अरब-इस्लामिक समिट में अल्जीरिया प्रस्ताव लाया कि मित्र देश से सारे इस्लामिक देश राजनयिक-व्यापारिक सम्बन्ध तोड़ दें जिसे सऊदी-UAE समेत अन्य देश ने खारिज कर दिया।
प्रस्ताव में कहा गया कि मित्र देश के साथ इस्लामिक देश सभी तरह के राजनयिक और आर्थिक संबंध खत्म कर लें और उसकी उड़ानों का अरब हवाई क्षेत्र से इस्तेमाल बैन कर दें। साथ ही अपने तेल निर्यातक देश होने का फायदा उठाएं और दुनिया को भी इसके लिए मजबूर करें जिसे सऊदी अरब, UAE, जॉर्डन, इजिप्ट, बहरीन, सूडान, मोरोक्को आदि ने खारिज कर दिया।
ये सब अल्जीरिया तुर्की के और तुर्की चीन के कहने पर करवा रहा था ताकि मित्र देश से होकर गुजरने वाला इंडिया-मिडल ईस्ट-यूरोप कॉरिडोर बर्बाद हो जिससे इसके BRI को फायदा मिले जहां से अब देशों ने अलग होना शुरू कर दिया है।
इससे पहले UN में प्रस्ताव आया था जिसपर ये कहा गया था कि मित्र देश, ईस्ट पेलो और गोल्डन हाइट्स जैसी जगह से अपने लोग वापिस बुला उस जगह को खाली करे जिसमें भारत सहित तमाम मेजर देशों ने मित्र देश के खिलाफ वोट दिया था। इसपर यहां के लिब्राण्ड और कांग्रेसी उछल पड़े कि देखो मोदी डर गया और विरोध में खड़ा हो गया लेकिन ये इनका प्रोपेगेंडा था क्योंकि 2 स्टेट पॉलिसी को खुद मित्र देश मानता है और उसने खुद 2005 में पट्टी से अपने लोग वापिस बुला उदाहरण पेश किया था लेकिन तब(उससे पहले भी) से लेकर आज तक उसपर लगातार हमले होते रहते हैं और जब वो कार्यवाही करता है तो फिर हमासियों की चीख निकलने लगती है और फिर दुनिया भर में मजहब परस्त पार्टियां और लोग अपनी छाती कूटते हैं जैसे यहां कांग्रेस ने सबसे ज्यादा कूट रखी है।
भारत इससे पहले पट्टी में मित्र देश द्वारा हमासियों की पिलाई के खिलाफ आये प्रस्ताव को समर्थन नही दिया था और मित्र देश के समर्थन में खड़ा हुआ लेकिन दोनों मुद्दे अलग अलग हैं। जहां ईस्ट पेलो और गोलन हाइट्स का मुद्दा सेम कश्मीर जैसा है जहां हम मानते हैं कि पाकिस्तान ने UN के नियम तोड़कर वहां के लोग भगा दिए और अपने लोग और सेना वहां बिठा दी वैसे ही मित्र देश के साथ है और भारत यदि अपना स्टैंड इस मामले में मित्र देश के साथ खड़ा होकर रखता है तो कल को कश्मीर मामले में वो दोगला स्टैंड लेने वाला बनेगा।
जबकि जब भारत ने हमासियों की पिलाई का समर्थन दिया तो वो इसलिए था कि ये वहां वेस्ट पट्टी में कब्जा कर सरकार चला रहे हैं वो खुद पेलो सरकार के खिलाफ रहते हैं और उसके प्रधानमंत्री को मरवाने की कोशिश भी करते हैं। इसलिए यदि मित्र देश पट्टी से हमासियों को खत्म करता है तो वहां पेलो सरकार का नियंत्रण आता है और फिर वहां 2 स्टेट पॉलिसी(हालांकि मजहब अपना रंग दिखाना जारी रखेगा) स्थापित हो सकती है जिसपर दोनों देश एग्री भी करते हैं।
यही वहां का बुनियादी अंतर है जिसे यहां कांग्रेस लिब्राण्ड जानबूझकर भारत सरकार की विदेश नीति पर हमला करने को ऊलजलूल ढंग से बता रहे हैं।
इसके पीछे भी चीन ही है जिसकी पालतू पार्टी कांग्रेस है। इससे फिर जब मोदी सरकार पर फेल विदेश नीति का ठप्पा लगेगा और शायद इससे अगर कांग्रेस सत्ता में आई तो पाकिस्तान के अच्छे दिन के साथ साथ चीन के CPEC का दरवाजा भी वापिस खुलेगा जो दोनों चीज मोदी ने बर्बाद कर दिया है। ऊपर से वेस्ट द्वारा पोषित सोरोस भी एन्टी मित्र देश है तो बोनस के रूप में कांग्रेस उसके कहने पर भी काम कर रही है जो भी मोदी सरकार को हटाने में डीप स्टेट के साथ मिला हुआ है क्योंकि भारत के रहते उनके मनसूबे काम नही कर रहे फिर वो रूस यूक्रेन(आयल) वॉर हो, मित्र देश संकट हो, वैक्सीन(फार्मा) वॉर रही हो, हथियार वॉर हो.. हर जगह भारत सरकार इंडिपेंडेंट पॉलिसी अपना इनको तंग कर रही है।।
विशाल कुकरेती जी ।