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वैदिक विज्ञान से बहुत पीछे है आधुनिक विज्ञान- वैज्ञानिक सूर्यप्रकाश कपूर

 

भारत मे तेल गैस का धीमा उत्खनन एक साजिश  – वैज्ञानिक सूर्यप्रकाश कपूर  

वैदिक वैज्ञानिक सूर्यप्रकाश कपूर वेदों, उपनिषदों, गीता व अन्य भारतीय शास्त्रों का विशद व गहन अध्ययन करते रहे हैं। समय समय पर पृथ्वी के भौगोलिक रहस्यों को उन्होंने अपने वैदिक ज्ञान की मदद से समाज के सामने रखा जिसने दुनिया और भारत में बहुत हलचल मचाई। कपूर जी का दावा है कि ब्रह्मांड व भूगर्भ के रहस्यों व गुत्थियों को भारतीय वैदिक ग्रंथों ने हजारों वर्ष पूर्व ही सुलझा लिया था किंतु आधुनिक विज्ञान संस्कृत की समझ न होने व अपने वर्चस्व के टूटने के भय से इन ग्रन्थों को पढऩे व समझने की कोशिश ही नहीं करता। अगर पूर्ण रूप से यह ज्ञान दुनिया तक पहुंच जाए तो देश व दुनिया से गरीबी, काहिली व भुखमरी पूर्णत: मिट जाएगी और सब लोग सुखी व समृद्ध हो सकेंगे। डायलॉग इंडिया के संपादक अनुज अग्रवाल से विस्तृत बातचीत में उन्होंने पृथ्वी के गर्भ के अनेक रहस्यों को वैदिक ज्ञान व गीता के  हज़ारों वर्ष पूर्व खोजे गए रहस्यों को डायलॉग इंडिया के माध्यम से सांझा किया जिसकी समझ आज के विज्ञान को नहीं है। इस पूर्णत: वैज्ञानिक, विस्मयकारी व बहुपयोगी जानकारी को हम आपके साथ सांझा कर रहे हैं।

भू और भूगर्भ : गीता में वर्णित उफान (ब्योन्सी) और संतुलन का सिद्धांत

जब सोलर सिस्टम बना, नेबुला फटा, ग्रह बने तब सूर्य से अलग होकर पृथ्वी के केंद्र में 8  किलोमीटर व्यास का हिस्सा यूरेनियम 235 का बना जिसमें 24 घण्टे नाभिकीय विखण्डन होते रहते हैं। भूगर्भ विज्ञान में 1993 तक यह मान्यता थी कि सेंटर की कोर आयरन निकिल की है व यह ज्ञात नहीं था कि नाभि के अंदर यूरेनियम 235 का 8 किलोमीटर का स्फीयर  है जिसमें लगातार न्यूक्लियर फिशन चलते रहने के कारण आग निकलती रहती है। जिस कारण पृथ्वी की उफान (बोयंसी) की स्थिति बन गयी है। यानि पृथ्वी फूल गयी है। अगर यह क्रिया 24 घण्टे के लिए भी बंद हो जाये तो पृथ्वी 6000 किलोमीटर  नीचे धंस जाएगी और 100 किलोमीटर का लिथोस्फियर जिस पर पूरी पृथ्वी का जीवन है वह नष्ट हो जाएगा। नाभिकीय विखण्डन की आग की गर्मी के उबाल से ही पृथ्वी उफनी या उभरी हुई है।

गीता के आगे दिये गये श्लोक (देखें चित्र) में भगवान कृष्ण ने कहा है – जिसके अनुसार अपनी ओज शक्ति से में यह संतुलन बनाए हुए हूं ताकि पृथ्वी पर जीवन बना रहे।

आदि शंकराचार्य ने इसको स्पष्ट करते हुए कहा है कि अगर यह शक्ति यानि ताप बढ़ जाए तो पृथ्वी फट जाए और कम हो जाए तो नीचे धंस जाएगी। ईक्यूबिलेरियम या संतुलन की इस थ्योरी तक अभी तक आधुनिक भूगर्भ विज्ञान जो मात्र 220 साल पुराना है, नहीं पहुंचा। 1993 में तो वे थ्योरी ऑफ बोयन्सी तक पहुंचे हैं।  भूगर्भ विज्ञान की सर्वश्रेष्ठ अमेरिका की युटा यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर भी यह स्वीकार करते हैं कि बोयन्सी के कारण संतुलन बना हुआ है अन्यथा उत्तरी अमेरिका कहीं गहरा अटलांटिक महासागर से नीचे धंस चुका होता। प्लेट टेक्टोनिकस से ज्यादा महत्वपूर्ण तो थ्योरी ऑफ बोयन्सी है।

गीता के एक श्लोक में ही पूरी थ्योरी को जिस प्रकार वर्णित कर दिया गया वह आश्चर्यजनक है। हमारे ऋषियों ने हजारों वर्ष पूर्व अपनी दिव्य दृष्टि से ब्रह्मांड के रहस्यों को कितने संक्षिप्त, सही व वैज्ञानिक रूप से समाज के सामने रखा यह अविश्वसनीय लगता है, किंतु सत्य है।

सृष्टि का यज्ञ, हीट लो वैल्यू व पृथ्वी की आयु

सृष्टि का यज्ञ जो चल रहा है उसमें पास की अग्नि यानि पृथ्वी के अंदर से निकलने वाली  हीट लो वैल्यू को संतुलित करने का कार्य ईश्वर कर रहा है। अगर यह संतुलन बिगड़ जाए तो जीवन खत्म हो जाएगा। पृथ्वी की 13775 किलोमीटर में में से 95 प्रतिशत से अधिक  में आग ही आग है इसके बाद भी पृथ्वी के ऊपर जीवन शाश्वत रूप से विद्धमान है यह हमको ईश्वर की निष्काम देन है।

अब तक धरती के केंद्र में मौजूद  रेडियोएक्टिव तत्व का 45 प्रतिशत (यूरेनियम ) ही खर्च हुआ है जो कुल 400 करोड़ साल चलेगा। अभी तो श्वेत वराह कल्प का आधा भी खत्म नहीं हुआ। जो भारतीय काल गणना ही वैज्ञानिक है और पृथ्वी की वास्तविक आयु बताता है।

हॉलीवुड की फि़ल्म में बचकाने ढंग से पृथ्वी की आयु व रेडियोएक्टिव तत्वों की स्थिति को दिखाया गया है उनको आज भी पृथ्वी की वास्तविक आयु का अंदाज नहीं है। वैदिक सत्य यह है कि  7 मन्वंतर अभी आए हैं व 7 और आएंगे। हमारे वेद, वेदांत, ब्राह्मण ग्रंथ व महाभारत, गीता आदि में सृष्टि के गूढ़ रहस्यों का सरल व संक्षिप्त शब्दो में वर्णन है जिसका दुनिया से परिचय कराना बहुत जरूरी है।

लावा और इसके ताप के चमत्कारिक प्रभाव

पृथ्वी के अंदर चलने वाली नाभिकीय विखण्डन की क्रियाओं से निकलने वाले लावे ने 100 केएमएस के लिथोस्फियर को अनेक जगहों पर भेदन किया है। 1200 डिग्री का यह लावा धरती की परत के नीचे 2 से 10 किलोमीटर नीचे तक पहुंच गया है। जिस कारण पृथ्वी की उस उस जगह जहां लावा ऊपर तक पहुंच गया है वहां उसने क्रांतिकारी परिवर्तन किए हैं और पृथ्वी की ऊपरी परत को बहुत उर्वर और मूल्यवान पदार्थो से परिपूर्ण कर दिया है। 64.6 मिलावट/ स्क्वायर मीटर/ सेकेन्ड से अधिक एचएफवी वाली इस परत में 6 महत्वपूर्ण चीजें मिलती हैं फॉसिल्स यूल क्रूड ऑयल, गैस कोयला सीबीएम, गर्म पानी के सोते, जे स रत्न डायमंड, सोना, रूबी, नीलम, समृद्ध वनस्पति जिसमें अग्नि तत्व अधिक होता है जो हाज़मा, उम्र व ताकत बढ़ाता है, होती है। यह अग्नि मिट्टी की तासीर बदल देती है भोज्य पदार्थों की। नक्शे में यह भौगोलिक क्षेत्र गहराई से स्पष्ट होते हैं। कश्मीर का केसर, फूलों की घाटी की औषधि के फूल व जड़ी बूटियां इसी लावे की मिट्टी से परिपूर्ण क्षेत्र की होने के कारण चमत्कारिक प्रभाव रखती हैं। इसीलिए हनुमान जी युद्ध के समय लक्ष्मण के मूर्छित होने पर फूलों की घाटी से पर्वत खण्ड लेकर गए थे ताकि इसमें मौजूद संजीवनी बूटी से उनका इलाज हो सके। धरती पर जिस जगह भी लावा नजदीक है वहीं यह गुल खिलाता है। आज भी पश्चिम के भूगर्भ विज्ञान को यह तथ्य नहीं पता और इसी कारण वे भ्रमित रहते हैं जिस कारण वे खनिजों व उच्च पोषक तत्वों वाले क्षेत्रों की स्पष्ट पहचान करने में बहुत समय लगाते है। अगर वे वैदिक ज्ञान का सहारा ले तो यह कार्य बहुत सरल हो जाएगा।

64.6 मिलावट/ स्क्वायर मीटर/ सेकेन्ड से अधिक एचएफवी वाले क्षेत्र और भारत

पश्चिमी भू-गर्भविज्ञान के आधार पर भारत ने अपने देश में जो खनिज पदार्थों व फॉसिल्स यूल की खोज की है उसमें 26 सेडीमेंटरी बेसिन्स को चिन्हित किया है जिनका क्लासिफिकेशन नि न चार्ट के आधार पर किया है। किंतु इनमें से आधे स्थानों पर ही खनिज व क्रूड ऑयल व गैस मिला है। अगर वे अपना आधार वैदिक ज्ञान से जोड़ ले तो उनको भटकना नहीं पड़ेगा और वे 64.6 मिलावट/ स्क्वायर मीटर/ सेकेन्ड से अधिक एचएफवी वाले क्षेत्र में सीधे खनन कर फॉसिल्स यूल व अन्य खनिज निकाल सकते हैं किंतु वे ऐसा नहीं कर रहे हैं। सच्चाई यह है कि भारत ने अपने क्षेत्र में मौजूद कुल खनिज संपदा के 15 प्रतिशत मात्र का ही उत्खनन व दोहन किया है और अपनी 80 प्रतिशत जरूरत आयात द्वारा पूरी करता है। जो देश को व्यापक आर्थिक हानि पहुंचाता है।

भारत में गैस और तेल का दोहन न करने  का खेल

भारत में हाल ही में पश्चिमी बंगाल व मध्यप्रदेश में तेल व गैस की खोज हुई है और उसका उत्खनन शुरू हो गया है। पश्चिमी बंगाल के चौबीस परगना जिले में जिस मात्रा में गैस निकल रही है उससे ओएनजीसी हैरान है।

मौलिक भारत से जुड़े वैदिक वैज्ञानिक सूर्यप्रकाश कपूर ने सन 2016 में अमेरिका के ‘यूनिवर्सल जर्नल ऑफ जियोसाइंस’ में लिखे अपने लेख में भारत में अपार तेल व गैस भंडार होने का दावा किया था। भारत के तेल व गैस भंडारों का जो नक्शा उन्होंने जर्नल में दिया था उसमें हाल ही में खोजे गए ये दोनों गैस व तेल क्षेत्र भी हैं। दु:खद है कि ओएनजीसी पिछले दो सालों से सोती रही और जब जमीन फाड़कर गैस निकलकर पूरे क्षेत्र में आग पकडऩे लगी तब जनता के दबाब में ‘एक्सप्लोरेशन’ करने के लिए तैयार हुई। ऐसे में जबकि मोदी सरकार उज्वला गैस योजना के तहत घर घर गैस पहुंचाना चाहती है, ओएनजीसी की यह लापरवाही अक्ष य है। अनुमान है कि इस क्षेत्र में केजी बेसिन से भी कई गुना ज्यादा पेट्रोलियम पदार्थों के भंडार हैं।

वेदों में स्पष्ट कहा गया है जहां अग्नि तत्व याानि लावा ऊपर होगी वहीं तेल, गैस, खनिज व हीरे जवाहरात अधिक होते हैं क्योंकि ये लावा के ही उपउत्पाद हैं। चूंकि पृथ्वी की आंतरिक परतों में निरंतर ज्वालामुखी अग्नि का तीव्र प्रवाह है और वही कालांतर में खनिजों व पेट्रोलियम पदार्थों में बदलती रहती है ऐसे में भूमि पर उन स्थानों पर जहां अग्नि तत्व अधिक मात्रा में है वहां खनिज व पेट्रोलियम पदार्थों का प्रचुर मात्रा में होना निश्चित है। भारत में ऐसे सात क्षेत्र हैं जो चित्र में लाल, नीले व हरे रंग में दर्शाए गए हैं। वैज्ञानिक सूर्यप्रकाश जी के अनुसार अभी तक हमने भारत में अपने इन क्षेत्रों में से केवल 15 प्रतिशत का ही दोहन किया है। ऐसे में न जाने क्यों अपने क्षेत्रों का दोहन न कर सरकार 80 प्रतिशत तेल विदेशों से आयात कर रही है। भारत सरकार ने घोषणा की है कि सन 2030 तक देश में सब वाहन बिजली चलित होंगे व सौर व अन्य गैर परंपरागत ऊर्जा का ही अधिकतम प्रयोग किया जाएगा। यानि हमारे तेल व गैस भंडार धरे के धरे रह जाएंगे। निश्चित रूप से तेल उत्पादक देश पिछले चार पांच दशकों से हमारे राजनेताओं, नौकरशाही व नीति नियंताओं को मोटा कमीशन देते रहे होंगे ताकि हम अपने उपलब्ध स्रोतों का दोहन न करे व आयात करते रहें। जरा सोचिए अगर सरकार व ओएनजीसी बहुत पहले से ही इन क्षेत्रों का दोहन शुरू कर देती तो देश का आयात बिल बहुत कम होता और जनता महंगाई की मार से बच जाती। तब देश में तेल मुश्किल से 5 से 10 रुपए लीटर से ज्यादा नहीं होता। अब समय आ गया है कि देश की जनता को ऐसा धोखा देने वालों को खोजकर कठघरे में खड़ा किया जाए।

अंडमान निकोबार द्वीपसमूह में दो प्लेट एक दूसरे के ऊपर से जा रही है जहां इंस्टेंट एंड फास्टट्रैक पेट्रोलियम बन रहा है जो ओएनजीसी के अनुमान से दस गुना ज्यादा हो सकता है किंतु वहां उत्खनन नहीं किया जा रहा है जबकि इंडोनेशिया निकाल रहा है, बर्मा डीप वाटर बॉक्सेस से हमारा तेल निकाल रहा है। मगर हम खाली हाथ बैठे हैं। हम ऐसे दर्जनों क्षेत्र जहां अपरिमित मात्रा में पेट्रोलियम पदार्थ हैं, नहीं निकाल रहे हैं।

महाभ्रष्टों के कारण अपरिमित आर्थिक नुकसान

जब केजी बेसिन में तेल निकला तो ओएनजीसी के अधिकारियों ने 15 प्रतिशत  पार्टनरशिप लेकर अंबानी से हाथ मिला लिया और सारी खोज उसे बेच दी और देश को धोखा दे दिया। अब जब महानदी में गैस व तेल मिल गया है और  ओएनजीसी के अधिकारी फिर रिलायंस के साथ सौदेबाजी कर रहे हैं ताकि सारी खोज उसे बेचकर मोटा माल कमा सकें। यह काम भारत सरकार क्यों नहीं कर सकती।

भारत सरकार हर साल 10 लाख करोड़ रुपए तेल आयात में खर्च कर रही है अगर इतना पैसा अपने देश में तेल के उत्खनन पर लगाना शुरू कर दे और युद्धस्तर पर यह कार्य करे तो देश की आर्थिक स्थिति में क्रांतिकारी बदलाव आ जाएंगे। अगर सरकार यह नहीं कर रही तो यह देश के साथ सबसे बड़ा धोखा व घोटाला है। क्यों हम अपने चिन्हित व ज्ञात उत्खनन क्षेत्रों से तेल व गैस की निकासी तुरंत शुरू नहीं कर रहे? क्या देश के नौकरशाह व राजनेता विदेशी तेल क पनियों से मोटा कमीशन खा रहे हैं? अगर हम इस दिशा में तेज गति से कार्य करेंगे तो भारत ओपेक देशों का सदस्य बन जायेगा और तेल आयात करने की जगह निर्यात शुरू कर देगा और देश में मौजूदा दामों के 10 प्रतिशत पर ही तेल व गैस बिकेंगे। मगर यह जानबूझकर, सोची समझी साजिश के तहत पेट्रोलियम मंत्रालय का सिंडिकेट निजी स्वार्थों व लालच में देश के हितों से समझौता कर रहा है। आवश्यकता ओएनजीसी द्वारा खोजे अंडमान सेडक्शन ज़ोन व वैदिक ज्ञान द्वारा उजागर हुए अग्नि प्रधान क्षेत्रों में तीव्र उत्खनन की है ताकि देश की जनता भूख, गरीबी, महंगाई व दिल्लडऱी से बाहर निकल अपने प्राचीन वैदिक ज्ञान को आत्मसात कर आत्मिक उन्नति कर सके।

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