डॉ. वेदप्रताप वैदिक
लालूप्रसाद यादव और उसके परिवार के सदस्यों के यहां जो छापे पड़ रहे हैं, वे निश्चित रुप से राजनीति की वजह से पड़ रहे होंगे, वरना अकेले लालू को ही क्यों फंसाया जा रहा है ? क्या देश में किसी भी पार्टी का कोई भी नेता ऐसा है, जो खम ठोककर कहे कि मैं ईमानदार हूं। मैंने कभी कोई भ्रष्टाचार नहीं किया। मैंने हमेशा कानून का पालन किया है। मैंने कभी कोई अनैतिक काम नहीं किया है। कम से कम जान-बूझकर नहीं किया है। इसका अर्थ यह नहीं कि लालू कोई महात्मा है या बेदाग है या बेकसूर है। वह तो पहले ही जेल की हवा खा चुका है लेकिन आश्चर्य है कि बिहार के पिछले चुनाव में उसकी पार्टी को सबसे ज्यादा सीटें मिली हैं। अभी लालू पर जितने भी भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं, वे पता नहीं लालू के जीते-जी अदालतों में सिद्ध होंगे या नहीं लेकिन एक तथ्य तो स्वयंसिद्ध है कि लालू और उसके बेटों, बेटी और दामाद के पास अरबों की संपत्ति है। यहां असली सवाल यही है कि ये संपत्तियां कैसे इकट्ठे हुईं ? यदि उन्हें इकट्ठा करते वक्त कानून का पालन हुआ तो भी इस प्रश्न का जवाब कहां है कि लालू-कुनबे में ऐसी कौनसी व्यापारिक या औद्योगिक प्रतिभा है कि अपने आपको गाय-भैंस चरानेवाला कहनेवाले एक फूहड़ नेता के पास इतना पैसा इकट्ठा हो गया ? यह सवाल अकेले लालू के लिए नहीं है, देश के छोटे-मोटे हजारों नेताओं के लिए हैं। आज हमारे नेताओं की इज्जत दो-कौड़ी की क्यों हो गई है ? इसीलिए हो गई है। लालू-कुनबे पर जो छापे पड़ रहे हैं, वह बिल्कुल सही हो रहा है लेकिन यह पूरा सही तभी माना जाएगा जबकि महिने-दो महिने में पूरे कुनबे को ‘आदर्श सजा’ हो याने ऐसी सजा कि जिसको सुनते से ही भावी भ्रष्टाचारियों की हड्डियां कांपने लगें। इन अपराधियों की सारी चल-अचल संपत्तियां जब्त की जाएं, इनके समस्त नागरिक अधिकार छीन लिए जाएं और इन्हें कम से कम आजन्म कारावास दिया जाए। जरुरी यह है कि इस तरह के छापे सभी दलों के प्रमुख नेताओं और उनके रिश्तेदारों के यहां भी डाले जाएं और उन्हें भी ऐसी ही सजा दी जाए। सिर्फ बिहार में अपनी सरकार बनाने के लिए ये छापे मारे जाएंगे या ऐसा समझा जाएगा तो समझ लीजिए कि केंद्र सरकार लालू को ‘हीरो’ बनाकर ही छोड़ेगी।