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बेचैन है बंगाल की धरती

दिल्ली की मॉल संस्कृति से परे अपने बंगाल दौरे में हमने बंगाल की हरियाली, खनिज संपदा, संस्कृति, आपसी संवाद, प्रकृति से सहकार और साइंस सिटी में विज्ञान के अद्भुत आयाम देखना अधिक पसंद किया। बंगाल अब कहीँ से भी पिछड़ा और गरीब प्रदेश नहीँ है। देश दुनिया के साथ तेजी से कदमताल करने को आतुर भव्य रूप लेता यह प्रदेश अब देश को नेतृत्व देने के लिए ममता के हाथों से भी निकलने को बेचैन हो उठा है और दूरद्रष्टा नेतृत्व की तलाश में बेचैन है। शालीन और बेफिक्र जीवन के शौकीन बंगालियों ने बंगाली संस्कृति को बड़ी शिद्दत से सहेजकर रखा हुआ है। इसी कारण कलकत्ता या फिर समुद्र तटों पर भी कहीँ भी फूहड़ता और अश्लीलता नजऱ नहीँ आयी। प्रदूषण मुक्त व्यवस्था और सफाई बंगाल विशेषकर कलकत्ता की पहचान बन रही है और यातायात नियंत्रण और अनुशासन भी। लोग ममता की मुस्लिमपरस्ती और हर काम में कमीशन लेने की आदत से तंग आ चुके हैं। विश्लेषको का मानना है कि बंगालियों की रीढ़ नहीँ होती यानि वो लचीले होते हैं इसीलिए वे मुगल, अंग्रेजो,वामपंथियों और अब ममता को झेल रहे हैं और अपने व्यक्तिगत प्रयासों से बंगाल को बेहतर बना रहे हैं। एक अच्छा राजनीतिक विकल्प शायद उनके दबे गुस्से को आक्रोश में बदल दे। चलिए उस विकल्प के निर्माण को उद्दत हों हम आप।
संपादक

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