Shadow

रुबिका लियाकत ने स्वीकारा कि पूर्वज हिन्दू थे

बाँदा नबाब, शेख अब्दुल्ला नबाब छतारी से लेकर गुलामनबी आजाद तक सत्य स्वीकार करने वालों की लंबी श्रृंखला

–रमेश शर्मा

सुप्रसिद्ध टीवी एंकर रूबिका लियाकत ने हाल हीएक सार्वजानिक कार्यक्रम में स्वीकार किया कि उनके पूर्वज हिन्दू थे । पूर्वजों के हिन्दू होने का सत्य स्वीकार करने वाली रूबिका लियाकत पहली नहीं हैं। उनसे पहले असंख्य बुद्धीजीवी इस तथ्य को स्वीकार कर चुके हैं। इनमें 1857 की क्रांति में सहभागी बने बाँदा नबाब, कश्मीर में अलगाव की आग्नि प्रज्ज्वलित करने वाले शेख अब्दुल्ला, मध्यप्रदेश में राज्यपाल रहे कुँअर मेहमूद अली, काँग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद से लेकर बिहार सुन्नी बक्फ बोर्ड अध्यक्ष इरशादुल्लाह तक अपने पूर्वजों को हिन्दु बताने वालों की एक लंबी सूची है ।
यूँ तो रुबिका लियाकत विभिन्न राष्ट्रीय चैनलों पर अपनी एकरिंग के लिये सदैव चर्चित रहीं हैं पर हाल हीतब और चर्चा मेंआईं जब एक राजनैतिक गठबंधन द्वारा ब्लेकलिस्ट किये गये चौदह प्रमुख पत्रकारों और एंकरों की सूची में उन्हें भी शामिल किया । रूबिका मूल राजस्थान की हैं। उन्होने 2007 से पत्रकारिता आरंभ की थी और शीघ्र ही अपना अग्रणी स्थान बना लिया । वे पिछले दिनों असम की यात्रा पर थीं। उन्हें असम साहित्य परिषद ने “सर्च आफ रूट्स” विषय पर बोलने के लिये आमंत्रित किया था । रूबिका ने भारत देश को किसी भी जाति और धर्म से ऊपर बताया और स्वीकार किया कि उनके पूर्वज हिन्दू थे ।
अपने पूर्वजों को हिन्दू होने की यह स्वीकारोक्ति पहली बार नहीं हुई है । यह स्वीकारोक्ति सैकड़ों सालों से सामने आती रही है। इनमें से कुछ ने स्वीकारोक्ति के साथ घर वापसी भी की । पर अधिकांश स्वीकार करने के बाद भी घर वापसी के कदम न उठा सके । रुबिका लियाकत की भाँति कुछ माह पहले काँग्रेस नेता गुलामनबी आजाद ने भी मीडिया के समक्ष स्वीकार किया था कि उनके पूर्वज कश्मीरी पंडित थे जो लगभग छै सौ वर्ष पहले रूपान्तरित हुये थे ।
रूबिका लियाकत और गुलाम नबी आजाद की भाँति ऐसी स्वीकारोक्ति की झलक सुप्रसिद्ध सूफी गायक अमीर खुसरो के शब्दों में भी है । और शायद दर्द भी । उन्होंने अपने शब्दों में लिखा था- “छापा तिलक सब छीना..” अर्थात इन शब्दों में स्पष्ट है कि “उनकी पहचान और तिलक सब छिन गया”। इतिहास में अंकित है कि सुप्रसिद्ध सूफी संत अमीर खुसरो के पूर्वज कश्मीरी पंडित थे । औरंगजेब की एक सैन्य टुकड़ी के नायक नेताजी पालकर ने शिवाजी महाराज के सामने घर वापसी की थी । घर वापसी का उदाहरण विजयनगर साम्राज्य के शासक वुक्का का भी है ।
इतिहास की पुस्तकों में ऐसे विवरण प्रत्येक काल-खंड के हैं। बहस इस बात पर हो सकती है कि उन्होंने अपना रूपान्तरण अपनी इच्छा से किया अथवा भय या लालच से । पर इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि सारा संघर्ष और रूपान्तरण केवल ढाई हजार वर्ष में हुआ । इससे पहले यरूशलम में भी मूर्तियाँ थीं और काबा में भी । खान शब्द इस्लाम के उदय के पूर्व भी अस्तित्व में था । इतिहास प्रसिद्ध चंगेज खान इस्लामिक नहीं था । वह बौद्ध था । यह भी शोध का विषय है कि क्या मध्य ऐशिया के कुरुश कबीले के संबंध भारतीय पुराणों में वर्णित राजा कुरु और कुरुष से है । जो हो पर यदि संपूर्ण वसुन्धरा के निवासियों को एक परिवार मानने के सिद्धांत को माने तब यह स्वीकारना ही पड़ेगा कि सबका डीएनए एक है ।
यदि इतिहास के इन विवरणों को छोड़ दें तो भी हाल के वर्षो में ही अनेक प्रसिद्ध व्यक्तियों ने इस सत्य को स्वीकार किया है। इनमें सबसे चर्चित नाम कश्मीर के शेख अब्दुल्ला का है जिन्होंने अपनी आत्मकथा “आतिश-ए-कश्मीर” में स्वीकार किया है कि उनके पूर्वज कश्मीरी पंडित थे । पर सत्य को स्वीकार करने के बाद भी वे अपनी कट्टरता पर कायम रहे । ब्रिटिश लेखक अनवर शेख ने भी दावा किया था कि उनके पूर्वज कश्मीरी पंडित थे । 1928 में जन्में अनवर शेख ने यह भी स्वीकार किया था कि बँटवारे के समय उन्होने दो सिखों की हत्या की थी । अनवर शेख पाकिस्तान से ब्रिटेन गये और वहीं बस गये । 1995 के आसपास उन्होंने घर वापसी की और अपना नाम अनिरुद्ध ज्ञानशिख रख लिया । इनका निधन 2006 में हुआ था । नबाब छतारी ने भी स्वीकार किया था कि उनके पूर्वज हिन्दू थे । इस परिवार की एक शाखा ने घर वापसी करके अपना नाम डा आनंद सुमन रख लिया । मध्यप्रदेश में राज्यपाल रहे कुँअर मेहमूद अली ने भी दावा किया था कि वे मध्यप्रदेश में ही धार नगरी के परमार भोज के वंशज हैं। उन्होंने घर वापसी तो नहीं की पर अपनी वंशावली पर एक पुस्तक का प्रकाशन करवाया । इस पुस्तक के संपादक प्रशासनिक अधिकारी रहे डा. मोहन गुप्त थे । पुस्तक में धर्मान्तरण के पूर्व और बाद की पूरी वंशावली का विवरण था । लगभग ऐसी ही कहानी सुप्रसिद्ध यौद्धा बाजीराव पेशवा के वंशजों की है । पेशवा वंश की एक शाखा बाँदा नबाब रही । वे कृष्णाजी राव से अलीबहादुर बने । उनके वंशजों ने 1857 की क्रान्ति में हिस्सा लिया और बंदी बनाकर निर्वासित किये गये । इस वंश शाखा के कुछ लोग इंदौर,भोपाल और सीहोर में रहते हैं। भोपाल निवासी शादाब अली बहादुर अपने पूर्वजों पर गर्व करते हैं पर इस्लामिक ही रहना चाहते हैं। नाथ साम्प्रदाय के सुप्रसिद्ध संत गुलाबदास जी पहले गुल मोहम्मद थे । उन्होंने सत्य को स्वीकारा और घर वापसी करके संयासी बने । ये उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी जी के गुरुभाई थे । ऐसे अनेक प्रसंग हैं। भारतीयों को उनके पूर्वजों का स्मरण कराकर घर वापसी अभियान चलाने वाले स्वामी श्रृद्धानंद, महाशय हंसराज और पंडित लेखराज आदि की हत्याएँ हुईं। कट्टर पंथियों के भय से लोग खुलकर नहीं बोलते पर कुछ लोग रुबिका लियाकत की भाँति साहस से सामने आते रहे हैं। लेकिन यह चर्चा जब भी उठती है तब इसे राजनैतिक रंग देकर किनारे लगा दी जाती है ।
आज कट्टरपंथ या राजनैतिक लाभ हानि का गणित लगाकर भले कोई कुछ कहे पर इतिहास के पन्नों में यह बहुत स्पष्ट है अंकित है कि आज के ईराक, ईरान, तुर्की, इंडोनेशिया कम्बोडिया आदि भी कभी भारतवर्ष का अंग रहे हैं। समय के साथ राजनैतिक विविधता ने आकार लिया, सीमाएँ बनीं, दरारें बढ़ी, परंपराएँ और मान्यताएँ बदल गई । फिर पहचान और धर्म भी बदल गया। समय-समय पर विभिन्न इतिहासकारों ने इस सत्य को बहुत स्पष्ट लिखा है कि मध्य और दक्षिण ऐशिया के अधिकांश मुसलमानों के पूर्वज हिन्दु थे । एक लेखक हजरत साज रहमानी हुये हैं उन्होंने तो यहाँ तक लिखा है कि इस्लाम का जन्म हिन्दू माँ बाप से हुआ । अपने तर्क के समर्थन में उन्होंने कुछ कुरान की आयतों और हदीस का उदाहरण देकर समझाया कि वेद, गीता और कुरान के निर्देशों में समानता है । उनका तर्क था कि कुरान से पहले वेद दुनियाँ में आ चुके थे । यह आलेख गूगल पर उपलब्ध है । एक अन्य लेखक फ्रेन्कोइस गौइटर ने लिखा है कि पूरे ऐशिया के 95% मुस्लिम के पूर्वज हिन्दु थे । यदि हम ऐशिया के अन्य देशों की बात न भी करें तो भी भारत में हिन्दुओं की भाँति मुसलमानों में भी चौधरी, पटेल, देशमुख आदि उपनाम माल जाते हैं। इसके साथ पंजाब आदि क्षेत्र में मुसलमानों का एक वर्ग “हुसैनी ब्राह्मण” कहलाता है । इसी वर्ष जुलाई 2023 में मध्यप्रदेश के देवास जिले के अंतर्गत 35 परिवारों के 190 सदस्यों ने घर वापसी की और बताया कि उनके पूर्वज हिन्दु थे और समय की धारा में रूपांतरित हो गये थे । कौन किस परिस्थिति में रूपांतरित हुआ यह सब इतिहास में छिप गया है । उस पर अनावश्यक बहस भी अब उचित नहीं। पर अतीत के घटनाक्रम से सीख लेकर भविष्य को सशक्त बनाने की आवश्यकता है । मध्यकाल का रक्तरंजित इतिहास भी हमारे सामने है और सूफी संतों का अभियान भी । आज कौन किस आस्था और विश्वास के साथ जीना चाहता है यह उसका विषय है । पर अपने पूर्वजों के सत्य को स्वीकार करना उनके प्रति आभार जताना है । जो रूबिका लियाकत ने किया है । उन्होंने बहुत गर्व के साथ अपने पूर्वजों को हिन्दु बताया । ऐसा ही गर्व कभी मध्यप्रदेश में राज्यपाल रहे कुँअर मेहमूद अली ने व्यक्त किया था । इस प्रकार की स्वाकारोक्ति से ही यह भावना बलवती होती है कि सभी भारतीयों का डीएनए एक है भले उनके वर्ग, वर्ण, जाति, साम्प्रदाय अथवा धर्म अलग हो । यही भावना और विश्वास पूरे देश को एक सूत्र में बाँधेगी और भारत का यही संगठित स्वरूप पुनः विश्व शक्ति बनने की ओर अग्रसर करेगा ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *