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न्याय क्षेत्र की भाषा बनने में सक्षम हैं भारतीय भाषाएं

भारत की भाषाओं में वे सभी क्षमताएं हैं, जो न्यायिक क्षेत्र की किसी भी भाषा में होनी चाहिए। भारत की भाषाओं को न्यायलयों में कामकाज की भाषा बनाने से जुड़ी तकनीकी एवं व्यवहारिक बाधाओं के  समाधान भी खोजे जा सकते हैं। यह बात शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास द्वारा नई दिल्ली में आयोजित तीन दिवसीय ज्ञानोत्सव के दूसरे दिन विधि क्षेत्र के विशेषज्ञों के विमर्श में उभरकर आयी है।

इस विमर्श में सॉलिस्टर जनरल, पूर्व न्यायाधीश और उच्च नयायालय एवं उच्चतम न्यायालय के अधिवक्ताओं समेत विधि क्षेत्र के कई विशेषज्ञ शामिल थे। ये बातें एक प्रेस वार्ता में शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के सचिव और भारतीय भाषा अभियान के राष्ट्रीय संरक्षक अतुल कोठारी ने कही हैं।

उन्होंने कहा कि देश की बहुसंख्य आबादी अपनी भाषा में संवाद करती है। इसके बावजूद न्यायालयों की भाषा आज भी अंग्रेजी बनी हुई है। न्याय व्यवस्था में पारदर्शिता के लिए यह जरूरी है कि लोगों को उनकी भाषा में न्याय मिले। अपनी भाषा में न्यायिक प्रक्रिया चलेगी तो पारदर्शिता अधिक होगी और लोग न्यायालय के निर्णयों को बेहतर ढंग से समझ एवं आत्मसात कर पाएंगे। पर, दुर्भाग्य से आजादी के सात दशक बीत जाने के बावजूद आज भी देश के उच्च न्यायालयों एवं उच्चतम न्यायालय में हिंदी में कार्यवाही नहीं होती है।

अतुल कोठारी ने कहा कि “भारतीय भाषा अभियान की यह मांग है कि जिला सत्र न्यायालयों में लोगों को अपनी भाषा में न्याय मिलना चाहिए। इसके साथ ही उच्च न्यायालयों में भी अंग्रेजी के साथ-साथ राज्य के लोगों की भाषा में न्याय मिलने की व्यवस्था होनी चाहिए।”

संविधान के अनुच्छेद 348 के खंड (1) के उपखंड (क) के तहत उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों की कार्यवाही अंग्रेजी भाषा में किए जाने का प्रावधान है। हालांकि, इसी अनुच्छेद के खंड (2) के तहत किसी राज्य का राज्यपाल उस राज्य के उच्च न्यायालयों में हिंदी भाषा या उस राज्य की राजभाषा का प्रयोग राष्ट्रपति की अनुमति से प्राधिकृत कर सकता है।

श्री कोठारी ने बताया कि “उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और मध्य प्रदेश समेत देश के चार राज्यों के उच्च न्यायालयों को हिंदी में कामकाज के लिए प्राधिकृत किया गया है। जबकि, अन्य न्यायालयों में सभी कार्यवाहियां अंग्रेजी में ही की जाती हैं। हालांकि, मातृभाषा का कोई विकल्प नहीं हो सकता और यह एक वैज्ञानिक सत्य है। इसके बावजूद अपनी भाषा में न्याय पाने का अधिकार अभी तक लोगों को नहीं मिला है।”

श्री कोठारी ने बताया कि भारतीय भाषा अभियान इसके लिए निरंतर अभियान चला रहा है और देश की जनता एवं विधि क्षेत्र में कार्यरत लोगों का इस अभियान को अपार समर्थन मिल रहा है।

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