भगवान श्री राम मन्दिर के विध्वंस जो आततायी बाबर ने किया था, क्या ऐसा लगता है कि यह विध्वंस भी इतनी सहजता से कर दिया गया होगा। मानो सब प्रतीक्षा कर रहे हों कि एक मुगल आये और तोपखाने की मुँह मन्दिर की प्राचीरों की ओर करके उसे ध्वंस करे? और यह सब कुछ देखकर शेष लोग तालियाँ बजाएंगे?
इतिहासकारों ने कुछ ऐसा ही पढ़ाया और सिखाया। बचपन से यही तथ्य पढ़ती आयी हूँ कि, मुगल ऐसे थे वैसे थे। उनका कोई सामना करने वाला नहीं था।
परन्तु फिर जब उनके विषय में तर्क और प्रतिप्रश्न रखती हूँ तो बड़के इतिहासकार जी भी बगलियाँ झाँकने लगते हैं। क्यों भई?
जब मुगल बाबर इतना ही महान था, जो जनता को विश्वास में लेकर राम मन्दिर विध्वंस किया, जिसका कोई विरोध न हुआ(आपकी मान्यता अनुसार) तो वही बाबर अपने जीवन का मात्र चार ही वर्ष भारत में क्यों रहने पाया?
उसके बाद तो उसे भी जन्नत की हूरें सुपुर्द हुई।
बाबर का गुणगान इसलिये हुआ, ताकि, मुग़लिया आक्रांताओं को अच्छा सिद्ध किया जा सके?
यह सोचने वाले हमारे निहायत शरीफ दक्षिणपंथी विचारक सभी को मत समझ लेना।
बल्कि इन आक्रान्ताओं का गुणगान इसलिए करते आ रहे हो न, ताकि #गङ्गा_जमज़मी_तहज़ीब जैसी नदी और नाले की संगति बैठाई जा सके।
और उस तमाम संघर्ष और त्याग को भुलाया, मिटाया जा सके, जो इन मुग़लिया और तुर्क आक्रांताओं के लिए नासूर बन गया। ताकि उनकी नाजायज औलादों को यहाँ मुफ़्त में पलने का सुअवसर प्राप्त हो सके?
जिस बाबर को भोग का भी पर्याप्त समय ना मिला बल्कि चार वर्ष के भीतर ही दफन होना पड़ा, उसके पीछे कुछ तो कारण रहा होगा न?
और जब कुछ भी कारण रहा हो, तब तुम्हारे #इतिहास की कलम उन कारणों को उल्लेखित क्यों नहीं कर पाई?
क्यों #न्याय के साथ नित्य अन्याय होता रहा?
कभी तो बताओगे न? अन्यथा बताना ही होगा।
मन्दिर टूट गयी, और मस्जिद बना दी गयी। अब वह मस्जिद ही रहेगी। क्यों भाई?
क्या किसी के घर को तोड़कर अपना घर बना लेने से उस मालिक का हक समाप्त हो जाता है? या वह मात्र यह समझकर अपने पूर्वजों के त्याग से मोह भंग कर ले, जिन्होंने अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया अपने घर को बचाने में। परन्तु दुर्भाग्य से बचा न पाए?
“न्याय काल की प्रतीक्षा करता है”
क्या तुम ऐसा नहीं मानते? तुम भी तो कब्र में इसलिए सोते हो, ताकि #क़यामत के दिन जन्नत तशरीफ़ हो?
फिर जब अन्याय हुआ तो आज नहीं तो कल उसका न्याय तो होना ही है, इसमें बुराई क्यों देखते हो?
अगर न्याय व्यवस्था काल की प्रतीक्षा को नकार देगी, तो कभी विचार किये हो कि तुम्हारे उन नाजायज़ बाप दादों अर्थात मुगल और तुर्क की कब्रों का क्या होगा?
जिन्हें “क़यामत” के दिवस की प्रतीक्षा रही है, न जाने कब से।
(कुछ चाण्डाल इसी भय से तो बोले थे न कि उनकी कब्र #अरब में बनाना। क्योंकि उन्हें इसका भान अवश्य हो गया होगा कि,
जैसे ही “न्याय की प्रतीक्षा” को ठुकराया गया, हमारी कब्रें लतागर्द कर दी जाएंगी, और पुनः कभी भी जन्नत नशीब न होगी, क़यामत के बाद भी।
बाबरी का न्याय तो हो गया, परन्तु अभी शेष है न जाने कितने ऐसे अक्षम्य कृत्यों का, जो न्याय की अपेक्षा में #काल की बाट जोह रहे हैं।
अलतकिया से “काल का न्याय” भला कभी बाधित हुआ है?
कब तक झूठा इतिहास और झूठे दावे तुम्हारे कृत्यों को छुपाने में सफल होंगे?
समाप्त होती विष-विद्यालयी मान्यताएं अपनी सांस्कृतिक विरासत को रेखांकित करने लगी हैं।
तुम राम का जन्म पूछ रहे थे, अब आवाजें त्रेतान्त की नहीं, सतयुग आरम्भ की भी उठने लगी हैं।
आख़िर कब तक न्याय पर अन्याय प्रभावी रहेगा?
उसे भी एक न एक दिन तो तिरोहित होना ही होगा न।
इसलिये मेरा आग्रह है माननीय विद्वानों से,
“काल के न्याय” को अन्याय के सुप्रीम कोठे से बाधित करने का उपाय बन्द करें।
राम आ रहे हैं, अब न्याय भी राम दरबार में होंगे। न कि सुप्रीम कोठे पे।
जय श्री राम
भारद्वाज नमिता जी ।