हर चुनाव में नेताओं से ज्यादा EVM की इज्जत दांव पर लगी होती है. हर जीत EVM की कारीगरी बताई जाती है. लोकतंत्र की जीत को EVM की जीत बताया जाता है. EVM को बदनाम किया जाता है. चुनाव दर चुनाव EVM पर परिपक्वता बढ़ने की बजाय शंका और अविश्वास बढ़ाया जाता है. लोकसभा चुनाव में तो लगभग सभी विपक्षी दलों ने बैलेट पेपर की पद्धति से चुनाव कराने की मंशा जाहिर की. कई बड़े नेताओं ने तो इतनी संख्या में निर्दलीय प्रत्याशी उतारने तक की जुगाड़ लगाई, ताकि EVM मशीन की तकनीकी क्षमता समाप्त हो जाए और चुनाव बैलेट पेपर पर हो जाए. देश में शंका का ऐसा वातावरण बनाया गया, कि जैसे EVM के जरिए चुनाव परिणामों को मैनेज किया जाता है. सर्वोच्च न्यायालय में बैलेट पेपर से मतदान के मांग की याचिका डाली गई. EVM और VVPAT पर्चियां का शत प्रतिशत मिलान करने की याचिकाएं पेश की गईं. सर्वोच्च न्यायालय ने बारीकी से EVM की शुद्धता और निष्पक्षता जांचकर फैसला दिया कि चुनाव EVM से ही कराए जाएंगे. कुल मतदान का रेंडम 5% VVPAT से मिलान की व्यवस्था जारी रहेगी. बैलेट पेपर पर मतदान कराने से सर्वोच्च अदालत ने इनकार कर दिया. भारत में सर्वाधिक भरोसा अदालतों पर ही रहा है. जब भी ऐसे मामले सामने आते हैं, जब भारत के संविधान, लोकतंत्र और संवैधानिक प्रक्रिया पर शंका खड़ी की जाती है, तब अंततः सर्वोच्च न्यायालय ही अंतिम फैसला देता है. EVM के मामले में भी सर्वोच्च न्यायालय का फैसला न केवल EVM की बदनामी रोकेगा, बल्कि चुनाव की प्रक्रिया को निष्पक्ष साबित करेगा. सर्वोच्च अदालत के फैसले पर जो प्रतिक्रियाएं आ रही हैं, उसमें भाजपा जहां इसका खुलकर स्वागत कर रही है. वहीं कांग्रेस और दूसरे दलों की ओर से निर्णय स्वीकारते हुए सवाल भी खड़े किए जा रहे हैं. पीएम नरेंद्र मोदी ने EVM पर आए निर्णय को लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत बताया. उन्होंने कहा कि बैलेट पेपर पर वोटिंग के पुराने दिन अब वापस नहीं आएंगे. बैलेट पेपर की लूट की जाती थी. बैलेट पेपर लूट के ज़रिए लोकतंत्र को हथियाने के सपने अब पूरे नहीं होंगे. EVM के जरिए अब गरीबों की लोकतंत्र में भागीदारी मजबूत हुई है. अभी तक तो ऐसा माहौल बनाया गया था, कि EVM के भरोसे ही इस बार 400 पार का नारा दिया गया है. खुद की ताकत का अंदाजा लगाने की बजाय अंपायर पर ही सवाल खड़े करना राजनीति की पुरानी आदत रही है. ऐसा नहीं है, कि वर्तमान में हारने वाली कांग्रेस ही EVM पर सवाल खड़े कर रही है. इसके पहले बीजेपी की ओर से भी इस पर सवाल खड़े किए गए थे. EVM पर सवाल राजनीतिक दलों की कमजोर तैयारी का एक्सरे है. जब चुनाव प्रक्रिया को ही शंका के दायरे में लाया जाता है, तब लोगों में भी अविश्वास बढ़ता है. मतदान का घटता प्रतिशत लोकतंत्र में सबसे बड़ी चिंता का विषय है. लोकसभा के फर्स्ट फेज में मतदान प्रतिशत कम रहा है. दूसरे चरण के मतदान में यह प्रतिशत बढ़ता हुआ दिखाई पड़ रहा है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद लोगों में चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता और शुद्धता पर विश्वास मजबूत होगा और अधिक से अधिक मताधिकार का उपयोग किया जा सकेगा. सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय चुनाव आयोग की विश्वसनीयता के लिए भी महत्वपूर्ण कदम साबित होगा. अभी तो राजनीतिक दलों का फैशन बना हुआ है, कि चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल खड़े करो. सरकारी पक्ष के प्रति उसका झुकाव स्थापित करो और अपनी राजनीतिक कमजोरी को निर्वाचन प्रक्रिया पर डालकर हार की हताशा से उबरने का मार्ग तलाशो. देश में EVM के जरिए निर्वाचन प्रक्रिया की शुरुआत कांग्रेस की सरकार द्वारा ही की गई थी. इसकी शुद्धता पर जब-जब सवाल उठाए गए थे, तब-तब चुनाव आयोग ने सार्वजनिक रूप से यह चुनौती दी थी, कि कोई भी इसमें गड़बड़ी साबित कर दे. कोई भी दल ऐसा कर नहीं सका. लेकिन EVM को बदनाम करने से पीछे भी नहीं हटे थे. अब सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद शायद EVM पर राजनीतिक आरोप अपनी विश्वसनीयता पूरी तौर से खो देंगे. दशकों पहले भारत में हुए राजनीतिक उलट के बाद भाजपा तीसरी बार सरकार बनाने के लिए इस बार 400 पार के टारगेट के साथ चुनाव मैदान में है. मजबूत नेता, स्थिर सरकार हिंदुत्व, राष्ट्रवाद की नीतियों और सबका साथ सबका विकास की उपलब्धियों के साथ बीजेपी चुनाव अभियान में आगे दिखाई पड़ रही है. कांग्रेस और उसके सहयोगियों द्वारा इस लोकसभा चुनाव को संविधान और लोकतंत्र को बचाने का चुनाव बताया जा रहा है. सरकारी नौकरियों में आरक्षण पर भी ख़तरे का भयपूर्ण वातावरण बनाया जा रहा है. भारत में सर्वोच्च न्यायालय हमेशा संविधान लोकतंत्र और समानता के लिए आरक्षण की नीतियों का संरक्षण करता रहा है. जब-जब संविधान पर कोई आंच आई है. सर्वोच्च अदालत मुखरता के साथ लोकतंत्र की रक्षा में आगे आया है. आरक्षण के मामले में भी बार-बार सवाल उठते हैं, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने संवैधानिक प्रावधानों को लागू करने में हमेशा महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. इस चुनाव में संविधान खतरे में बताया जा रहा है. जिस तरह की शंका EVM की निष्पक्षता पर पैदा की जा रही है, उसी प्रकार की निर्मूल शंका संविधान, लोकतंत्र और आरक्षण पर लेकर बीजेपी के खिलाफ पैदा की जा रही है. कोई भी राजनीतिक दल या कोई भी सरकार भारत की सर्वोच्च अदालतकी संवैधानिक कसौटी पर कसे गए बिना क्या संविधान में कोई बदलाव कर सकती है? इलेक्टोरल बॉन्ड के मामले में अभी कुछ समय पहले ही सर्वोच्च न्यायालय में सरकार की इस नीति को असंवैधानिक घोषित किया है. सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय के आधार पर हासिल सूचनाओं को राहुल गांधी और विपक्ष के सारे नेता चुनाव में मुद्दा बना रहे हैं. बीजेपी ने इलेक्टोरल बॉन्ड का कानून बनाया तो था, लेकिन क्या वह सुप्रीम कोर्ट की नजर से बच पाया है. सर्वोच्च अदालत में इस कानून को भी असंवैधानिक घोषित कर दिया है. जब भारत में इतनी सशक्त अदालतें मौजूद हैं, तो फिर संविधान और लोकतंत्र के प्रति खतरे का डर चुनाव में दिखाना राजनीतिक दल की कमजोरी ही दिखाई पड़ेगी. मज़हब के आधार पर आरक्षण भी इस लोकसभा चुनाव में मुद्दा बना हुआ है. कांग्रेस की कर्नाटक सरकार द्वारा ओबीसी के कोटे में मुस्लिम जातियों को शामिल कर आरक्षण की हिस्सेदारी का मुद्दा भी तेजी से उठा है. मज़हब के आधार पर आरक्षण अभी तक तो सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रोक के कारण लागू नहीं हो सका है. अब ओबीसी लिस्ट में मुसलमानों को शामिल कर आरक्षण देने की राजनीतिक कुदृष्टि पर भी न्यायिक समीक्षा निश्चित होगी. जो नेता और राजनीतिक दल संविधान, लोकतंत्र और आरक्षण को खतरे में बताकर राजनीतिक बहुमत पाना चाहते हैं, उन्हें भारत की सर्वोच्च अदालत में अपने डर को दूर करने के लिए जरूर जाना चाहिए. जिन नेताओं की खुद की ताकत कमजोर हो गई है, वह संविधान और लोकतंत्र के खतरे से नहीं घबराए हुए हैं, बल्कि ऐसे नेता खुद से घबराए हुए हैं. खुद की घबराहट, फरेबी मुद्दों, मज़हबी वादों, विदेशी एक्सरे, विदेशी सुझावों से कभी भी दूर नहीं होती है. खुद की घबराहट आत्मबल से दूर होती है. आत्म बल के लिए पहले खुद को समझना होगा. अपनी नियति को समझना होगा. अपने देश को समझना होगा. अपने साथियों सहयोगियों और देश के लोगों को समझना होगा. अन्याय-अन्याय चिल्लाने से न्याय नहीं होता. न्याय के लिए अदालतें काम करती हैं खुद न्याय का देवता बनने की प्रवृत्ति अहंकार की प्रवृत्ति होती है. EVM अब बदनाम नहीं होगी. हार की हताशा का ठीकरा EVM पर नहीं फोड़ा जाएगा. सर्वोच्च अदालत के फैसले का सम्मान करते हुए EVM और चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता का सम्मान किया जाएगा. संविधान, लोकतंत्र और आरक्षण पर राजनीतिक भयादोहन की बजाय इसके संरक्षण के लिए संविधान पर भरोसा करना भी संविधान की रक्षा ही होगी.