ रहा है, ये आपकी लाशों पर बनेगी सरकार चाहे किसी की बने ….चाहे इधर की बने चाहे उधर की बने… टारगेट आप ही होंगे ..आप लोग बहुत संयम के साथ किसी पर कोई रिएक्शन न करें….बहुत संयम के साथ घर बैठे और अपना वोट डाल दें चुपचाप से वरना अभी तो कुछ नहीं है अभी तो आपको बहुत कुछ देखना बाकी है …24 आते-आते देखना आप लोगों का जीना हराम हो जाएगा। सपा के ही अताउर रहमान कह रहे हैं कि मुसलमानों के सब्र का इम्तिहान लिया जा रहा है। आरोप लगा रहे हैं की घोसी उपचुनाव में मुसलमान को डराया धमकाया गया, मस्जिदें खाली कराईं गईं, मदरसे खाली कराए गए। असदुद्दीन ओवैसी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शासन की तुलना जर्मनी के एडोल्फ हिटलर से कर रहे हैं और मुसलमान को उस समय का यहूदी बता रहे हैं। हमारे देश का कोई सांसद जिसे हर प्रकार का विशेषाधिकार प्राप्त है ,खुलकर अपनी राजनीति करता है ,वह भारत के शासन की तुलना एडोल्फ हिटलर से और मुसलमानों की यहूदियों के साथ किए गए अत्याचार से करे तो उसके सामने संसद या बाहर किसी भी प्रकार की बयानबाजी छोटी हो जाती है। 1933 में जर्मनी की सत्ता पाने के बाद एडोल्फ हिटलर ने ऐसा नस्लवादी शासन कायम किया जिसमें यहूदी इंसानी नस्ल का हिस्सा ही नहीं माने गए थे। इतिहास में यहूदियों के नरसंहार को होलोकास्ट के रूप में जाना जाता है। उसने पोलैंड में ऑशविच कन्सन्ट्रेशन कैंप शुरू किया जिसमें धर्म, नस्ल, विचारधारा या शारीरिक कमजोरी के नाम पर लाखों लोगों को गैस चैंबर में भेज दिया जाता था। यहूदियों, राजनीतिक विरोधियों, बीमारों और समलैंगिकों से जबरदस्ती हर तरह का काम कराया जाता था। कैंप ऐसी जगह और इस तरह बनाया गया था कि वहां से कोई भाग नहीं सकता था। बूढ़ों और बीमारों को गैस चैंबर में मार दिया जाता था। कैंप में चार श्मशान थे, जहां प्रतिदिन 4,700 शव जलाए जा सकते थे। जो गैस चैंबर से बच जाते थे, उन्हें दिन रात काम करना पड़ता था। ऑशविच कैंप के आसपास औद्योगिक क्षेत्र थे। कारखाने के मालिक कैंप के बंदियों को बिना पारिश्रमिक काम करवाने के लिए लेते और उन पर हर तरह के अत्याचार होते थे। होलोकास्ट नरसंहार में छह साल में करीब 60 लाख यहूदियों की हत्या की गई । इनमें 15 लाख सिर्फ बच्चे थे। अनेक यहूदी जान बचाने के लिए देश छोड़कर भाग गए। कुछ कन्सन्ट्रेशन कैंपों में निर्दयता के कारण छटपटा कर मरे। 27 जनवरी, 1945 को हिटलर के शासन से मुक्त कराए जाने तक ऑशविच कैंप में 11 लाख लोगों की मौत हो चुकी थी।
जरा सोचिए, भारत में सामूहिक तो छोड़िए एक भी मुसलमान या दूसरे समुदाय के अल्पसंख्यक के साथ कोई शासन इस तरह का व्यवहार कर सकती है? एक पार्टी का नेता और सांसद मुसलमान की तुलना हिटलर के शासन के यहूदियों से कर रहा है तो उसे क्या कहा जाएगा? नरेंद्र मोदी सरकार को नाजीवादी और फासीवादी शासन केवल ओवैसी नहीं कह रहे समय-समय पर विपक्ष की ज्यादा पार्टियां इन शब्दों का प्रयोग करतीं हैं। हालांकि वे उनकी तरह यहूदी या कंसंट्रेशन कैंप की बात नहीं करते, पर हिटलर के शासन का अर्थ तो वही होता है। आज आतंकवाद शब्द प्रचलित है। आज की दृष्टि में उसे समय के शासन को देखें तो आतंकवाद के शासन का ही पर्या शासन था। क्या मोदी सरकार एक आतंकवादी शासन है? इसे केवल भाजपा, नरेंद्र मोदी सरकार या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सामान्य राजनीतिक आलोचना कहेंगे या फिर कुछ और? सांसद दानिश अली ने बोल दिया कि मेरी तो लिंचिंग संसद में हो गई। रमेश बिधूड़ी ने जैसे शब्द प्रयोग किया, उन्हें स्वीकार नहीं किया जा सकता। क्या इसे वाकई लिंचिंग कहेंगे? इन नेताओं की भाषा में इतनी समानताएं क्यों है? सारे स्वयं को पीड़ित साबित करने में लगे हैं और इसमें इस तरह की अतिवादी भाषा बोलते हैं जिसके लिए कोई भी आलोचनात्मक शब्द छोटा पड़ जाएगा। इससे शर्मनाक, निंदनीय और थोड़ा विस्तारित करें तो देश को बदनाम करने की बड़ी हरकत कुछ नहीं हो सकती। स्वयं राहुल गांधी ने अपने सांसद के अपने भाषण में सरकार के लिए देशद्रोही शब्द प्रयोग किया। उप्र में सपा या दूसरे विरोधी अभी तक एक मदरसा और मस्जिद का नाम, स्थान या तस्वीर नहीं ला पाए हैं जिनके आधार पर आरोप सच साबित हो सके। देश कानून से चलता है और कोई सरकार धार्मिक स्थल या शिक्षालय को ध्वस्त करेगी तो न्यायालय में सबको जाने का अधिकार है। वरिष्ठ और नामी नेता इस तरह किसी सरकार की तस्वीर बनाएं कि वह एक समुदाय को खत्म करना चाहती है तो उसकी प्रतिक्रिया कैसी होगी?
चूंकि रमेश विधुड़ी ने अपने भाषण में दानिश अली को ही निशाना बनाया था, इसलिए उनके प्रति पहली नजर में लोगों की सहानुभूति भी है। एक व्यक्ति, जिसे लोगों ने निर्वाचित कर सांसद बनाया वह स्वयं को इस तरह उत्पीड़ित बताए तो उसकी मंशा समझने की आवश्यकता होती है। लोकसभा के रिकॉर्ड से कई सांसद बता रहे हैं कि दानिश अली लगातार भाजपा मंत्रियों और सांसदों के भाषणों के बीच टिप्पणियां करते रहते हैं। उनमें ऐसे शब्द और कटाक्ष होते हैं जिनसे दूसरी ओर उत्तेजना पैदा होती है। इनका यही कहना है कि रमेश बिधूड़ी ने जो बोला वह बिल्कुल गलत है किंतु दानिश अली जिस तरह का व्यवहार करते हैं वह भी गलत ही है। बड़े लोग रमेश बिधूड़ी की निंदा कर रहे हैं, उनके विरुद्ध कार्रवाई की मांग कर रहे हैं लेकिन असदुद्दीन ओवैसी से लेकर सपा नेता ,दानिश अली द्वारा देश का माहौल खराब करने और विश्व में भारत की छवि कलंकित करने के विरुद्ध एक शब्द नहीं बोल रहे हैं। लेकिन जन प्रतिक्रिया इसके विरुद्ध है और लोगों से बात करने पर उनका आक्रोश साफ प्रकट होता है। जो स्थिति उत्पन्न हो गई है उसमें ऐसा लग रहा है कि रमेश बिधूड़ी के विरुद्ध सख्त कार्रवाई हुई तो भाजपा ही नहीं देश का एक बड़ा वर्ग उसका समर्थन नहीं करेगा। नूपुर शर्मा के मामले में भाजपा ने त्वरित कार्रवाई की और आज तक उसके कार्यकर्ता और समर्थक अंतर्मन से स्वीकारने को तैयार नहीं हैं। लोग यही मांग कर रहे हैं कि रमेश विधुड़ी के विरुद्ध कार्रवाई हो तो ओवैसी, उनके भाई अकबरुद्दीन ओवैसी, सपा के नेताओं,और यहां तक कि दानिश अली के विरुद्ध भी कार्रवाई हो। वास्तव में गलत के विरोध करने के पीछे नैतिक बल और स्वयं का बिल्कुल सही होना आवश्यक है। साथ ही अगर एक की निंदा आलोचना होती है , विरोध किया जाता है तो दूसरे पक्ष का होना चाहिए जो कहीं ज्यादा खतरनाक है। एक समुदाय के अंदर डर पैदा कर उसे अतिवाद तक ले जाया जा रहा है जो सांप्रदायिक तनाव और हिंसा की आधारभूमि बन सकती है।

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