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कहने को गठबंधन पर सबके अपने राग

जून से दिसम्बर आकर चला गया, अभी तक इस सवाल का हल नहीं निकला क़ि ‘इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्कलुसिव अलायंस’ (इंडिया) नामक गठबंधन का अगुवा कौन होगा ? वैसे इसमें 28 दल हैं, और सबकी चाहत है कि 2024 के आम चुनाव में भाजपा से लड़ने को एक संयुक्त मोर्चा बनाने में जितना संभव हो, अधिक से अधिक विपक्षी दलों को साथ जोड़ा जाए। इस गुट की स्थापना करने में, कांग्रेस का योगदान उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि अन्य क्षेत्रीय पार्टियों का, यह एक तरह से गांधी परिवार की स्वीकारोक्ति है कि उसकी राजनीतिक विरासत अपने बूते पर भाजपा से मुकाबला करने लायक नहीं रही। वैसे भी इस गठबंधन की बैठकों की शृंखला से भी यह सिद्ध होता है कि कांग्रेस का रुतबा बाकियों से ऊपर न होकर, बराबरी का है।

कुछ घटनाएं इस गठबंधन की जरूरत को और गहराई से रेखांकित करती हैं खासकर कांग्रेस के लिए, पटना में ‘इंडिया’ गठजोड़ के पहले सम्मेलन से जो अनुकूल माहौल बना था, वह आगे चलकर फीका होता गया। इससे सात महीने पहले, राहुल गांधी की व्यापक ‘भारत जोड़ो यात्रा’ पूरा होने के बाद भी कुछ आस बंधी थी। जो आमतौर पर लोगों के बीच उनकी छवि एक अनिच्छुक और अनाड़ी राजनेता होने को बदलने में कुछ हद तक सहायक हुई। कांग्रेस ने कर्नाटक विधानसभा चुनाव में प्रभावशाली जीत भी हासिल की और जनता दल (सेक्युलर) को खत्म कर डाला, जिससे उसने ‘राजग’ की शरण लेनी चाही है।

इस साल खत्म होते-होते विपक्ष के लिए परिदृश्य मायूसी में बदल गया। भाजपा ने हिंदी पट्टी के तीन राज्यों में कांग्रेस के साथ सीधी टक्कर में एकतरफा जीत हासिल कर ली। इस क्षेत्र में अब कांग्रेसी विधायकों का वजूद यहां-वहां है। संसद में चले शीतकालीन सत्र में, भाजपा ने 2024 में सत्ता-वापसी के कयासों के बीच, अपनी लगभग-आधिपत्य वाली स्थिति को पुनः सुदृढ़ किया है। संसद की सुरक्षा में लगी हालिया सेंध पर विपक्ष द्वारा सरकार से सदन के भीतर वक्तव्य की मांग की भाजपा ने जरा परवाह नहीं की। न केवल सरकार ने सदन में हंगामा करने वालों को पास मुहैया करवाने वाले सांसदों को उत्तरदायी ठहराने के सुझाव को खारिज किया बल्कि बिना बहस करवाए वह कानून भी पारित करवा लिए जिनका डाटा सुरक्षा और आपराधिक न्याय प्रणाली पर दूरगामी असर होगा। विपक्षी सांसदों का थोक में निलम्बन किए जाने के बाद, लोकसभा और राज्यसभा में विपक्षी सदस्यों की उपस्थिति शेष सत्र में नगण्य हो गई है। दोनों सदनों का यह परिदृश्य आरएसएस की लंबे समय से पाली आकांक्षा की परिणति है, जिसके तहत वह चाहती है कि केंद्र में एक धाकड़ सरकार हो और राज्य सरकारें उपग्रह की हैसियत से परिक्रमा करती रहें।

ये हालात विपक्ष के गठबंधन को फलीभूत करने में कितने पूर्व-संकेतक हैं? 19 दिसम्बर को ‘इंडिया’ गुट के घटकों की नई दिल्ली में बैठक हुई, मकसद था, आपसी फूट को लेकर चल रही चर्चाओं का निराकरण किया जाए, जो पिछले सत्रों के बाद और हालिया राज्यों के चुनावों से पहले सीट बंटवारे को लेकर समाजवादी पार्टी, जनता दल (युनाइटेड) और राष्ट्रीय लोकदल के बीच खींच-तान से पैदा हुई थीं। बैठक- जिसमें शिव सेना (उद्धव), उत्तर प्रदेश एवं बिहार में मंडल कमीशन नीत राजनीति करने वाली पार्टियां, डीएमके एवं उसके सहयोगी दल और आम आदमी पार्टी शामिल थे- दलों के बीच सहयोग और सर्वसम्मति बनाने को लेकर थी, लेकिन यह हो न पाया। अभी भी यह स्पष्ट नहीं है कि क्या प्रतिभागी पूर्व में ‘अप्रासंगिक’ माने जा चुके मुद्दों को उठाकर अपना नुकसान करने पर आमादा थे या फिर अपने विरोधाभासों को व्यक्त करके बहुत खुश थे।

तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी और ‘आप’ के अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को ‘इंडिया’ गठबंधन की ओर से बतौर प्रधानमंत्री चेहरा बनाने का सुझाव दिया। लगता है उन्होंने इस मुद्दे पर अपने सिवा किसी अन्य से सलाह नहीं की थी, यह यकीन करते हुए कि वक्त आने पर बाकी सहयोगियों को इस बिंदु पर मना लेंगे कि भाजपा की अन्य पिछड़ा वर्ग वाली रणनीति का तोड़ ‘इंडिया’ गठबन्धन की ओर से भारत का पहला दलित प्रधानमंत्री देने वाला पत्ता खेलने में है।

इलाकाई कटुता और अंतर-राज्य अस्वीकार्यता को और उभारती कुछ लाल लकीरें भी बैठक में खिंच गईं। जब डीएमके के वरिष्ठ प्रतिनिधि टीआर बालू ने नीतीश के भाषण के अनुवाद की मांग की, इस पर बिहार के मुख्यमंत्री ने यह कहकर झाड़ दिया कि उन्हें हिंदी आनी चाहिए, जो कि ‘राष्ट्रीय भाषा’ है।

कहने को बैठक में आम सहमति बनी है कि सीट बंटवारे की प्रक्रिया साल के अंत तक पूरी कर ली जाए, लेकिन हकीकत में चीजें कहां खड़ी हैं? समाजवादी नेता राम गोपाल यादव ने साफ कर दिया कि बहुजन समाज पार्टी को जोड़ने का प्रस्ताव आया तो उनकी पार्टी ‘इंडिया’ गठबंधन छोड़ देगी। भले ही ममता बनर्जी ने साल के अंत तक सीट बंटवारा पूरा करने पर जोर दिया लेकिन खुद उनकी ओर से ऐसा संकेत नहीं मिला कि वे अपने सूबे में तृणमूल-कांग्रेस-वामदलों के साथ बृहद गठजोड़ बनाने को तैयार हैं। ‘इंडिया’ गठबंधन के समक्ष ये दुश्वारियों के केंद्र में कांग्रेस द्वारा खुद को एक ऐसा सर्वमान्य अग्रणी की भूमिका में न ढाल सकना है, जो विभिन्न विचारधारा वालों को बांधकर रख सके, जिनकी अपनी अलग महत्वाकांक्षा और जो अलग-अलग तूती बजा रहे हैं।

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