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राजस्थान में ही रहने के लिए पायलट ने अशोक गहलोत की भाषा बोली।

गहलोत, डोटासरा, रंधावा के बगैर भी सचिन पायलट को सुनने के लिए श्रीकरणपुर में भीड़ उमड़ी।

27 दिसंबर को राजस्थान के श्रीकरणपुर विधानसभा चुनाव में प्रचार के दौरान कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट ने यह दर्शा दिया है कि पूर्व सीएम अशोक गहलोत, प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा, प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा जैसे बड़े नेताओं के बगैर भी भीड़ एकत्रित हो सकती है। पायलट ने 27 दिसंबर को कांग्रेस प्रत्याशी रूपेंद्र सिंह के समर्थन में जनसभा और रोड शो किया। इन दोनों ही कार्यक्रमों में जबरदस्त भीड़ थी। कहा जा सकता है कि यह भीड़ पायलट के अकेले दम की भीड़ थी। इससे पायलट की लोकप्रियता का आंकलन भी किया जा सकता है। पायलट को सुनने और देखने के लिए यह भी तब जुटी है, जब हाल ही में विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा है। पायलट ने भीड़ से उत्साहित होकर ही कहा कि वे भले ही कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव बन गए हो, लेकिन उनकी सक्रियता राजस्थान में बनी रहगी। राजस्थान में अपनी सक्रियता के संदर्भ में पायलट ने पूर्व सीएम अशोक गहलोत की भाषा का इस्तेमाल किया है। 2013 से 2018 के बीच विपक्ष में रहते हुए गहलोत ने कई बार कहा कि मैं थां सू दूर कौनी। 2018 के दिसंबर माह में जब गहलोत तीसरी बार मुख्यमंत्री बने तो राजस्थान की जनता की समक्ष में आ गया कि गहलोत के कहने का अर्थ क्या था। अब जब सचिन पायलट को महासचिव और छत्तीसगढ़ का प्रभारी बनाने के बाद राजस्थान की राजनीति से दूर करने की बात कही जा रही है, जब पायलट ने गहलोत की तरह कहा है में थां सूं दूर कौनी। पायलट ने गहलोत की भाषा बोलकर यह दर्शा दिया है कि वे राजस्थान की राजनीति में सक्रिय रहेंगे। यदि राष्ट्रीय नेतृत्व का मकसद पायलट को प्रदेश की राजनीति से दूर करना होता तो फिर उन्हें श्रीकरणपुर चुनाव में प्रचार के लिए भी नहीं भेजा जाता। कांग्रेस की हार के बाद श्रीकरणपुर में यह पहला अवसर था जब सचिन पायलट ने जनसभा को संबोधित किया। पायलट ने 27 दिसंबर को प्रदेश की राजनीति में सक्रियता दिखाई तो 28 दिसंबर को राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय रूप से नजर आए। कांग्रेस के स्थापना दिवस पर नागपुर में जो रैली हुई उसमें भी पायलट शामिल हुए। इतना ही नहीं आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े ने राष्ट्रीय महासचिवों की जो बैठक ली उसमें भी पायलट उपस्थित रहे। यानी सचिन पायलट राष्ट्रीय राजनीति से लेकर प्रदेश की राजनीति में सक्रिय हैं। कहा जा सकता है कि 25 सितंबर 2022 से पहले कांग्रेस में अशोक गहलोत की जो हैसियत थी, वही राजनीतिक हैसियत अब सचिन पायलट की है। जहां तक अशोक गहलोत का सवाल है तो फिलहाल उन्हें कोई बड़ी जिम्मेदारी नहीं मिली है।

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