रैनबैक्सी फार्मा का कुछ साल पहले तक देश के दवा निर्माताओं के सेक्टर में दबदबा था। यह देश की चोटी की फार्मा कंपनियों में से एक थी। लेकिन, यह देखते-देखते ही खत्म हो गई। रैनबैक्सी को स्थापित करने वाले डा.भाई मोहन सिंह का कुनबा आपसीकलह-क्लेश में फंसता ही चला गया। पहले डा. मोहन सिंह के पुत्र परविदर सिंह ने अपने पिता को कंपनी के मैनेजमेंट से बाहर किया। आगे चलकर परविंदर सिंह के दोनों पुत्रों क्रमश मलविंदर सिंह और शिवइंदर सिंह ने अपने परिवार की फ्लैगशिप कंपनी को गलत तथ्यों के आधार पर जापान की दाइची नाम की कंपनी को बेचा।जब इन बंधुओं ने रैनबैक्सी से अपनी सारी हिस्सेदारी को बेचा था, तब भारतीय उद्योग जगत में इनकी खिंचाई भी हुई थी ।जिस समूह को इनके दादा भाई मोहन सिह ने बनाया-संवारा, उसे इस तरह बेचा नहीं जाना चाहिए था।
मलविंदर सिंह और शिवइंदर सिंह नेरैनबेक्सी को बेचने के बाद फोर्टिस अस्पतालों की भारी भरकम चेन शुरू की। लेकिन, उसमें भी धोखाधड़ी हुई। अंततः इन्हें इसके मैनेजमेंट बोर्ड से भी निकाला गया। अब ये दोनों भाई एक-दूसरे पर मारपीट तक के आरोप लगा रहे हैं। कुछ जगहों पर तो बड़े भाई की घायल अवस्था में फोटो भी छपी हैं। सोशल मीडिया पर इन्हें वायरल भी किया गया । दरअसल राम-लक्ष्मण के इस महान देश में भाइयों के बीच मारपीट- कटुता नहीं होनी चाहिए। पर रैनबैक्सी, रेलिगियर और फोर्टिस जैसी फार्मा और हेल्थ सेक्टर की शिखर और प्रतिष्ठित कंपनियों के प्रमोटर रहे भाइयों ने राम-लक्ष्मण के रिश्तों से शायद कुछ सीखा ही नहीं। ये दोनों भाई बहुत घटिया रास्ते पर चले गए। ये देखा जाए तो ये भाई बिल गेट्स या मार्क जुकेरबर्ग सरीखे कारोबारी बनना ही नहीं चाहते थे। इनके सपने शायद बहुत ही छोटे थे। इनके पास लगता है कि कोई विजन ही नहीं था। इसलिए इन्होंने अपनी खुद की और अपने परिवार की साख धूल में मिला ली।
दरअसल इन प्रमोटरों में झगड़ेकाअसर तो कंपनी के प्रदर्शन पर पड़ता है। शेयरहोल्डरों, उस दौर में कंपनी के कर्मी और शेयर होल्डर हतोत्साहित होते हैं। उन्हें कोई दिशा देने वाला भी नहीं रहता। मैनेजमेंट में कोई इनके प्रश्नों के जवाब देने वाला भी कोई नहीं रहता । यह स्थिति हमने बार-बार देखी है। इंफोसिस में सीईओ विशालसिक्काकी अपने मैनेजमेंट से तनातनी के दौर में इंफ़ोसिस के कर्मियों में घोर निराशा की स्थिति पैदा हो गई थी। टाटा समूह में रतन टाटा और सायरस मिस्त्री में बवाल के दौर मेंभी स्थितियां प्रतिकूल होती जा रही थी। इसके पहले टाटा स्टील में रुसी मोदी और जमशेद ईरानी का विवाद तो जगजाहिर है ही।
इस हालातों में कंपनी के शेयरहोल्डरों और भावी निवेशकों में भीबहुत बुरा संदेश जाता है। अगर कंपनी शेयर बाजार में सूचीबद्ध है तो शेयरधारकों को तत्काल नुकसान होने लगता है। तब कंपनी का शेयर का भाव गिरने लगता है।यह बात कंपनियों के प्रमोटरों को अच्छी तरह से समझनी होगी कि उनके बीच झगड़े होने से उनके समूहों या कंपनियों को चौतरफा हानि होती है। वे जिसे अपना समूह या कंपनी मानते हैं, उसे खड़ा करने में बैंकों का लोन, मजदूरों का श्रम और शेयरधारकों की मेहनत का पैसा भी तो लगा होता है। इसलिए उन्हें अपने विवादों को समय रहते ही हल कर लेना चाहिए। वे यह न सोचें कि कोई समूह या कंपनी का पूर्ण स्वामित्व उनका ही है। एक बात यह भी लगती है कि इन भाइयों में पैसे को लेकर इस तरह के विवाद इसलिए बढ़ते हैं क्योंकि इनकी नीयत ख़राब होती है और कार्य पद्धति में पारदर्शिता की कमी होती है । अगर इन कारोबारियों को कोई यह समझा पाए कि आपसी विवाद से ये अपना ही नुकसान करेंगे, तो शायद यह स्थिति उत्पन्न ही न हो।
अब भी कई जगहों पर भाई-भाई मिलकर अपने-अपने समूहों को आगे लेकर जा रहे हैं। उदाहरण स्वरुप ओम प्रकाश जिंदल ने जिंदल स्टील समूह स्थापित किया था। इधर उनके चारों पुत्र क्रमश: पृथ्वी, सज्जन, रतन और नवीन अब सफलता पूर्वक अपनी-अपनी कंपनियों को देख रहे हैं। जिंदल समूह अब स्टील,पावर,सीमेंट क्षेत्रों में है।भारती एयरटेल समूह को तीन भाई क्रमश: सुनील भारती मितल, राकेश भारत्ती मितल और राजनभारती मित्तल मिल जुलकर देखते हैं। एस्सार समूह को शशि और रवि रूइया देखते हैं। हमें इस तरह के और भी बहुत से समूह अपने देश में मिल सकते हैं।
एक बात समझ में नहीं आती कि आपस में लड़ने वालों को इतना वक्त कहां से मिल जाता है।आप लड़कर अपनी उर्जा का नाश ही करते हैं। आप एक ही काम कर सकते हैं । या तो लड़ सकते हैं या फिर अपना शांतिपूर्वक काम कर सकते हैं।अगर आपके ऊपर किसी बड़ी कंपनी को देखने की जिम्मेदारी हो तो आपइन बेकार की बातों में कतई वक्त नष्ट नहीं कर सकते। जेआरडी टाटा, घनश्याम दास बिड़ला,बिल गेट्स,मार्क जुकरबर्ग जैसे शिखर कारोबारी दिन-रात मेहनत कर नई-नई योजनाओं को बनाने में व्यस्त रहते हैं। हमने तो कभीनहीं सुना कि बिल गेट्स या मार्क जुकरबर्ग कभी अपने किसी भाई या अन्य इंसान से विवाद में फंसा हो। ये सभी अपनी कंपनियों को नई दिशा देते हुए कल्याणकारी योजनाओं के लिए करोड़ों डॉलर दान में दे देते हैं। इसीलिए तो ये संसार भर में आदरणीय हैसियत पा चुके हैं। माइक्रोसॉफ्ट कंपनी के संस्थापक गेट्स दुनियाभर से बीमारियों को मिटाने के लिए अपना निवेश बढ़ा रहे हैं।
गेट्स मानते हैं कि गरीब देशों में स्वास्थ्य की स्थिति सुधारी जाए। वे हर साल अरबों डॉलर का दान देते हैं ताकि दुनिया रोग मुक्त हो जाये । गेट्स पोलियो के खिलाफ सघन अभियान चलाते हैं।अब बात कर लेते हैं सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग की। उन्होंने भी कुछ समय पहले अपनी कुछ हिस्सेदारी बेचकर 12 अरब डॉलर (करीब 77,800 करोड़ रुपये) जुटाएं। इस धन का इस्तेमाल स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में सामाजिक कार्यों के लिए हो रहा है। गेटस या जुकरबर्ग तो हंसते होंगे सिंह बंधुओं जैसे नकारात्मक सोच रखने वाले कारोबारियों की हालत देख-सुनकर ।देखा जाए तो भारत के सभी कारोबारियों को बिल गेट्स या जुकरबर्ग जैसों से प्रेरणा लेनी चाहिए। ये विश्व नागरिक का दर्जा प्राप्त कर चुके हैं। ये “सर्वे भवन्तु सुखिनः” के विचार को मानते हैं । ये सिर्फ अपना ही पेट नहीं भरना चाहते। ये लड़-झगड़कर आगे नहीं बढ़ रहे हैं । क्या भारतीय उद्योगपति इससे प्रेरणा नहीं ले सकते ?
आर.के.सिन्हा
(लेखक राज्य सभा सदस्य हैं)