अनुज अग्रवाल, निदेशक करियर प्लस
मैं पिछले 27 सालों करियर प्लस कोचिंग के माध्यम से सिविल सेवाओं की कोचिंग से जुड़ा हूँ। हज़ारों विद्यार्थी मेरी संस्था करियर प्लस से जुड़कर सिविल, इंजीनियरिंग सेवा, वन सेवा और राज्य सेवाओं की परीक्षाओं में न केवल सफल हुए बल्कि टॉपर्स भी रहे। हमारे विधार्थी और अध्यापकों में दृष्टि कोचिंग के निदेशक विकास दिव्यकीर्ति और मेड ईज़ी व नेक्स्ट आईएएस के निदेशक बी सिंह भी रहे हैं।
आज जब तथाकथित बड़े कोचिंग संस्थानों के बड़े बड़े हॉल में ठूँसे हुए पाँच सात सौ या हज़ार बच्चों को एक साथ पढ़ते व पढ़ाते देखता हूँ तो मुझे इन कोचिंग संस्थाओं की मार्केटिंग की प्रशंसा करने पर मजबूर होना पड़ता है किंतु उसके साथ ही इनमें पढ़ रहे विद्यार्थियों की बौद्धिक क्षमता पर शंका होने लगती है।
१) प्रशासनिक सेवाओं की तैयारी करने वाले विद्यार्थी अगर मार्केट गिमिक का शिकार हो जाए तो हम कैसे उसको सिविल सेवा के योग्य मान सकते हैं?
२) जो विद्यार्थी कक्षा में प्रश्न ही नहीं पूछ सकता , अपने नोट्स चेक नहीं करवा सकता और एक जैसे नोट्स से पढ़ता हो उसका बौद्धिक विकास , विश्लेषणात्मक बुद्धि एवं तार्किक क्षमता कैसे विकसित होगी ?
३) कुछेक शिक्षक जो तथाकथित ब्रांड बन गए हैं वे जब एक जैसी सोच एवं एप्रोच से हज़ारों विद्यार्थियों को पढ़ायेंगे और वही विद्यार्थी परीक्षा में लिखकर आएगा तो उसको एक्ज़ामिनर क्यों और कैसे नंबर देगा क्योंकि यूपीएससी तो मौलिक सोच एवं विशिष्ट लेखन शैली पर मार्क्स देती है।
४) जो विद्यार्थी अपने हितों की रक्षा करना नहीं जानता हो और अपनी कोचिंग के सुरक्षा मापदंडों, कक्षा में विद्यार्थियों की अधिकतम क्षमता , अध्यापक की योग्यता , ली जानी वाली फ़ीस की न्यायोचितता, अध्ययन सामग्री , हॉस्टल, पीज़ी, लाइब्रेरी, भोजन आदि की गुणवत्ता को भी नहीं समझ सकता हो वह कैसे अच्छा प्रशासक बन सकता है और यूपीएससी उसको क्यों चयनित करेगी ?
५) आप अपने गाँव, क़स्बे व शहर से आते हैं और भ्रामक विज्ञापनों से प्रभावित होकर और कोचिंग संस्था में प्रवेश ले लेते हैं। आप यह भी नहीं देखते कि विज्ञापन में किए गए चयन के दावे कितने सच्चे हैं। किसी भी कोचिंग में प्रवेश लेने से पहले छ माह से एक वर्ष तक स्वयं अध्ययन करना होता है और उसके बाद ही जिन जिन विषयों में आप कमजोर होते हैं उसमें कोचिंग करनी होती है । प्रवेश पढ़ रहे विद्यार्थियों से फीडबैक लेकर लेना चाहिए। यह भी याद रखना होता है कि कोचिंग सीढ़ी होती है मंज़िल नहीं।
अगर आप अपनी सोच भी वही है जैसे कि बाबाओं की कथाओं में भीड़ लगाने वाले या पूजा स्थलों पर धक्का मुक्की में लग दर्शन करने वाले अथवा मेलों, पर्यटन स्थलों, ट्रेनों और जुलूसों – रैलियाँ में इकट्ठा होने वाले लोगों की , तो आपका सिविल सेवा में चयन होना मुश्किल है।
भीड़ से अलग अपनी पहचान बनाना सीखिए। एकांत और पुस्तकों से दोस्ती कीजिए। कोचिंग, मेंटर, पुस्तकें, स्टडी मैटेरियल, टेस्ट सीरिज़ आदि हथियार हो सकते है आपके युद्ध के बशर्ते आपको इनको चलाना आता हो। क्योकि अंततः चयन आपका होना है। अन्यथा इस चक्रव्यूह में कदापि नहीं फँसिए।
आपका
अनुज अग्रवाल
निदेशक, करियर प्लस
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