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राहुल गांधी का कद भी बढ़ा एवं राजनीतिक कौशल भी

– ललित गर्ग –
राहुल गांधी लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता बन गये हैं, यह उनका पहला संवैधानिक पद है, इससे पहले वे कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे हैं। इस बड़े पद के साथ उनकी जिम्मेदारियां भी बढ़ जायेंगी। दस वर्षों बाद लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता का पद मिला है। वैसे इस बार के चुनाव एवं चुनाव में मिली शानदार जीत के बाद राहुल गांधी का न केवल आत्मविश्वास बढ़ा है, बल्कि उनमें राजनीतिक कौशल एवं परिपक्वता भी देखने को मिल रही है, इससे यह प्रतीत होता है कि वे प्रतिपक्ष नेता के पद के साथ न्याय करते हुए अपनी राजनीति को चमकायेंगे एवं रसातल में जा चुकी कांग्रेस को सुदृढ़ करेंगे। वैसे देखा गया है कि प्रतिपक्ष के नेता बनने वाले अधिकांश लोग प्रधानमंत्री तक पहुंचे हैं। लेकिन राहुल गांधी को इसके लिये अभी लम्बा संघर्ष करना होगा, परिपक्व राजनीति एवं देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी को साबित करना होगा। निश्चित ही राहुल गांधी का कद बढ़ा है और अब वे स्वल्प समय में ही कद्दावर नेता की तरह राजनीति करने लगे हैं। राहुल कोे देशभर में निकाली यात्राओं एवं चुनाव प्रचार में निभाई सशक्त भूमिका ने मजबूती दी है। राहुल की राजनीति को चमकाने में कन्याकुमारी से कश्मीर तक की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के अलावा मणिपुर से मुंबई तक की ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। अब प्रतिनेता के रूप में उनकी एक नई यात्रा शुरु हो रही है जो उन्हें नई राजनीतिक ऊंचाई दे सकती है।  
देश को 10 साल बाद राहुल गांधी के रूप में विपक्ष का नेता मिला है, जो संसदीय राजनीति के लिए एक अच्छी खबर है। इससे लोकतंत्र को मजबूती मिलेगी एवं जनता की आवाज को जोरदार तरीके से उठाने एवं सरकार की नीतियों-योजनाओं पर तीखी नजर रखने एवं प्रभावी सवाल उठाने की स्थितियों को बल मिलेगा। लेकिन विपक्ष की नुमाइंदगी का मतलब यह नहीं कि वह हर मामले में सत्ता पक्ष के खिलाफ हो, बल्कि यह है कि वह हमेशा जनता के साथ हो और उसकी ओर से मुद्दे उठाए। नेता प्रतिपक्ष पद से सरकार के साथ ही विपक्ष पर भी जवाबदेही का दबाव बढ़ता है। राहुल की सुविधाएं बढ़ने के साथ जिम्मेदारियां भी बढ़ गयी है। 16वीं और 17वीं लोकसभा में कांग्रेस या अन्य विपक्षी दलों के पास इस पद के लिए आवश्यक 10 प्रतिशत सदस्य नहीं थे। कांग्रेस ने इस बार लोकसभा चुनाव में 99 सीट जीतकर इस पद को हासिल किया है। नेता प्रतिपक्ष के तौर पर राहुल गांधी केंद्रीय सतर्कता आयोग, केंद्रीय सूचना आयोग और राष्ट्रीय मानवाधिकार से जुड़े चयन के अलावा लोकपाल, मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों, केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) निदेशक जैसी प्रमुख नियुक्तियों पर महत्वपूर्ण पैनल के सदस्य भी होंगे। प्रधानमंत्री इन पैनल के प्रमुख होते हैं। नेता प्रतिपक्ष के रूप में राहुल गांधी को लोकसभा में पहली पंक्ति में सीट मिलेगी। यह सीट डिप्टी स्पीकर की सीट के बगल वाली होगी। इसके अलावा संसद भवन में सचिवीय तथा अन्य सुविधाओं से युक्त एक कमरा भी मिलेगा। विपक्ष के नेता को औपचारिक अवसरों पर कुछ विशेषाधिकार भी प्राप्त होते हैं। एक केन्द्रीय मंत्री को मिलने वाली सभी सुविधाएं राहुल गांधी को मिलेगी।
राहुल गांधी इस बार उत्तर प्रदेश के रायबरेली लोकसभा क्षेत्र से निर्वाचित हुए हैं। इससे पहले वह लोकसभा में केरल के वायनाड और उत्तर प्रदेश के अमेठी का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। वह पांचवीं बार लोकसभा पहुंचे हैं। इस बार के लोकसभा चुनाव ने कांग्रेस पार्टी को पुनर्जीवन दिया है। इस बार के चुनाव परिणाम ने कांग्रेस एवं उसके नेता राहुल को मनोवैज्ञानिक लाभ पहुंचाया है, जो उनके लिए एक बड़ी उपलब्धि बनी है। इससे कांग्रेस ने अपना आत्मविश्वास फिर से पा लिया है, जो कोई छोटी बात नहीं। और यह राहुल और प्रियंका गांधी की गतिविधियों में साफ झलकता है। साथ ही, अब इस बात को लेकर भी कांग्रेस में कोई दुविधा नहीं रह गई है कि गांधी परिवार ही सर्वाेच्च है और पार्टी पर उसका पूरा नियंत्रण होगा। इसका यह भी मतलब है कि टीम-राहुल का सभी मामलों में फैसला अंतिम होगा।
पार्टी अध्यक्ष पद छोड़ने के बाद से राहुल के पास कांग्रेस की कोई जिम्मेदारी नहीं थी। सदन के भीतर पहली बार वह कोई पद संभालने जा रहे हैं। ऐसे में राहुल के सामने चुनौती होगी कि वह किस तरह पूरे विपक्ष को साथ लेकर चलते हुए रचनात्मक विरोध की भूमिका को आकार देते हैं। कांग्रेस का सबसे बड़ा काम दलित और पिछड़े मतदाताओं ने यूपी में जो उनकी मदद की है, उनका विश्वास बनाए रखने का है। यह बड़ी सचाई है कि आज भी देश के महत्त्व के राज्यों में भाजपा को क्षेत्रीय दल शिकस्त दे रहे हैं। अगर क्षेत्रीय दलों के साथ कांग्रेस का गठजोड़ बना रहे, तो ही भाजपा पर दबाव आएगा। बड़ा सच यह भी है कि न भाजपा बदली है ना उसकी विचारधारा। भाजपा एवं नरेन्द्र मोदी को भले ही चुनावों में पूर्ण बहुमत न मिला हो, लेकिन वह ही आज ताकतवर है। यह भी समझना होगा कि भाजपा विपक्ष की ताकत से नहीं, बल्कि सरकार की बड़ी गलतियों एवं पार्टी के अति उत्साह सेे नुकसान में पहुंची है।
यह भी एक तथ्य है कि मुस्लिमों के सक्रिय-समर्थन के बिना कांग्रेस को कामयाबी नहीं मिल सकती थी। निश्चित ही मुसलमानों के वोट की अहमियत कुछ-कुछ सीटों पर हार-जीत का फैसला कर गई है। भाजपा अपनी आगे की रणनीति इसी आधार पर बनाएगी और वो पिछले चुनावों के जैसी ही होगी। मतलब कि भाजपा कोई नई भाषा नहीं बोलने वाली है। वह आरोप लगाती रहेगी कि कांग्रेस अल्पसंख्यकों का तुष्टीकरण करती है। कांग्रेस के सामने चुनौती होगी कि वो इस आरोप को अपने पर आने न दे, ताकि भाजपा हिंदुओं के हितों की एकमात्र रक्षक है, ऐसा दावा ना कर सके। कांग्रेस को इस हिंदू-मुस्लिम राजनीतिक बवंडर से बचने के लिये अपनी रणनीति को बनाना होगा। बिना हिन्दू वोट के कांग्रेस सफल राजनीतिक पारी नहीं खेल सकती है। इसके साथ ही कांग्रेस को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व की सफलता और निष्फलता का सही आकलन कर लेना जरूरी है। जनता के समक्ष अपना आत्मविश्वास बढ़ाए रखना अच्छी बात है, लेकिन मोदी आज जिस जमीन पर खड़े हैं, जनता के बीच उनकी जो स्वीकार्यता है उसका सही आकलन करना कांग्रेस की आगे की रणनीति के लिए बेहद जरूरी होगा।
राहुल गांधी सदन में विपक्ष की मजबूत आवाज बनकर उभरेंगे, इसमें सन्देह नहीं है। पक्ष एवं विपक्ष के बीच एक संतुलन बनना लोकतंत्र की खूबसूरती है एव ंअपेक्षा भी है। नेता प्रतिपक्ष के रूप में विपक्ष के नेता की प्रमुख भूमिकाओं में से एक सरकार की नीतियों पर ‘प्रभावी’ सवाल उठाना है। विपक्ष के नेता की भूमिका वास्तव में बहुत चुनौतीपूर्ण होती है क्योंकि उसे सरकार की विधायिका और जनता के प्रति जवाबदेही सुनिश्चित करनी होती है। नेता प्रतिपक्ष के रूप में उन्हें सरकारी प्रस्तावों-नीतियों के विकल्प प्रस्तुत करने होते हैं। निश्चित तौर पर आने वाले दिनों में राहुल गांधी के नेतृत्व में विपक्ष अलग एवं ऊंचे स्तर पर अपने तेवर दिखा सकता है। सरकार के लिए कोई भी बिल पास कराना अब इतना आसान नहीं होगा। मोदी की स्थिर सरकार देने की जद्दोजहद के बीच मोदी और राहुल के बीच की टकराव की संभावनाओं को नकारा नहीं जा सकता है, लेकिन बावजूद इसके सदन में सकारात्मक वातावरण बना रहना भी जरूरी है। स्थिर सरकार देश की बड़ी जरूरत है, राजनेताओं से उम्मीद की जाती है कि एक बार जनादेश आने के बाद वे चुनावी दौर की कड़वाहट एवं आरोप-प्रत्यारोप की छिछालेदार राजनीति को भुलाते हुए जनता के हित में मिलकर काम करें। इस बार भी चुनाव में अपनी-अपनी पार्टियों के प्रचार की अगुआई करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी ने एक-दूसरे पर खूब हमले बोले हैं। अब उन बातों को पीछे छोड़ते हुए उन्हें बेहतर तालमेल वाले कामकाजी रिश्ते कायम करते हुए देशहित को सामने रखना होगा। राजनीतिक मतभेदों से ऊपर उठना होगा। 

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