अनुज अग्रवाल
सम्पादक
देश ने राष्ट्रपति चुनावों में दलित की भी नयी परिभाषा देख ली। अब दलित भी दो खेमो में बंट गया। सेकुलर दलित और राष्ट्रवादी दलित। सेकुलर खेमे की इसी प्रकार की बेसिरपैर की व्याख्याओं के कारण उनका जनाधार सिमटता जा रहा है। वे समझ ही नहीं रहे कि देश राष्ट्रवादी दर्शन और विचारों को स्वीकार कर चुका है। अंग्रेजों के बांटो और राज करो के मंत्र के दिन अब भारत में लद चुके हैं। अब सत्ता हथियाने के दर्शन की इस नाव में इतने छेद हो चुके हैं कि यह डूबने वाली है। जो समझदार हैं वे इस नाव को छोड़ते जा रहे हैं। चलो एक बात अच्छी हुई कि इस दलित राजनीति की चिकचिक से एक सरल,सहज विद्वान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के रूप में देश को मिल गया। इधर राज्यसभा में अल्पमत एन डी ए को उपराष्ट्रपति के रूप में वेंकैया नायडू जैसा तेजतर्रार चेहरा मिलने जा रहा है जिससे उनके लिए आगे की राह बड़ी आसान होने जा रही है। ऐसे में जबकि देश के सभी शीर्ष पदों पर संघ परिवार के लोग निर्वाचित हो गए हैं अब जनता को लगने लगा है कि मोदी सरकार पिछले तीन साल से लटके एजेंडे को पूरा करने के लिए तटपर हो जाएगी, जिसका वादा करके वो सन 2014 में सत्ता में आयी थी।
देश में भाजपा द्वारा उत्तर प्रदेश विधानसभा का चुनाव जीतने ओर योगी सरकार बनने के बाद सेकुलर खेमे में भारी बोखलाहट है। अब इस खेमे पर अस्तित्व का संकट मंडरा रहा है। ऐसे में इन ताकतों को कमजोर करने के लिए जहाँ संघ परिवार अतिसक्रिय हो गया है वहीं सेकुलर खेमा भी तेजी से पत्ते खेल रहा है। इसी कारण जहाँ भाजपा शासित राज्यों में अव्यवस्था फैलाने की कोशिश सेकुलर खेमा कर रहा है, वो ही कोशिश राष्ट्रवादी खेमा गैर भाजपा शासित राज्यों में कर रहा है। चीन और पाकिस्तान के भी इस लड़ाई में अपरोक्ष रूप से कूदने से यह संघर्ष खतरनाक रूप लेता जा रहा है। संघ परिवार बिहार, बंगाल उड़ीसा और उत्तर पूर्व
को अपने कब्जे में लेना चाहता है। जम्मू और कश्मीर, उत्तर प्रदेश,उत्तराखंड, झारखंड, आसाम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, और अब नागालैंड भी उसके कब्जे में आ गए हैं। बिहार में राजद – जेडीयू गठबंधन को तोड़ने के लिए लालू प्रसाद यादव के परिवार पर शिकंजा कस दिया गया है और नीतीश कभी भी लालू को धकिया भाजपा का दामन थाम सकते हैं। ओडिसा में ओर बंगाल में भाजपा दिनोंदिन मजबूत हो रही है। मिजोरम ओर मेघालय कोई बड़ी चुनौती नही हैं। बस त्रिपुरा में वामपंथी गढ़ को तोड़ना संघ परिवार के लिए बड़ी चुनौती है।
सेकुलर खेमा भी नित नए नए तीर छोड़ रहा है। एक ओर गाय के मुद्दे पर उसने संघ परिवार को उलझाया हुआ है वहीं अल्पसंख्यक तुष्टिकरण को ओर हवा दी जा रही है। साप्रदायिक हिंसा, झगड़े ओर संघर्ष, जातीय वैमनस्य को हवा दी जा रही है। चूंकि कश्मीर से लेकर उत्तर पूर्व तक कि बेल्ट जिस पर तीव्र संग्राम चल रहा है पाकिस्तान और चीन की सीमाएं मिलती हैं, इस कारण पाक ओर चीन भी अति सक्रिय हो गए हैं।
चीन और पाकिस्तान की सीमा पर अत्यधिक गतिविधियों के पीछे कुछ और महत्वपूर्ण कारण भी हैं। मोदी सरकार देश के अंदर जितने भी इन देशों के स्लीपर सेल हैं, उनको तबाह करने पर आमादा है। देश मे विदेशी फण्ड ओर पनपने वाली हज़ारों एन जी ओ अब बंद कर दी गयी हैं। ये एन जी ओ देश विरोधी गतिविधियों में अधिक संलग्न रहती थीं। कश्मीर में हुर्रियत कॉन्फ्रेंस पर लगाम लग गयी है और उसकी हवाला से होने वाली फंडिंग और पत्थरबाजी को दी जा रही शाह की राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने पोल खोल दी है। देश मे चीन और चर्च द्वारा समर्थित नक्सल आंदोलन की धार कुंद कर दी गयी है। उससे भी बड़ी बात विमुद्रिकरण और जीएसटी को लागू करने से देश मे हवाला के माध्यम से आने वाले माल ओर धन की आवक को बड़ा झटका लगा है। समानांतर अर्थव्यवस्था को छिन्न भिन्न करने और देश विरोधी गतिविधियों पर अंकुश लगने से देश में आंतरिक अराजकता पर खासा नियंत्रण हुआ है। देश के आयात बिल को नियंत्रित करने के लिए सरकार मेक इन इंडिया को जिस तरह से बढ़ाबा दे रही है उससे चीन, अरब देशों, रूस, अमेरिका, यूरोपीय देशों, जापान और कोरिया आदि सभी को झटका लगना तय है। मोदी सरकार की ‘न्यू इंडिया’ की अवधारणा या ख्वाब अब हकीकत में बदलने को तैयार है। देश में आधारभूत ढांचे में व्यापक सुधार किए जा रहे हैं। सड़क ,बिजली, पानी, जल और वायु यातायात, कर सुधार, स्मार्ट सिटी, डिजिटल इंडिया, स्किल इंडिया और स्वच्छ भारत सहित विभिन्न अभियान सब देश मे आमूलचूल परिवर्तन के राह तैयार कर चुके हैं। देश को आयात आधारित अर्थव्यवस्था से निर्यात आधारित अर्थव्यवस्था बनाने की तैयारी सही राह पर हैं। अगर यह न होता तो सेकुलर खेमा ओर चीन – पाक की जोड़ी इतना भड़भड़ा न रही होती। चीन अब दुनिया मे अमेरिका वर्चस्व को चुनौती देने की तैयारी कर रहा है और अमेरिका चीन को नियंत्रित करने के लिए भारत पर दांव लगा चुका है। ऐसे में सशक्त ओर समृद्ध होता भारत चीन के लिए बड़ी चुनौती बन रहा है। अरब देशों की सहायता से भारत के तीव्र इस्लामीकरण में लगा पाकिस्तान बांग्लादेश तक हरा गलियारा (मुगलिस्तान) बनाने की तैयारी में था और वह बेल्ट अब भाजपा के कब्जे में आती जा रही है। उधर अगर भारत आत्मनिर्भर होने की राह पर बढ़ता है तो चीन से उसका आयात कम होता जाएगा, साथ ही चीन के महाशक्ति बनने में मजबूत होता भारत एक बड़ा रोड़ा है। कहां पाकिस्तान और चीन का ख्वाब भारत को 20,30 या 50 देशो में बांटने का है और कहाँ भारत ने उनके अपने दामन में आग लगा दी है। भारत अपने योग, आध्यात्म ओर ज्ञान परंपरा को विश्व पटल पर स्थापित करने में तो लगा ही है, साथ ही बूढ़े होते पश्चिमी देशों में युवा भारतीयों को एक बड़ी भूमिका में स्थापित करने का ख्वाब पाले हुए है। इसीलिए नाटो देशों के साथ मोदी सरकार की गलबहियां जोरों पर हैं। अंततः एशिया के देशों में भी पुनः भारतीय संस्कृति का परचम लहराएगा क्योंकि बौद्ध हो या इस्लाम सबकी जड़े तो हिंदुत्व में ही है।