राष्ट्र को संगठित करने वाले महायोद्धा थे सरदार पटेल
– ललित गर्ग-
कर्मवीर व्यक्तियों का जीवन विलक्षण होता है, वे अपने जीवन काल में तथा उसके बाद प्रेरणास्रोत बने रहते हैं। इतिहास अक्सर ऐसे महान् लोगों से ऐसा काम करवा देता है जिसकी उम्मीद नहीं होती। और जब राष्ट्र की आवश्यकता का प्रतीक ऐसे महान् इंसान बनते हैं तो उनका कद सहज ही बड़ा बन जाता है। सरदार वल्लभ भाई पटेल ऐसे ही विराट व्यक्तित्व के धनी एवं कर्मवीर महापुरुष थे। वे एक राजनेता ही नहीं, एक स्वतंत्रता सेनानी ही नहीं बल्कि इस देश की आत्मा थे। राष्ट्रीय एकता, भारतीयता एवं राजनीति में नैतिकता की वे अद्भुत मिसाल थे। आजादी के बाद विभिन्न रियासतों में बिखरे भारत के भू-राजनीतिक एकीकरण में केंद्रीय भूमिका निभाने के लिए पटेल को भारत का बिस्मार्क और लौह पुरूष भी कहा जाता है। उन्हें 1991 में भारत रत्न से सम्मानित किया जा चुका है। पटेल की राष्ट्रीयता को संगठित करने की बुलंद एवं विलक्षण उपलब्धियां उम्र के पैमानों में इतनी ज्यादा है कि उनके आकलन में गणित का हर फार्मूला छोटा पड़ जाता है। भले ही वे आज हमारे बीच नहीं है लेकिन वे इस माटी के लिए किये गये उल्लेखनीय अवदानों के लिए सदियों तक याद किये जायेंगे। उनका जन्म दिवस राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाया जाता है। 15 दिसम्बर उनका निर्वाण दिवस है।
सरदार वल्लभ भाई पटेल ने अपने पुरुषार्थ से राष्ट्र का भाग्य रचा, उनका जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के नडियाड में हुआ। वे कृषक परिवार से थे। उनके पिता का नाम झवेरभाई पटेल एवं माता का नाम लाडबा देवी है। वे उनकी चौथी संतान हैं। लन्दन जाकर उन्होंने बैरिस्टर की पढाई की और वापस आकर अहमदाबाद में वकालत करने लगे। महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित होकर उन्होने भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन में भाग लिया। सरदार पटेल की शिक्षाएं, जीवन-आदर्श एवं राष्ट्र को प्रदत्त अवदान हमें प्रेरणा देते रहेंगे। उनके विचार एवं सोच जहां हमारे लिये जीवन को सफल एवं सार्थक बनाने का आधार है वहीं राष्ट्रीयता के खुद को न्यौछावर कर देने की प्रेरणा है। अहिंसा का समर्थन करते हुए सरदार पटेल का कहना था कि कायरों की अहिंसा का कोई मूल्य नहीं है। जो तलवार चलाना जानते हुए भी तलवार को म्यान में रखता है, उसकी अहिंसा सच्ची अहिंसा होती है। उनका कहना था कि हमारा सिर कभी न झुकने वाला होना चाहिए। उन्हें देश के छोटे से छोटे स्तर के व्यक्ति की भी कितनी चिंता थी, उसी को व्यक्त करते हुए उन्होंने एक बार कहा था कि उनकी एक ही इच्छा है कि भारत एक अच्छा उत्पादक हो और इस देश में कोई भी व्यक्ति अन्न के लिए आंसू बहाता हुआ भूखा न रहे।
सरदार पटेल का जीवन और दर्शन भातीयता को सुदृढ़ करने में नियोजित करने में लगा रहा है। एकता में सबसे बड़ा बाधक स्वहित है। आज के समय में स्वहित ही सर्वाेपरि हो गया है। आज जब देश आजाद है, आत्मनिर्भर है तो वैचारिक मतभेद उसके विकास में बेड़ियाँ बनी हुई हैं। आजादी के पहले इस स्वार्थी दृष्टिकोण एवं स्वहित की भावना का फायदा अंग्रेज उठाते थे और आज देश के राजनीतिक लोग। देश में एकता के स्वर को सबसे ज्यादा बुलंद सरदार पटेल ने किया था। उनकी सोच, उनका दर्शन, उनकी राष्ट्रीयता के कारण ही आज हम एकसूत्रता में बंध हुए हैं। उनकी सोच युवा जैसी नयी सोच थी। वे सदैव देश को एकता का संदेश देते थे। राष्ट्रीयता को उन्होंने केवल परिभाषित ही नहीं किया बल्कि उसे संगठित करके दिखाया। वे अपने निजी त्याग, राष्ट्रीयता के प्रति सर्वस्व बलिदान कर देने की भावना एवं कठिन जीवनचर्या को वर्चस्वी बनाकर किसी पर नहीं थोपते अपितु व्यक्ति की स्वयं की कमजोरियों को उसे महसूस करवाकर उससे उसको बाहर निकालने का मानवीय स्पर्श करते थे। आपने ‘साल’ का वृक्ष देखा होगा- काफी ऊंचा ‘शील’ का वृक्ष भी देखें- जितना ऊंचा है उससे ज्यादा गहरा है। सरदार पटेल के व्यक्तित्व एवं कृतित्व में ऐसी ही ऊंचाई और गहराई थी। जरूरत है इस गहराई को मापने की। उन्हें भारतीय राजनीति का आदर्श बनाकर प्रस्तुत करने की।
सरदार पटेल ने आजादी के ठीक पूर्व ही पीवी मेनन के साथ मिलकर कई देसी राज्यों को भारत में मिलाने के लिये कार्य आरम्भ कर दिया था। पटेल और मेनन ने देसी राजाओं को बहुत समझाया कि उन्हे स्वायत्तता देना सम्भव नहीं होगा। इसके परिणामस्वरूप तीन को छोड़कर शेष सभी रजवाडों ने स्वेच्छा से भारत में विलय का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। केवल जम्मू एवं कश्मीर, जूनागढ तथा हैदराबाद के राजाओं ने ऐसा करना नहीं स्वीकारा। जूनागढ के नवाब के विरुद्ध जब बहुत विरोध हुआ तो वह भागकर पाकिस्तान चला गया और जूनागढ भी भारत में मिल गया। जब हैदराबाद के निजाम ने भारत में विलय का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया तो सरदार पटेल ने वहाँ सेना भेजकर निजाम का आत्मसमर्पण करा लिया। यह असंभव जैसा कार्य सरदार पटेल की निडरता, साहसिकता एवं जुझारूपन के कारण ही संभव हो पाया। वे अपनी विलक्षण सोच एवं अद्भुत कार्यक्षमता से असंख्य लोागों के प्रेरक बन गए। उनका जीवन एक यात्रा का नाम है- आशा को अर्थ देने की यात्रा, ढलान से ऊंचाई देने की यात्रा, गिरावट से उठने की यात्रा, मजबूरी से मनोबल की यात्रा, सीमा से असीम होने की यात्रा, जीवन के चक्रव्यूह से बाहर निकलने की यात्रा, परतंत्रता से स्वतंत्रता की यात्रा, विखराव से जुड़ाव की यात्रा। उनका अभियान सफल हुआ और यह देश एकता के सूत्र में बंधा। उस महापुरुष के मनोबल को प्रणाम।
सरदार पटेल का संपूर्ण जीवन विलक्षणताओं एवं उपलब्धियों का समवाय है जिसमें सर्वत्र देश के लिए त्याग भावना एवं कुछ नया करने का जज्बा दिखाई देता है। उन्होंने ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध खेड़ा सत्याग्रह और बरडोली विद्रोह का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया। 1922, 1924 और 1927 में अहमदाबाद नगर निगम के अध्यक्ष चुने गए। 1931 में कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए। स्वतंत्र भारत के प्रथम उप प्रधानमंत्री और गृह मंत्री बने। भारत के राजनैतिक एकीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सरदार पटेल को 1930 में नमक सत्याग्रह के दौरान गिरफ्तार कर लिया गया जिससे पुरे गुजरात में आन्दोलन और तीव्र हो गया और ब्रिटिश सरकार गाँधी और पटेल को रिहा करने पर मजबूर हो गयी। इसके बाद उन्हें मुंबई में एक बार फिर गिरफ्तार किया गया। महात्मा गाँधी के प्रति सरदार पटेल की अटूट श्रद्धा थी। गाँधीजी की हत्या से कुछ क्षण पहले निजी रूप से उनसे बात करने वाले पटेल अंतिम व्यक्ति थे। उन्होंने सुरक्षा में चूक को गृह मंत्री होने के नाते अपनी गलती माना। उनकी हत्या के सदमे से वे उबर नहीं पाये। गाँधीजी की मृत्यु के दो महीने के भीतर ही पटेल को दिल का दौरा पड़ा था।
सरदार पटेल की पंडित जवाहरलाल नेहरू से अच्छी मित्रता एवं मधुर संबंध थे, लेकिन कई मसलों पर दोनों के मध्य मतभेद भी थे। कश्मीर के मसले पर दोनों के विचार भिन्न थे। कश्मीर मसले पर संयुक्त राष्ट्र को मध्यस्थ बनाने के सवाल पर पटेल ने नेहरू का कड़ा विरोध किया था। कश्मीर समस्या को सरदर्द मानते हुए वे भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय आधार पर मामले को निपटाना चाहते थे। इस मसले पर विदेशी हस्तक्षेप के वे खिलाफ थे। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के चुनाव के पच्चीस वर्ष बाद चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने लिखा था- “निस्संदेह बेहतर होता, यदि नेहरू को विदेश मंत्री तथा सरदार पटेल को प्रधानमंत्री बनाया जाता। यदि पटेल कुछ दिन और जीवित रहते तो वे प्रधानमंत्री के पद पर अवश्य पहुँचते, जिसके लिए संभवतः वे योग्य पात्र थे। यदि ऐसा होता तो भारत का नक्शा और दूसरा ही होता। ऐसे महान् राष्ट्रीयता के प्रेरक महामना को प्रणाम!