किसी भी देश में आर्थिक विकास को अतुलनीय गति देने में केवल 10 वर्ष का समय बहुत कम माना जाता है। इतिहास गवाह है कि कई देशों को आर्थिक विकास की रफ्तार को गति देने में दशकों लग जाते हैं। चीन ने वर्ष 1980 का आसपास अपने देश में आर्थिक सुधार कार्यक्रम लागू किए थे परंतु इनका परिणाम दशकों बाद दिखाई दिया था, लगभग यही स्थिति अन्य देशों की भी रही है। परंतु, भारत ने पिछले केवल 10 वर्षों के दौरान अर्थ के कई क्षेत्रों में पूरे विश्व को राह दिखाई है।
भारत में आधारभूत ढांचे को विकसित करने पर विशेष ध्यान दिया जा गया है क्योंकि किसी भी देश के आर्थिक विकास को गति देने में आधारभूत ढांचे का विकसित अवस्था में होना अति आवश्यक माना जाता है। भारत में वर्ष 2013 में केवल 4,100 किलोमीटर रेल्वे लाइन का विद्युतीकरण किया जा सका था जो वर्ष 2023 में बढ़कर 28,100 किलोमीटर का हो गया है। राष्ट्रीय हाईवे भी वर्ष 2014 के 25,700 किलोमीटर से बढ़कर वर्ष 2023 में 53,700 किलोमीटर के हो गए हैं और भारत में वर्ष 2014 में केवल 74 एयरपोर्ट थे, जो वर्ष 2023 में बढ़कर 148 हो गए हैं। इस प्रकार के आधारभूत ढांचे को विकसित करने से भारत में रेल्वे ट्रैक, राष्ट्रीय हाईवे सहित सड़क मार्ग एवं एयरपोर्ट की उत्पादकता बढ़ी है एवं पेट्रोल, डीजल की खपत में कमी होकर देश में पर्यावरण की स्थिति को सुधारने में भी सहायता मिली है।
मुद्रा स्फीति की दर वर्ष 2013 में 10 प्रतिशत थी जो वर्ष 2022 में घटकर 4.7 प्रतिशत हो गई है। इससे आम नागरिकों को बड़ी राहत मिली है और उनके व्यय करने की क्षमता बढ़ी है। देश में डिजिटल क्षेत्र का तो जैसे कायाकल्प ही हो गया है। वर्ष 2016 में डिजिटल व्यवहार देश के सकल घरेलू उत्पाद का मात्र 4.4 प्रतिशत ही हो पा रहे थे जो वर्ष 2023 में बढ़कर 76.1 प्रतिशत से भी अधिक होने लगे हैं। इसी प्रकार, देश में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (आईआईटी) की संख्या वर्ष 2014 में 16 से बढ़कर वर्ष 2023 में 23 हो गई है, भारतीय मेडिकल संस्थानों (आईआईएम) की संख्या वर्ष 2014 के 13 से बढ़कर वर्ष 2023 में 20 हो गई है, मेडिकल कॉलेजों की संख्या वर्ष 2013 में 385 से बढ़कर वर्ष 2023 में 693 हो गई है और अखिल भारतीय मेडिकल साईंस संस्थानों (ऐमस-एआईआईएमएस) की संख्या वर्ष 2014 में 7 से बढ़कर वर्ष 2023 में 25 हो गई है। कुल मिलाकर पिछले 10 वर्षों के दौरान भारत में महत्वपूर्ण संस्थानों को भारी संख्या में विकसित किया गया है।
भारत का विदेशी मुद्रा भंडार वर्ष 2014 में 28,500 करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर था जो वर्ष 2023 में दुगने से भी अधिक होकर 60,300 करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर को पार कर गया है। विदेशी निवेशकों का विश्वास भी भारतीय अर्थव्यवस्था पर लगातार बढ़ रहा है। वर्ष 2013 में विदेशी निवेशकों ने भारतीय अर्थव्यवस्था में 2,200 करोड़ अमेरिकी डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश किया था जो वर्ष 2023 में दुगने से भी अधिक होकर 4,600 करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो गया है।
अभी हाल ही में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भारत के ऋण: सकल घरेलू उत्पाद अनुपात को लेकर चिंता जताते हुए कहा था कि आगे आने वाले समय में भारत के लिए यह अनुपात 100 के स्तर को पार कर सकता है, यदि ऐसा होता है तो यह भारत के आर्थिक विकास को विपरीत रूप से प्रभावित कर सकता है। परंतु, भारत में निगमों का औसत ऋण: सकल घरेलू उत्पाद अनुपात वर्ष 2015 के 65 प्रतिशत से कम होकर वर्ष 2023 में 50 प्रतिशत के स्तर पर आ गया है और, उम्मीद की जा रही है कि वर्ष 2028 तक केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारों का ऋण: सकल घरेलू उत्पाद अनुपात भी कम होकर 80 प्रतिशत के निचले स्तर पर नीचे आ जाएगा।
केंद्र सरकार पर लगातार यह आरोप लगता रहा है कि केंद्र सरकार के संस्थानों को बेचा जा रहा है। जबकि अब केंद्र सरकार के विभिन्न 25 संस्थानों ने पिछले एक वर्ष के दौरान अपने निवेशकों की पूंजी में 100 प्रतिशत से अधिक का संवर्धन किया है। विशेष रूप से आईआरएफसी ने 437 प्रतिशत, इरकोन ने 343 प्रतिशत, आरवीएनएल ने 321 प्रतिशत, कोचीन शिप्यार्ड ने 247 प्रतिशत, पीएफसी ने 250 प्रतिशत, रैलटेल ने 247 प्रतिशत, आईटीआई ने 245 प्रतिशत, हुड़को ने 245 प्रतिशत तक का संवर्धन निवेशकों के निवेश में पिछले एक वर्ष के दौरान किया है। आज न केवल विदेशी संस्थागत निवेशक और भारतीय संस्थागत निवेशक बल्कि खुदरा निवेशक भी केंद्र सरकार के विभिन्न उपक्रमों में निवेश करने पर अधिक भरोसा जता रहे हैं।
और, फिर अब तो अयोध्या में प्रभु श्रीराम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा भी 22 जनवरी 2024 को भारत के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के परम पूज्य सर संघचालक श्री मोहन जी भागवत एवं पूज्य संत मंडल के सानिध्य में सम्पन्न की जा चुकी है। यह एक ऐसा कारण बनने जा रहा है जिसके चलते भारत की आर्थिक विकास दर 10 प्रतिशत से भी आगे निकल सकती है, जो वर्तमान में 7 प्रतिशत के आसपास चल रही है। दरअसल अयोध्या में निर्मित प्रभु श्रीराम मंदिर एक राष्ट्र मंदिर के रूप में विकसित हुआ है, जिसके चलते न केवल भारत के नागरिक बल्कि अन्य देशों में सनातन संस्कृति का पालन करने वाले नागरिक भी भारी संख्या में प्रभु श्रीराम के दर्शन करने हेतु अयोध्या आएंगे। इससे, भारत में धार्मिक पर्यटन नई ऊंचाईयों को छूने जा रहा है। एक अनुमान के अनुसार प्रतिदिन एक लाख से अधिक श्रद्धालु प्रभु श्रीराम के दर्शत हेतु अयोध्या पहुंचेगे। यह संख्या शीघ्र ही 3 लाख श्रद्धालु प्रतिदिन हो सकती है। यदि ऐसा होता है तो प्रतिवर्ष 10 करोड़ से अधिक श्रद्धालु अयोध्या पहुंचेंगे। अयोध्या पहुंचा प्रत्येक श्रद्धालु यदि 2500 रुपए भी खर्च करता है तो केवल अयोध्या की स्थानीय अर्थव्यवस्था में 25000 करोड़ रुपए शामिल होंगे। यह श्रद्धालु अयोध्या जाते हुए वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर एवं मथुरा में बांके बिहारी मंदिर आदि में भी दर्शन हेतु अवश्य जाएंगे। इस प्रकार, वाराणसी एवं मथुरा की स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी बल मिलेगा। कुल मिलाकर उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था को प्रतिवर्ष लगभग एक लाख करोड़ रुपए की अतिरिक्त खुराक प्रत्यक्ष रूप से मिल सकती है। इस प्रत्यक्ष खुराक का स्थानीय अर्थव्यवस्था पर लगभग 5 गुना चक्रीय असर भी हो सकता है जो अंततः भारत के आर्थिक विकास में ही जुड़ने जा रहा है। धार्मिक पर्यटन से यातायात, होटेल, स्थानीय स्तर पर निर्मित विभिन्न उत्पादों जैसे क्षेत्रों में रोजगार के लाखों नए अवसर निर्मित होते हैं। इससे भी स्थानीय अर्थव्यवस्था को बल मिलता है। विश्व में कई देशों यथा, स्विजरलैंड, इटली, फ्रान्स, अमेरिका, युएई, आदि ने पर्यटन के बलबूते पर अतुलनीय आर्थिक विकास किया है एवं अपनी अर्थव्यवस्था को विकसित श्रेणी की अर्थव्यवस्था बना दिया है। इसी प्रकार अब अयोध्या में प्रभु श्रीराम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के पश्चात अब भारत भी इस श्रेणी के देशों में शामिल होने जा रहा है और भारतीय अर्थव्यवस्था में विकास की दर 10 प्रतिशत के पार जा सकती है।
प्रहलाद सबनानी
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