Shadow

क्यों इतनी घुमक्कड़ी करने लगे हिन्दुस्तानी

आर.के. सिन्हा

आप देश के किसी भी हवाई अड्डे या रेलवे स्टेशन पर चले जाएंआपको वहां पर एक जैसा नजारा ही देखने में आएगा। उधर आने जाने वाले मुसाफिरों की भीड़ नजर आएगी। लगता है कि सारा देश ही घूमने के मूड में है। जैसे ही दफ्तरों में दो-तीन दिन के एक साथ अवकाश आते हैं तो लोग उन छुट्टियों में  कुछ और छुट्टियों को जोड़कर किसी पर्यटक स्थल के लिए निकल जाते हैं।   उन्हें समद्री तट से लेकर पहाड़ और अभयारण्यों से लेकर धार्मिक स्थल तक सबकुछ ही पसंद आ रहे हैं। एक बात और कि भारतीय सिर्फ देश के अंदर ही घूमकर संतुष्ट नहीं हैं। उन्हें देश से बाहर जाना भी अच्छा खासा रास आ रहा है। बुकिंग डॉट कॉम के एक निष्कर्ष के अनुसारपिछले साल यानी 2022 में करीब दो करोड़ हिन्दुस्तानी देश से बाहर घुमक्कड़ी के लिए निकले। यह कोई छोटा-मोटा आंकड़ा नहीं है। भारतीय लंदनपेरिसदक्षिण अफ्रीका के केप टाउन और दूसरे शहरों के अलावा केन्यानाइजीरियातंजानियादुबईसिंगापुर,वियतनामसिडनी मेलबोर्नपर्थहॉगकॉंग वगैरह जा रहे हैं। दुबई और सिंगापुर के बाजारों में घूमते हुए तो लगता है कि आप किसी भारतीय शहर में ही हैं। वहां पर हजारों भारतीय रोज पहुंच रहे हैं।

दरअसल आर्थिक उदारीकरण के बाद हिन्दुस्तानियों की आर्थिक स्थिति सुधरी तो उन्होंने भी मन ही मन दुनिया को देखने का फैसला भी कर लिया। अब हिन्दुस्तानी कमाए हुए पैसे को गांठ में बांधने भर के लिए राजी नहीं है। उन्हें तो घूमना है। याद नहीं आता कि अब से पहले कब हिन्दुस्तानी आजकल की तरह से घूमने के लिए घर से निकले थे। बेशकदुनिया को जानने के लिए यायावरी जरूरी है। आप अगर घूमेंगे ही नहीं तो दुनिया को जानेंगे-समझेंगे कैसे। घुमक्कड़ी की चर्चा होगी तो राहुल सांकृत्यायन जी का नाम तुरंत जेहन में आएगा। वे सदैव घुमक्कड़ ही रहे।  उनकी सन्‌ 1923 से  विदेश यात्राओं का सिलसिला शुरू हुआ तो फिर इसका अंत उनके जीवन के साथ ही हुआ। ज्ञानार्जन के उद्देश्य से प्रेरित उनकी यात्राओं में श्रीलंकातिब्बतजापान और रूस की यात्राएँ विशेष रही थीं। वे चार बार तिब्बत पहुंचे। वहां लम्बे समय तक रहे और भारत की उस विरासत को जानाजो हमारे लिए अज्ञात और विस्मृत हो चुकी थी। वे 1907 में घर से भागकर चार मास तक कोलकाता में रहे। वे काशी में भी रहे। उन्होंने वहां रहकर संस्कृत का अध्ययन किया। वे पैदल ही अयोध्या होते हुए मुरादाबाद पहुँचे और वहाँ से हरिद्वार गए। हरिद्वार से हिमालयदेवप्रयागटिहरीयमुनोत्रीगंगोत्रीकेदारनाथ और बद्रीनाथ की यात्रा की। फिर प्रयाग की प्रदर्शनी देखने के लिए घर से निकल गए।  गांधी जी भी बहुत बड़े घुमक्कड़ थे। वे रेलों से खूब सफर किया करते थे। घुमक्कडी के चलते उन्होंने देश के चप्पे- चप्पे को देखा और भारत को जाना। गुरु नानक देव जी ने 24 साल में दो उपमहाद्वीपों के 60 प्रमुख शहरों की पैदल यात्रा की। इस दौरान उन्होंने 28 हजार किमी का सफर किया। उनकी यात्राओं का मकसद समाज में मौजूद ऊंच-नीचजात-पांतअंधविश्वास आदि को खत्म कर आपसी सद्भावसमानता कायम करना था। वे जहां भी गएएक परमात्मा की बात की और सभी को उसी की संतान बताया। बाबा नानक अपनी पहली यात्रा के दौरान पंजाब से हरियाणाउत्तराखंडदिल्लीउत्तर प्रदेशबिहारनेपालसिक्किमभूटानढाकाअसमनागालैंडत्रिपुराचटगांव से होते हुए बर्मा (म्यांमार) पहुंचे वहां से वे ओडिशाछत्तीसगढ़मध्यप्रदेशउत्तरप्रदेश और हरियाणा होते हुए वापस आए थे। तो भारत में प्राचीनकाल से ही यायावरी करने वाले रहे हैं।

यूं तो सारा भारत अब घुमक्कड़ हो चुका हैपर इस मोर्चे पर गुजराती और बंगाली बाकी से अब भी कुछ आगे ही हैं। आपको देश और देश से बाहर गुजराती पर्यटक मिलेंगे। गुजराती दुनियाभर में बसे भी हुए हैं। अमेरिका से लेकर अफ्रीका तक में। मुझे याद है कि एक बार मैं मिस्र की राजधानी काहिरा में पिरामिडों को निहार रहा था। वहां पर बहुत सारे गुजरती भी आ रहे थे बसों में। उनमें महिलाएं और बच्चे भी थे। मैंने एक महिला से पूछा- ‘क्या आप भारत के गुजरात प्रांत से हैंउस महिला का उत्तर था- ‘हम गुजराती हैं पर केन्या के।’ फिर उसने मुस्कराते हुए कहा कि ‘हम लोग केन्या में दशकों पहले बस गए थे। हालांकि हमारी भाषा और संस्कार पूरी तरह से गुजरात की धरती के हैं।’ आप बंग भाषियों को भी दूर-सुदूर की खाक छानते हुए देखेंगे। खुशवंत सिंह कहते थे कि आप ज्ञान अर्जित दो तरह से कर सकते हैं- पहलापढ़कर और दूसराघूमकर। यह बात पूरी तरह से सही है। आप जब किसी अन्य स्थान पर जाते हैं तो आपको वहां के लोगों के जीवन के विभिन्न पहलुओं को जानने का भी मौका मिलता है। घुमक्कड़ी किसी भी इंसान को समृद्ध बनाती है। मैं हाल के दौर में इस तरह के बहुत सारे लोगों के संपर्क में आया हूंजो समय-समय पर देश के अलग-अलग भागों जाते हैं। कभी-कभी देश से बाहर निकल जाते हैं। उनसे बात करके लगता है कि घुमक्कड़ी उन्हें बेहतर इंसान बना रही है। घुमक्कड़ी का मतलब सिर्फ खानपाल ही नहीं होना चाहिए। हालांकि कुछ लोग इस लिए भी सफर पर निकल जाते हैं ताकि उन्हें भांति-भांति के डिशेज के साथ न्याय करने का मौका मिल जाता है। घुमक्कड़ी का लक्ष्य सिर्फ पेट पूजा नहीं होना चाहिए। आपको नई-नई जगहों के समाज और संस्कृति को भी समझना होगा।अगर भारत से लोग  बाहर जा रहे हैं तो बाहर से भारत में पर्यटक आ भी रहे हैं। जानकारों के अनुसारकोरोना के असर से ठीक एक साल पहले साल 2019 में भारत में लगभग 1. 93 करोड़ विदेशी पर्यटक आए। उसके बाद से भारत में विदेशी पर्यटकों के आने का सिलसिला 75 फीसद तक गिरा। चूंकि अब हालत सामान्य हो चुके हैइसलिए भारत में विदेशी पर्यटकों की आवक को बढ़ाना होगा। भारत में ताजमहलगुलाबी नगरी जयपुर,  पहाड़ों की रानी दार्जिलिंगअसीमित जल का क्षेत्र कन्याकुमारीपृथ्वी का स्वर्ग कश्मीर समेत अनगिनत अहम पर्यटन स्थल हैं। हमारे यहां भगवान बुद्ध से जुड़े अनेक अति महत्वपूर्ण स्थल हैं। भारत में बौद्ध के जीवन से जुड़े कई महत्वपूर्ण स्थलों के साथ एक समृद्ध प्राचीन बौद्ध विरासत है। आखिर हम बौद्ध की भूमि होने के बावजूद दुनिया भर के बौद्ध अनुयायियों को आकर्षित करने में क्यों असफल रहे।   कुछ साल पहले तक राजधानी के दिल कनॉट प्लेस में बड़ी तादाद में विदेशी घूम रहे होते थे। अब यह वहां बड़ी मुश्किल से दिखाई देते हैं। कनॉट प्लेस के एक प्रमुख शो-रूम के स्वामी ने बताया कि कनॉट प्लेस में घूमने वाले भिखारी विदेशी पर्यटकों को बहुत परेशान करते हैं। इसलिए उन्होंने यहां आना ही बंद कर दिया है। यह स्थिति दुर्भाग्यपूर्ण है।  अगर भारत को अपने यहां विदेशी पर्यटकों की आवक को बढ़ाना है तो उसे पर्यटकों के हितों का ध्यान देना होगा।

 (लेखक   वरिष्ठ संपादकस्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *