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संघ व भाजपा की मजबूतियों को नजरअंदाज करना राजनैतिक व रणनीतिक मूर्खता ही है :

विवेक उमराव सामाजिक यायावर
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संघ अपने व्यापक व प्रतिबद्ध जमीनी सांगठनिक ढांचे माध्यम से भारत देश के चिंदी-चिंदी कोनों में भी पहुंचता है।

संघ आपदाओं में राहत व पुनर्वास के कामों के साथ लोगों के बीच पहुंचता है, लोगों के दुख-दर्द का साथी बनता है।

संघ के लोग पूरे वर्ष 24 घंटे अपने प्रचारकों, कार्यवाहों व कार्यकर्ताओं के माध्यम से लोगों के साथ सीधे संपर्क में रहता है।

संघ दशकों से प्राथमिक शिक्षा के लिए काम कर रहा है। प्रतिवर्ष सैकड़ों जिलों के हजारों बच्चों की प्राथमिक शिक्षा की परवरिश करता आया है। ये बच्चे बड़े होने पर सड़क में साधारण सी दुकान लगाने से लेकर, गुंडे-मवाली, व्यापारी, सरकारी अधिकारियों, यूनिवर्सटीज में प्रोफेसर व मैसाच्य़ुसेट्स से तकनीक में PhD या पोस्ट डाक्टरेट इत्यादि तक कुछ भी हो सकते हैं।

प्रातः कालीन शाखाओं के माध्यम से प्रौढ़ों व सायंकालीन शाखाओं के माध्यम से किशोरों व युवाओं के साथ लगातार संपर्क व नेटवर्क में बने रहना होता ही है।

संघ की सबसे बड़ी मजबूती यह है कि यह व्यापक होते हुए भी केंद्रीय ढांचे से नियंत्रित होता है। किसी भी नीति को एक झटके में बिना किसी विरोध व विद्रोह के बिलकुल नीचे तक व्यापकता के साथ बदला जा सकता है।

अपनी राजनीतिक ईकाईयों के संदर्भ में संघ सीखते हुए, गलतियों से सबक लेते हुए आगे बढ़ता है। जनसंघ बनाया, एक झटके में जनसंघ खतम करके भाजपा बनाया।

भाजपा की सरकार बनाई, फिर नहीं रही। सबक लिया, रणनीतियों में परिवर्तन किया। फिर से भाजपा की सरकारें बनवाईं, भरपूर मजबूती से बनवाईं।

संघ एजेंडे पर चलता है। व्यापक, सूक्ष्म व लंबी दूरी के लक्ष्य तय करता है। भारत के जनमानस के मनोविज्ञान का विशेषज्ञ है।

इन जैसी अनेक गंभीर मजबूतियों को नजरअंदाज करते हुए केवल यह मानना कि भाजपा फेसबुक, सोशल साइट्स, व्हाट्सअप व EVM-झोल झपाटे इत्यादि के कारण सत्ता में आती है तो यह शुद्ध परले दर्जे की मूर्खता है।

जब संघ के पास कुछ नहीं था तब संघ इतना आगे तक चलता आ गया। अब तो संघ के पास सत्ताएं हैं, उद्योगपति हैं, मीडिया है, सोशल मीडिया है, संसाधन है।

यदि आप यह सोचते हैं कि अंधे के हाथ बटेर लगने जैसे एक आध बार सत्ता पा जाने से समाज में कोई मूलभूत बदलाव कर लेंगें तो यह आपकी समझ का सन्निपात है।


चलते – चलते :

दो चार दिन खटिया पर चर्चा करके, एक-आध दिन साइकिल चला कर या ऐसा ही कुछ-कुछ करके, क्या सच में ही लंबी दूरी के लिए भाजपा का विकल्प बना जा सकता है।

वह भी तब जब सत्ता प्राप्ति के चक्कर में राजनैतिक दल व उनके लोगों को यही लगता है कि सोशल मीडिया में बरगलाने, बहकाने से सत्ता मिलती है। रणनीतियां जमीनी कामों की बजाय मीडिया व सोशल मीडिया में बरगलाने बहकाने की रणनीतियों में जबरदस्त ऊर्जा लगाई जा रही है।

राजनैतिक दलों की सतही गतिविधियों को छोड़िए। गैर-राजनैतिक लोगों में एक से बढ़कर एक स्वतंत्र ज्ञानी व कर्मठ लोग तैयार होते जा रहे हैं जिन्होंने जीवन में जमीन पर छटाक काम न किया होगा, भारतीय समाज की धेला भर समझ नहीं होगी लेकिन फेसबुक जैसी साइटों में धुआंधार क्रांति करते हैं, समाज परिवर्तन करते हैं। इनमें से अधिकतर मेट्रो या बड़े शहरों में अच्छी नौकरी या व्यापार करते हैं, आराम का सुरक्षित जीवन जीते हैं।

समाधान की धेला भर समझ नहीं, समाधान के लिए कोई गंभीर प्रयास नहीं, समाज के लिए गंभीर प्रतिबद्धता नही। गरियाना ही कर्मठता, क्रांतिकारिता, परिवर्तन, महानता, योग्यता, समझदारी इत्यादि सबकुछ है।

यदि राजनैतिक सत्ताएं खोखली हैं, धार्मिक लोग खोखले हैं, राजनैतिक दल खोखला हैं, सरकारें खोखली हैं … तो आप कौन से तुर्मखां हैं, आप भी तो खोखले हैं, आप भी तो वैसे ही हैं।

चूतियापे से यदि समाज व देश का कल्याण होता हो, विकास होता हो, समाधान मिलता हो तो कर लीजिए।

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विवेक उमराव सामाजिक यायावर
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