जिन्हें स्कूल की प्रार्थना में दिखता है हिंदुत्व
आर.के.सिन्हा
क्याभारत में हिन्दी और संस्कृत का प्रयोग या हिन्दू होना अब अपराध की श्रेणी मेंमाना जाएगा?संकेत तो कुछ इसी तरह के मिल रहे हैं। इसका एक ताजा उदाहरण देशके सामने आया है। एक मानसिक रूप से विक्षिप्त इंसान ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिलअपनी याचिका में कहा है कि केंद्रीय विद्यालयों में होने वाली प्रार्थनाहिंदुत्व को बढ़ावा देती है। ये प्रार्थना देश और देश से बाहर चल रहे सभी केन्द्रीय विद्लायों में पिछले लगभग साठ के दशक से प्रयोग में है। जब केन्द्रीय विद्यालय संगठन की स्थापना हुई, उस वक्त तो आज के दिन देश के कर्णधार मने जाने वाले लोगों में एक राहुल गाँधी के परनाना यानि कि उनकी नानी इंदिरा के पिता जवाहरलाल नेहरु ही देश के प्रधानमंत्री थेI अब यह प्रार्थना पूरी तरह असंवैधानिक बताईजा रही है। इसे गाते हुए पिछले साठ सालों में किसी भी शिक्षक या विद्यार्थियों को तो कोई आपत्ति नहीं हुई।
राष्ट्रीय एकता पर बल
अबइस प्रार्थना में हिन्दुत्ववादी कहने की हिमाक्त की जा रही है। देश के पहले प्रधानमंत्रीजवाहर लाल नेहरु के जीवन काल में 15 दिसम्बर 1963 को केन्द्रीय विद्लाय संगठन स्थापित हुआ थाI उस वक्त के शिक्षामंत्री भी महान शिक्षाविद् मोहम्मद करीम छागला थे I तब देशमें भाजपा या एनडीए की सरकारों का कहीं नामोनिशान भी नहीं थी। लेकिन, अब इनके पीछे तो देश के कथितसेक्युलरवादी हाथ धोकर पीछे पड़े हुए हुए हैं। केन्द्रीय विद्लायों में गायी जानेवाली प्रार्थना है- ” असतो माऽ सदगमयs। तमसो मा ज्योतिर्गमयऽ”मृत्योर्मामृतमगमयऽ। अर्थात् “(हमें) असत्य से सत्य की ओर ले चलो। अंधकार सेप्रकाश की ओर ले चलो, मृत्यु से अमरत्व की ओर ले चलो॥” इस प्रार्थना मेंहिन्दू या हिन्दुत्व कहां से आ गया है?यह समझ नहीं आता। इतनी गंभीर और गहनविचार लिए प्रार्थना में मध्यप्रदेश के एक निवासी विनायक शाह जी कोइसमें हिन्दुत्व दिखाई दे रहा है। मैंने इस लेख को लिखने से पहले केन्द्रीय विद्लायों में पढ़े कई पूर्व छात्रों और शिक्षकों से बात की। सबका कहना था कि उन्हें तो कभी भी उनके माता-पिता ने इस प्रार्थना पर आपत्ति जताई या उनकीतथाकथित वैज्ञानिक सोच इससे बाधित नहीं हुई। ऐसा भी नहीं कि 1128(ग्यारह सौ अठाईस) केन्द्रीय विद्यालयों में से पढकर निकला कोईसाईंटिस्ट, डाक्टर, इंजीनियर, आई टी प्रोफ्शनल या जर्नलिस्ट आईएस, आईपीएस, जज नहीं निकलाजिसे प्रार्थना समझ में न आई हो? फिर समझ नहीं आ रहा कि एकाएक यह मुद्दा क्यों उठाया गया? यदि किसी भी व्यक्ति विशेष को कोईआपत्ति है भी तो यह उसका निजी मामला है और वह चाहे तो अपने बच्चे को केन्द्रीय विद्यालय न भेजे I
केन्द्रीय विद्यालय के प्रतीक चिन्ह पर एक ध्येय वाक्य है, “ततत्व पूषण अपावृणु”I मैंने इस ध्येय वाक्य पर कुछ शोध कियाI यह ध्येय वाक्य यजुवेद के ईशावास्योपनिषद के १५वें श्लोक से लिया गया हैI यह पूरा श्लोक इस प्रकार है, “हिरण्मयेन पात्रेण, सत्यस्यापिहितं मुखमI तत्वं पूषन्नपावृणु सत्यधर्माय दृष्टयेII”
इसका अर्थ है कि “ हे सबका भरण पोषण करने वाले, परमेश्वर! सत्य स्वरुप हिरण्यमय (ज्योर्तिमय) पात्र जो ढका हुआ है, मुझे उस पात्र का ढक्कन उठाकर मुझे सत्य का दर्शन करा दीजियेI”
जिस संगठन का ध्येय वाक्य ही सत्यदर्शन पर आधारित हो, उसे हिन्दुत्वादी कहने का अर्थ है कि बाकी सभी असत्यवादी है?
केन्द्रीय विद्लाय की स्थापना के मूल में एक अहम विचार यह भी था कि यहां के बच्चों में राष्ट्रीय एकता और ‘भारतीयता’ कीभावना का विकास हो। क्या नई या पुरानी प्रार्थनाएं उक्त दोनों विचारोंके विरूद्ध खड़़ी होती है? जरा याचिकाकर्ता यह बताएंगे कि क्या पिछले 54 वर्षों में केन्द्रीय विद्यालयों में प्रतिवर्ष १२ लाख से ज्यादा पढ़ रहे कितने बच्चों ने हिंदी/संस्कृत प्रार्थना करके धर्म परिवर्तित करलिया? क्या प्रार्थना हिंदी/संस्कृत मे न करवा के लैटिन/अरबी या इतालवी में करवाई जाए? क्या सर्वधर्म सम:भाव का अर्थ बहुमत को नीचा दिखाना ही है? सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए केन्द्र् सरकार औरकेन्द्रीय विद्यालयों को नोटिस जारी कर जवाब भी मांगा है। एक प्रश्न यह भी पूछना है कि रामजन्म भूमि जैसे अतिमहत्वपूर्ण मामले को दशकों तक झूला झुलाने वाले सुप्रीम कोर्ट को सब काम छोड़कर इसी याचिका की सुनवाई का वक्त मिल गया? सुप्रीमकोर्ट ने कहा है कि ये बड़ा गंभीर संवैधानिक मुद्दा है, जिस पर विचार जरूरीहै। याचिकाकर्ता ने कहा है कि केन्द्रीय विद्लाय में जिस प्रार्थना कोबच्चेगाते हैं, वो संविधान के अनुच्छेद 25 और 28 के खिलाफ है और इसे इजाजतनहीं दी जा सकती है। राज्यों के फंड से चलने वाले संस्थानों में किसी धर्मविशेष को बढ़ावा नहीं दिया जा सकता।
सेक्यूलरिज़्म की ओवरडोज
दरअसलये सेक्यूलरिज़्म की ओवरडोज का परिणाम है जो अंततः “…लमहों ने ख़ता की थीसदियों ने सज़ा पाई ” मे परिवर्तित हो सकता है। हरेक चीज में मीनमेख निकालनाकहां तक उचित माना जाएगा। देशभर में 1128केंद्रीय विद्यालय हैं, जिनमेंएक जैसी यूनिफॉर्म और एक जैसे ही पाठ्यक्रम होता है। इस तरह से ये दुनिया की सबसे बड़ीस्कूल चेन बन जाती है। रोज १२ (बारह लाख) बच्चे यही प्रार्थना करते हैंइ पिछले 54 वर्षों में करोड़ों छात्र केन्द्रीय विद्यालय से यही प्रार्थना करके निकले और देश और विदेशों में भी नाम कमा रहे हैंI वे भावनात्मक रूप से इस प्रार्थना से जुड़ें हुए हैंI क्या याचिकाकर्ता ने करोड़ों नागरिकों की भावना पर ठेस नहीं पहुँचाया है? क्या उनपर आपराधिक मुकदमा नहीं चलाया जाना चाहिए? ये स्कूल पिछले 54 वर्षों से भी अधिक समय से चल रहेहैं। इन्होंने देश को एक से बढ़कर एक प्रतिभाएं दी हैं। इसे शुरू करने केमूल में विचार ही यह था ताकि केन्द्र सरकार के कर्मचारियों के बच्चों को विशेषकर सेना, रेलवे, अनुसन्धानशालाओं आदि में कार्यरत कर्मियों की ट्रांसफर की स्थिति में नए शहर में जाने पर केन्द्रीयविद्लाय में दाखिला आसानी से मिल जाए।
अगला निशाना ध्येय वाक्य
मानकर चलिए अब वह दिन भी आने वाला है,जब केन्द्रीय विद्लाय के ध्येय वाक्य- ‘तत् त्वं पूषन् अपावृणु’ (हे ईश्वर, आप ज्ञान पर छाए आवरण को कृपापूर्वक हटा दें) परभी प्रशनचिन्ह लगेंगे। वेदों को भी असंवैधानिक कह दिया जय तो आश्चर्य नहीं हैI क्योंकि, यह ध्येय वाक्य संस्कृत में है, इसलिए इसमें भीधर्मनिरपेक्षता आड़े आएगी।
केन्द्रीयविद्लायों में होने वाली प्रार्थना में हिन्दूत्व देखना या इसका संविधानसम्मत न मन जाय और साल 2005 में उठी मांग कि राष्ट्र गान से सिंध शब्द कोनिकाल देना चाहिए, में कोई बहुत फर्क नहीं है। सिंध शब्द के स्थान परराष्ट्रगान में कश्मीर को शामिल करने की मांग की गई थी।तर्क ये दिया गया था किचूंकि सिंध अब भारत का हिस्सा नहीं रहा, तो इसे राष्ट्रगान में नहीं होनाचाहिए। शायद ही संसार के किसी अन्य देश में राष्ट्रगान का इस तरह से अपमानहोता हो, जैसा हमारे देश में होता आया है। राष्ट्रगान पर रोक लगाने से लेकरइसमें संशोधन करने के प्रयास लगातार चलते रहते हैं।
रोक राष्ट्रगान पर
कुछवर्ष पूर्व इलाहाबाद से एक बेहद शर्मनाक मामला सामने आया था। वहां परएमए कॉन्वेंवट नामक स्कूल में राष्ट्र गान पर रोक थी। जब मामले ने तूलपकड़ा तो पुलिस ने स्कूल प्रबंधक जिया उल हक को गिरफ्तार कर लिया। क्या इसतरह का आपको उदाहरण किसी अन्य देश में मिलेगा? कतई नहीं। स्कूल मेंराष्ट्रगान नहीं होने देने के पीछे प्रबंधक जिया उल हक का तर्क था किराष्ट्रगान में “भारत भाग्य विधाता”शब्दों का गलत प्रयोग किया गया है।उन्हें इन शब्दों से घोर आपत्ति है। हक के अनुसार भारत में रहने वाले सभीलोगों के भाग्य का विधाता भारत कैसे हो सकता है। यह इस्लाम के विरुद्ध है।
हमारेयहां पहले भी राष्ट्रगान में संशोधन की मांग उठती रही है। पर क्याराष्ट्रगान में संशोधन हो सकता है? क्या राष्ट्रगान में अधिनायक की जगहमंगल शब्द होना चाहिए? क्या राष्ट्रगान से सिंध शब्द के स्थान पर कोई औरशब्द जोड़ा जाए? पहले भी सिंध शब्द को हटाने की मांग हुई थी, इस आधार परकी कि चूंकि सिंध अब भारत का भाग नहीं है, इसलिए इसे राष्ट्र गान से हटानाचाहिए। ऐसी बेहूदगी बात क्यों की जाती हैI अरबी लोग जब हिंदुस्तान आये तो सिन्धु नदी को पार कर आयेI अरबी में स को ह बोलते हैं इसलिए सिन्ध की जगह हिन्द कहकर उच्चारण कियाI हिन्द के जगह सिंध कैसे नहीं होगा I साल 2005 में संजीव भटनागर नाम के एक शख्स ने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिकादायर की थी, जिसमें सिंध भारतीय प्रदेश न होने के आधार पर जन-गण-मन सेनिकालने की मांग की थी। इस याचिका को 13 मई 2005 को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश आर.सी. लाखोटी की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने सिर्फ खारिजही नहीं किया था,बल्कि संजीव भटनागर की याचिका को “छिछली और बचकानीमुकदमेबाजी” मानते हुए उन पर दस हजार रुपए का दंड भी लगाया था।
अबकेन्द्रीय विद्लायों की प्रार्थना में सिरे से कमियां निकाली जा रही है।चूंकि ये मामला न्यायालय में विचाराधीन है, इसलिए मैं अधिक न बोलते हुएइतना तो अवश्य ही कहना चाहूंगा कि देश में कुछ शक्तियां देश को खोखला करने कीदिशा में संलग्न हैं। इन्हें कभी भी माफ नहीं किया जा सकता। जरूरत इस बात की है कि संविधान से “धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी” शब्दों को जो इंदिरा गाँधी ने इमरजेंसी के दौरान जोड़ी थीं, निकाल बाहर किया जायेI
(लेखक राज्य सभा सदस्य हैं)