Shadow

वन नेशन वन इलेक्शन एक अच्छी योजना है ।

क्या वन नेशन वन इलेक्शन नीति कंजुसाई (पैसा बचाने की नीति) सोच नहीं है , मैं नहीं विपक्षी (लीब्रां डू गेंग) सोच रहा है, क्या पैसा बचाना लोकतंत्र की हत्या माना जाएगा

😊

?
वन नेशन वन इलेक्शन एक अच्छी योजना है ।

इसके फायदे ज्यादा हैं , नुकसान कम हैं ।

अमेरिका में भी चुनाव का निश्चित टाइम टेबल है । नवंबर माह के प्रथम मंगलवार को चुनाव हर चौथे साल होते हैं । नई सरकार उसके 3 महीने बाद 20 जनवरी को शपथ ग्रहण करती है । बीच के 3 महीने अनाड़ी लोगों को ट्रेनिंग देने के लिए होते हैं कि सरकार चलाने में क्या करना है और क्या नहीं करना है ।

वहां सरकार 4 साल के लिए चुनी जाती है । केंद्रीय सरकार में राष्ट्रपति का चुनाव उपराष्ट्रपति के साथ जनता द्वारा सीधे होता है । उसी समय राज्यों के गवर्नर का चुनाव भी होता है । राष्ट्रपति के इस्तीफा देने, मृत्यु या महाभियोग की स्थिति में उपराष्ट्रपति जो उसी पार्टी का होता है , वह राष्ट्रपति बन जाता है , उसका कोई चुनाव नहीं होता है ।

रही बात किसी सांसद के इस्तीफा देने या मृत्यु की स्थिति में तो उसके लिए 2 साल में पूरे देश में अर्धकुंभ की तरह मध्यावधि चुनाव होते हैं जिसमें सिर्फ खाली पड़ी सीटों के चुनाव होते हैं जिससे राष्ट्रपति , गवर्नर आदि पदों को कोई फर्क नहीं पड़ता है ।

यही मॉडल भारत में कुछ सुधार के साथ अपनाया जा सकता है ।

भारत में संसद, विधान सभा, विधान परिषद , पंचायत, आदि सभी के चुनाव एक साथ हर 5 साल पर कराए जा सकते हैं। अच्छा मौसम वाले महीने की कोई तारीख या दिन निश्चित कर सकते हैं । मुझे लगता है फरवरी का महीना इसके लिए निश्चित किया जा सकता है । इस समय पूरे भारत में एक सा समय होता है , ना गर्मी, ना सर्दी , ना आंधी, ना तूफान, साइक्लोन।

हर ढाई साल में एक मध्यावधि चुनाव हो नवंबर महीने में जिसमें वर्तमान जन प्रतिनिधि की मृत्यु या इस्तीफा देने की स्थिति में उन सीटों पर सांसद, विधायक , पार्षद चुनाव हों ।

दल बदल को किसी भी हालत में ना माना जाए । चुनाव पूर्व गठबंधन को ही 5 साल के लिए मान्यता मिले । इस्तीफा देने वालों के दुबारा चुनाव लडने पर 3 साल की रोक लगे ।

मान्यता प्राप्त दलों में आंतरिक लोकतंत्र अनिवार्य हो और किसी को भी दल का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने का 5 साल से से ज्यादा मौका ना मिले । मान्यता प्राप्त दलों के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का चुनाव भी लोकसभा , विधान सभा के चुनावों के दौरान ही करा लिया जाए उनके पंजीकृत सदस्यों द्वारा । इससे मान्यता प्राप्त दलों में आंतरिक लोकतंत्र संभव होगा और यह दल एक ही दल की जागीर नहीं बनेंगे ।

इन ढाई साल के मध्यावधि चुनाव के पहले अगर कोई राज्य सरकार मणिपुर की तरह अपना दायित्व निभाने में असफल रहती है तो अनुच्छेद 355 / 356 का प्रयोग कर या विधान सभा को निलंबित रख कर राष्ट्रपति शासन लागू किया जाए जो मध्यावधि या पूर्ण अवधि चुनाव तक लागू रखा जाए । ऐसे मौके पूरे देश में 5 साल में अधिकतम दो या तीन आएंगे । जब कश्मीर में 5 साल बिना चुनाव के चल सकता है , यूनियन टेरिटरी बिना विधान सभा के चल सकती हैं तो साल डेढ़ साल राष्ट्रपति शासन से क्या बिगड़ जाएगा ।

दल बदलने पर पूरी तरह रोक होने और ढाई साल में मध्यावधि चुनाव की प्रक्रिया होने पर ऑपरेशन लोटस , दल बदल से सरकार गिरने की संभावना बहुत कम हो जाएगी । कौन सांसद विधायक इस्तीफा दे कर ढाई साल बेरोजगार रहना चाहेगा ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *