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इन्हें तो कठोर सजा दीजिए

राकेश दुबे

इन्हें तो कठोर सजा दीजिए

निश्चित ही उन लोगों को कठोर सजा मिलना चाहिए। जिनकी लापरवाही से किसानों के खून-पसीने से उपजी और कर दाता के धन से खरीदी गई लाखों टन उपज बर्बाद हो गई। सोचिए जिस देश में करोड़ों लोग कुपोषण व खाद्यान्न की किल्लत से जूझ रहे हों, उसके सिर्फ एक राज्य में ही, चार साल में 8191 मीट्रिक टन अनाज सड़ जाए, इससे ज्यादा शर्मनाक कुछ नहीं हो सकता।

हमारा गैर-जिम्मेदार तंत्र व अदूरदर्शी नेतृत्व इसकी जवाबदेही से बच नहीं सकता। ये लापरवाही की अंतहीन शृंखला की दुर्भाग्यपूर्ण परिणति है। किसानों के खून-पसीने से उपजी और कर दाता के धन से खरीदी गई लाखों टन उपज का यूं बर्बाद होना बताता है कि हमारे तंत्र में प्रबंधन से जुड़े अधिकारी कितने संवेदनहीन और गैर-जिम्मेदार हैं। चिंता की बात यह है कि पंजाब में साल-दर-साल बर्बाद होने वाले अनाज की मात्रा लगातार बढ़ती ही जा रही है। यानी इस संकट को अधिकारी गंभीरता से नहीं ले रहे हैं।

चिंता की बात यह कि जहां वर्ष 2022-23 में जहां करीब 264 मीट्रिक टन अनाज खराब हुआ था, वहीं वर्ष 2023-24 में यह आंकड़ा 29 गुना बढ़ गया बताया जाता है। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार यह आंकड़ा बढ़कर 7764 मीट्रिक टन हो गया बताया जाता है। जिस देश में तमाम लोग कुपोषण व भुखमरी का दंश झेलते हों, वहां ये आंकड़े शर्मशार करने वाले ही हैं।

एक आकलन के अनुसार इस बर्बाद हुए अनाज से सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत सोलह लाख लोगों का पेट भरा जा सकता था। बताया जाता है कि खाद्यान्न की बर्बादी के इस आंकड़े का उल्लेख उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय की रिपोर्ट में किया गया है। निश्चित रूप से साल-दर-साल बढ़ती अन्न की बर्बादी हमारी लचर भंडारण क्षमता पर सवाल खड़े करती है।

हरित क्रांति की सफलता का पंजाब को भरपूर लाभ मिला। किसानों ने भी पूरे मनोयोग से कंधा से कंधा लगाकर सहयोग दिया। तत्कालीन सत्ताधीशों की सजगता व सक्रियता से यह क्रांति परवान चढ़ी। कालांतर में धरती सोना उगलने लगी। देश की खाद्य शृंखला को मजबूत बनाने में पंजाब के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। राज्य के सत्ताधीशों ने इस बहुमूल्य खाद्यान्न को सहेजने में दूरदर्शिता नहीं दिखाई। यदि सरकार समय रहते बड़े पैमाने पर अनाज के गोदाम बनाती तो आज ये संकट पैदा नहीं होता। भंडारण संकट के चलते ही किसान भी फसल की कटाई के बाद तुरंत फसल बेचने मंडियों की तरफ दौड़ता है। जिसके चलते बिचौलिए व आढ़ती औने-पौने दाम पर किसानों को फसल बेचने के लिये मजबूर कर देते हैं। जिससे किसान को उसकी उपज का वाजिब दाम नहीं मिल पाता। किसान आज जो कई तरह के संकट उचित दाम न मिल पाने के कारण झेल रहा है, उसके मूल में भी अनाज भंडार व्यवस्था की खामियां भी हैं।

॰ पंजाब में अनाज भंडार का जिम्मा संभालने वाले राज्य तंत्र तथा फूड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया के लापरवाह अधिकारियों की इस आपराधिक लापरवाही की जवाबदेही तय करने की सख्त जरूरत है। दरअसल, सख्त कार्रवाई के अभाव में अधिकारी अपने गंभीर दायित्व के प्रति भी उदासीन बने रहते हैं। उन्हें विश्वास रहता है कि छोटी-मोटी कार्रवाई के बाद भी साफ बच जाएंगे। निस्संदेह, अनाज की बर्बादी पर शून्य सहिष्णुता की नीति अपनानी होगी।

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